१. राधा द्वारा किया आत्मनिवेदन तथा राधा के आत्मनिवेदन करने पर श्रीकृष्ण द्वारा किया उनका मार्गदर्शन
१ अ. राधा द्वारा श्रीकृष्ण को प्रार्थना के रूप में किया आत्मनिवेदन : ‘राधा नदी किनारे पानी भरने के लिए गईं । कृष्ण का स्मरण करते हुए व्याकुल होकर उनकी आंखों से अश्रुधारा बहने लगी । नदी उसे विराट रूप धारण किए समुद्र के समान दिख रही थी । समुद्र के दूसरे किनारे पर, उन्हें दूर पीले रंग की तेजस्वी; परंतु अस्पष्ट आकृति दिखाई दे रही थी । वह श्रीकृष्ण थे । उस आकृति को देखकर राधा के चेहरे पर हंसी आ गई तथा वे आनंद से उठकर खडी हो गईं । इतने में ही उन्हें दिखनेवाली आकृति लुप्त हो गई । उदास होकर वह नीचे बैठ गईं, तब उन्हें पानी में श्रीकृष्णतत्त्व दिखाई देने लगा । वह पानी नीले रंग का था तथा वहां वे आर्तता से विनती करने लगीं । राधा ने प्रार्थना की, ‘हे श्रीकृष्ण, हे ईश्वर, आप ही मुझे इस प्रसंग से तथा इस मायाजाल से मुक्त करें । एक ओर तो आपसे प्रेम करने के कारण मेरा मन आपके सगुण रूप की ओर आकर्षित होता है, तो दूसरी ओर ईश्वरप्राप्ति की मेरी लगन न्यून (कम) पड जाती है । आपके प्रति मेरा प्रेम आप ही न्यून करें तथा आपके सगुण रूप की ओर आने की इच्छा न्यून करें । हे ईश्वर, आप ही मेरे मन में ईश्वरप्राप्ति के विचार बढाएं तथा आपके निर्गुण रूप की ओर आने की लगन बढाएं ।’
१ आ. राधा के आत्मनिवेदन करने पर श्रीकृष्ण द्वारा किया उनका मार्गदर्शन : श्रीकृष्ण ने कहा, ‘सामान्य लोगों के लिए २ मार्ग हैं । एक है प्रेम का तथा दूसरा ईश्वरभक्ति का । तुम भक्ति के अंतर्गत प्रेमयोग से साधना कर रही हो, इस योग के अंत में ईश्वरप्राप्ति है । तुम जहां खडी हो, वहां दो मार्ग नहीं, एक ही मार्ग है । इस मार्ग के नीचे की ओर (अधोगति की ओर), अर्थात मुझ पर प्रेम है तथा ऊपर की ओर ईश्वरप्राप्ति है । तुम से दूर जाकर मैंने तुम्हारी अधोगति का मार्ग पूर्ण रूप से बंद कर दिया है । इसलिए तुम्हारे पास एक ही पर्याय है और वह है इस मार्ग पर उत्तरोत्तर चलते रहना । ऐसा हुआ, तो ‘मैं प्रत्येक क्षण तुम्हारे पास ही हूं’, इसकी तुम्हें अनुभूति होगी । तुम मधुरा भक्ति करते हुए मेरी ओर आने का प्रयत्न कर रही हो । तुम इसमें से ‘मधुरा’ अर्थात प्रेम शब्द में अटक गई हो तथा उसके आगे ‘भक्ति’ शब्द का विस्मरण कर दिया है । मेरी ओर प्रेमी के समान न देख, तुम्हें ‘आध्यात्मिक मार्गदर्शन कर ईश्वरप्राप्ति की दिशा में ले जानेवाले गुरु हैं’, इसका बोध रखो । जब तुम मुझे प्रेमी के रूप में स्मरण करोगी, तब मैं तुम्हें दर्शन नहीं दूंगा । जब ईश्वरप्राप्ति की लगन से तुम व्याकुल होगी, तब मैं गुरु बनकर तुम्हें दर्शन दूंगा ।’
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘रासलीला’)
२. राधा का आत्मनिवेदन तथा उस पर श्रीकृष्ण का मार्गदर्शन पढकर साधिका को सूझे सूत्र
२ अ. परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने साधकों को ‘गुरुकृपायोग’ का साधनामार्ग बताकर ‘ईश्वरप्राप्ति’ का ध्येय दिया, जिससे साधक उनमें नहीं अटकते : यह आत्मनिवेदन तथा मार्गदर्शन पढने पर मुझे यह समझ में आया, ‘इस जन्म में साक्षात ईश्वर गुरुरूप में अवतरित हुए हैं । उन्हें साधक तथा गोपियों को ईश्वरप्राप्ति की ओर लेकर जाना है ।’
‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी, इसी कारण आपने ‘गुरुकृपायोग’ साधनामार्ग बताया तथा साधकों को अपने में अटकने नहीं दिया । श्रीकृष्ण ने दूर जाकर राधा की अधोगति का मार्ग बंद किया; पर आपने हमें ‘ईश्वरप्राप्ति’ ध्येय के लिए प्रेरित कर ऊपर का मार्ग दिखाया । साधक ईश्वरप्राप्ति के मार्ग से जाते हैं; इसलिए उन्हें ईश्वर, अर्थात आप सतत उनके साथ हैं, इसकी अनुभूति होती है ।
साक्षात ईश्वर ने गुरुरूप में अवतार लिया तथा हमें अपने निकट रखा । ‘हे ईश्वर, यह आपकी ही कृपा है । ये विचार आपके ही हैं, इसलिए ये विचार आपके ही चरणकमलों में समर्पित करती हूं ।’
– कु. कौमुदी जेवळीकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२६.११.२०२०)