कामकाज को जालस्थल पर प्रकाशित करने के लिए अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर का महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र !
मुंबई – सरकारी कामकाज में पारदर्शिता हो; इसके लिए सरकार की ओर से सभी नागरिकों के लिए अनुदानप्राप्त सरकारी एवं आंशिक सरकारी संस्थाओं के कामकाज की जानकारी जालस्थल पर उपलब्ध की जाती है । सरकार के विभिन्न विभाग एवं आंशिक सरकारी संगठनों की जानकारी जालस्थल पर उपलब्ध करा दी जाती है । सरकार के विभिन्न विभागों एवं प्राधिकरणों के इसके लिए स्वतंत्र जालस्थल हैं; परंतु जिसके पास ७७ सहस्र एकड से भी अधिक भूमि का स्वामित्व है, उस वक्फ प्राधिकारण का कामकाज लोकतंत्र के स्वामी नागरिकों तक पहुंचती ही नहीं । हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने इस गंभीर विषय की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित किया है । अधिवक्ता इचलकरंजीकर ने ६ जनवरी को अल्पसंख्यक विकासमंत्री को पत्र लिखकर वक्फ प्राधिकारण के कामकाज की जानकारी जालस्थल पर प्रकाशित करने की मांग की है । अल्पसंख्यक विभाग मुख्यमंत्री के पास होने के कारण उन्होंने यह पत्र मुख्यमंत्री के नाम से भेजा है । इस पत्र में अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने कहा है कि
१. आज के समय में भारतीय न्यायपालिका ने भी अपने कामकाज का सार्वजनिक रूप से सीधा प्रसारण करना आरंभ किया है । इससे उच्च न्यायालय में कितने बजे तथा कितने क्रम का प्रकरण सुनवाई के लिए रखा गया है ?, सुनवाई कितने समय तक चली ?, यह विश्व के किसी भी कोने में बैठकर देखा जा सकता है । देश के सत्र न्यायालयों तथा प्रथम वर्ग न्यायिक दंडाधिकारी की प्रचंड व्यस्तता में भी उनका दैनिक कामकाज जालस्थल पर प्रकाशित होता है । इन प्रकरणों में समय-समय पर दिए जानेवाले आदेश भी जालस्थल पर प्रकाशित होते हैं । प्रकरणों की तिथि, कौनसे न्यायाधीश के पास कितने प्रकरण हैं ? तथा वे किस चरण में हैं ? न्यायाधीश कितने दिन तक छुट्टी पर रहेंगे ?, इतनी अचूक जानकारी भी इन जालस्थलों पर प्रकाशित होती है ।
२. परंतु क्या वक्फ प्राधिकरण अभी भी ५० वर्ष पूर्व की पद्धति के अनुसार चल रहा है ? अथवा क्या उसे उसी प्रकार से जारी रखा जा रहा है ? इस प्राधिकरण के न्यायाधीश का पद, अध्यक्ष अथवा सदस्य आदि पदों पर कौन कार्य करते हैं ? वे किस प्रकार निर्णय देते हैं ? तथा किन प्रकरणों की सुनवाईयां कब होती हैं ?, इसकी जानकारी कहीं भी देखने को नहीं मिलती । क्या यह जानकारी बाहर आने ही नहीं देनी है ? अथवा क्या इसमें कुछ हितसंबंध रखे जाएंगे ?
३. अंग्रेजी में कहावत है, ‘नॉलेज इज पावर एंड बोथ आर सोर्सेस ऑफ सैटिस्फैक्शन’ (ज्ञान एक शक्ति है तथा दोनों संतुष्टि के स्रोत हैं ।) आज का विश्व जानकारी का विश्व है । तब भी आप मुसलमानों अथवा गैरमुसलमानों को इससे वंचित क्यों रख रहे हैं ?, यह हमारा प्रश्न है ।
४. ‘वक्फ प्राधिकरण अथवा सरकार के पास धन का अभाव होने से हम न्यायालय की भांति जानकारी नहीं रख सकते’, ऐसा घिसा-पिटा उत्तर आप हमें नहीं देंगे, इसके प्रति हम आश्वस्त है; क्योंकि महाराष्ट्र की सरकार इतनी निर्धन नहीं है ।
मंदिर के कोष से चंदा; परंतु वक्त प्राधिकरण से क्या ?
मंदिर के कोष से चिकित्सालयों, विद्यालयों जैसी अनेक संस्थाओं को चंदा देने की सरकार का आदत है । मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर के विषय में पूर्व न्यायाधीश टिपणीस समिति का ब्योरा, विधि एवं न्याय विभाग ने समय-समय पर मांगा हुआ स्पष्टीकरण मंदिर के विषय में था; परंतु वक्फ प्राधिकरण का क्या ? शिरडी देवस्थान के ५०० करोड रुपए का निळवंडे बांध के नहरों के निर्माण के लिए चंदा दिया जाना तथा शासन नियंत्रित मंदिरों के द्वारा मुख्यमंत्री सहायता कोष को करोडों रूपए का चंदा दिया जाना; ये कुछ उदाहरण हैं । सरकार वक्फ प्राधिकरण को इसकी आदत क्यों नहीं लगाती ? आप यह भेदभाव क्यों करते हैं ? पंढरपुर के विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर के पास १ सहस्र २०० एकर भूमि है; इसलिए वह मंदिर धनवान मंदिर माना जाता हो, तो ७७ सहस्र एकर भूमिवाले वक्फ प्राधिकरण को क्या कहा जाए ? आप इस भूमि का विवरण समाज से क्यों छिपा रहे हैं ? (७.१.२०२३)
अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर द्वारा सरकार से की गई मांगें !
१. वक्फ प्राधिकरण उनकी भूमि में प्रतिवर्ष कुछ न कुछ भूमि जोडता होगा । तो उसका हिसाब ठीक से रखा जा रहा है न ?, यह हमारा प्रश्न है । जनता को इसकी जानकारी मिले; इसके लिए ‘e-courts.gov.in’ अथवा ‘https://courts.mah.nic.in’ इन न्यायालयों के सरकारी जालस्थलों पर ‘महाराष्ट्र वक्फ प्राधिकरण’ का समावेश होने हेतु तत्काल कदम उठाए जाएं ।
२. अभी तक यह प्रक्रिया न अपनाने के लिए संबंधित अधिकारियों पर प्रशासनिक कार्यवाही की जाए ।
३. जानकारी उपलब्ध न होने के कारण वक्फ प्राधिकरण के कारण आनेवाले पक्षकार, उनके अधिवक्ता, साथ ही समाज को बडी असुविधा हो रही है । इसे ध्यान में लेकर वक्फ प्राधिकरण के कार्य की जानकारी छिपाने के इच्छुक छिपे रुस्तमों पर कार्यवाही की जाए । यह जानकारी जालस्थल पर उपलब्ध होने में और १० वर्ष लग सकते हैं अथवा लगाए जा सकते हैं; इसलिए यह होने तक एक स्वतंत्र जालस्थल एवं ‘एंड्रोइड एप्लिकेशन’ बनाकर यह जानकारी लोगों तक पहुंचाई जाए ।