चैतन्य का वर्षाव करनेवाली प.पू. भक्तराज महाराजजी की गाडी के विषय में हुई अनुभूतियां !

देवद के सनातन के आश्रम में प.पू. भक्तराज महाराजजी की चैतन्यमय गाडी

(साधिका का भाव है कि ‘प.पू. भक्तराज महाराजजी की गाडी ‘रथ’ है’, इसलिए उसने गाडी को ‘रथ’ संबोधित किया है ।)

‘देवद आश्रम में प.पू. भक्तराज महाराज (प.पू. बाबा) द्वारा उपयोग में लाया ‘रथ’ (गाडी) है । प.पू. बाबा का रथ, देवद आश्रम के साधकों के लिए चैतन्य का वर्षाव ही है । प.पू. बाबा भले ही अब स्थूल से नहीं हैं, तब भी ‘वे रथ के माध्यम से स्थूल से भी हैं’, ऐसी अनुभूति अनेक साधकों को हो रही है । मैं जब देवद आश्रम में आई, तब प.पू. बाबा द्वारा उपयोग में लाए गए इस रथ के माध्यम से मुझे प.पू. बाबा को बहुत निकट से अनुभव करने का अवसर मिला । रथ के माध्यम से प.पू. बाबा ने विविध प्रकार से अनुभव करने को दी उनके अस्तित्व की अनुभूतियां कृतज्ञभाव से उनके चरणों में अर्पण कर रही हूं ।

वैद्या (कु.) माया पाटील

१. प.पू. भक्तराज महाराजजी का रथ केवल रथ नहीं, अपितु प्रत्यक्ष में प.पू. भक्तराज महाराज ही होना

प.पू. बाबा के रथ की प्रतिदिन पूजा की जाती है । तब ऐसा भाव रखकर पूजा करते हैं कि यह ‘रथ’ नहीं; अपितु प्रत्यक्ष में प.पू. बाबा ही हैं । मुझे देवद आश्रम में अनेक बार इस रथ की पूजा करने का अवसर मिला । रथ की पूजा करते समय प.पू. बाबा ने मुझे आगे दी अनुभूतियां दीं ।

२. अनुभूतियां

२ अ. पूजा करते समय हुई अनुभूतियां

२ अ १. पूजा की सेवा करने का केवल संदेश मिलने पर भी आनंद होना : मुझे ‘प.पू. बाबा के रथ की पूजा करनी है’, ऐसा केवल संदेश मिलने पर भी आनंद होता है । इसी से ध्यान में आता है कि प.पू. बाबा का सामर्थ्य कितना है !

२ अ २. कष्टदायक आवरण न्यून होना : हमारे आसपास कष्टदायक आवरण आया हो, तो पूजा करते समय वह तुरंत ही दूर हो जाता है । वैसे हमें आवरण निकालना पडता है; परंतु यहां आवरण निकालने की आवश्यकता ही नहीं पडती ।

२ अ ३. नामजप अपनेआप आरंभ होना : पूजा करते समय नामजप अपनेआप आरंभ होता है; अन्यथा कोई भी सेवा करते समय नामजप प्रयत्नपूर्वक करना पडता है ।

२ अ ४. मन के नकारात्मक विचार दूर होकर सकारात्मकता आना : मन के विरुद्ध कोई प्रसंग हुआ हो और उस विषय में मन में नकारात्मक विचार आ रहे हों, तो ऐसा लगता है कि ‘वे विचार जाने के लिए कौन-सा सकारात्मक विचार करना चाहिए ?’, यह प.पू. बाबा ही सुझाते हैं ।

२ अ ५. चूक स्वीकार पाना : ‘कोई चूक हो जाए और बुद्धि से भले ही यह ज्ञात हो, परंतु मन उसे स्वीकार नहीं पाता । तब ऐसा प्रतीत होता है कि प.पू. बाबा बताते हैं कि उसे मन से कैसे स्वीकार करना है ।

२ अ ६. प्रलंबित सेवा अपनेआप ध्यान में आना : कोई सेवा अथवा किसी को संदेश देना रह गया हो, तो पूजा करते समय अपनेआप ही उसका स्मरण होता है । संदेश का स्मरण होने पर वह महत्त्वपूर्ण संदेश था इसका और संदेश भूलने से हुई चूक का भी प.पू. बाबा की कृपा से भान होता है ।

२ अ ७. ‘कठिन प्रसंग में क्या करना है ?’, इस विषय में मार्गदर्शन मिलना : कुछ साधकों को चूक बताना अथवा कोई सूत्र बताना मुझे कठिन लगता था । तब पूजा करते समय प.पू. बाबा ही सुझाते और मुझे उस स्थिति तक भी ले जाते कि ‘चूक कैसे बतानी है अथवा वे सूत्र उस साधक को कैसे बताने हैं ?’ इससे चूक बताना अथवा प्रसंग संभालना सरल हो जाता था ।

२ आ. स्वसूचना सत्र अंतर्मन तक पहुंचना : प.पू. बाबा की गाडी के निकट स्वसूचना सत्र करने से ऐसा प्रतीत हुआ कि ‘वे शीघ्र अंतर्मन तक पहुंचते हैं ।’ वहां मन शीघ्र एकाग्र होता है ।

२ इ. पूजा करने से दिनभर की सेवाओं के लिए भरपूर चैतन्य मिलना : किसी दिन सेवा अधिक हो औेर दिनभर नामजपादि उपचार करने के लिए समय न मिलनेवाला हो, तो उसी दिन प.पू. बाबा के रथ की पूजा करने की सेवा मिलती है । इसलिए सवेरे ही दिनभर के लिए आवश्यक चैतन्य मिलता है । उस समय कृतज्ञता अनुभव होती है कि ‘प.पू. बाबा हमारा कितना ध्यान रखते हैं !’

२ ई. दाएं हाथ में वेदना होते समय भी बाएं हाथ से उतनी देर में पूजा कर पाना और ‘यह केवल प.पू. भक्तराज महाराज ही कर सकते हैं’, इसका भान होकर बहुत कृतज्ञता अनुभव होना : एक बार मेरे दाएं हाथ की कोहनी में बहुत वेदना हो रही थी । ‘डॉक्टर ने बताया कि ‘टेनिस एल्बो’ की बीमारी है । इसलिए मुझे प.पू. बाबा के रथ की पूजा करना संभव नहीं था; क्योंकि रथ अंदर ओैर बाहर से पोंछना होता है । इसमें दाएं हाथ की बहुत कसरत हो जाएगी; परंतु आश्रम में कुछ दिन साधकसंख्या अल्प थी । इसलिए रथ की पूजा करने के लिए कोई साधक नहीं था । तब विचार आया, ‘अब मैं पूजा कैसे करूंगी ?’ तदुपरांत मैंने प.पू. बाबा से प्रार्थना की, ‘मुझे पूजा तो करनी है और हाथ में भी वेदना हो रही है । अब मैं कैसे करूं ?’ तब ऐसा प्रतीत हुआ कि प.पू. बाबा ही सुझा रहे हैं कि ‘बाएं हाथ से पूजा करो ।’ प्रारंभ में मेरे मन में विचार आया, ‘बाएं हाथ से नहीं कर पाई अथवा बहुत समय लग गया तो ? अन्य सेवाएं भी अधिक हैं । तब क्या करूंगी ?’ पुन: प.पू. बाबा की कृपा से ही दूसरा विचार आया, ‘प.पू. बाबा ही करवानेवाले हैं ।’ इसलिए मैंने पूजा करना प्रारंभ किया और आश्चर्य की बात कि मैं अपने बाएं हाथ से बडी सहजता से पूजा कर पाई और वह समय पर पूर्ण भी हो गई । ‘यह चमत्कार केवल प.पू. बाबा ही कर सकते हैं’, इसका मुझे भान हुआ और मुझे बहुत कृतज्ञता लगी ।

२ उ. कुछ दिन पूजा करने पर ‘टेनिस एल्बो’ की वेदना थम जाना : कुछ दिनों में मेरे दाएं हाथ की वेदना कुछ न्यून हो गई; इसलिए मैंने उस हाथ से पूजा करना प्रारंभ किया । कुछ दिन पूजा करने के उपरांत मेरे दाएं हाथ की वेदना पूर्ण रूप से बंद हो गई । प्रत्यक्ष में ‘टेनिस एल्बो’ होने पर हाथ के हिलने-डुलने से वेदना और अधिक बढ जाती है; परंतु प.पू. बाबा की कृपा से हाथ की गतिविधि होने पर भी हाथ की वेदना थम गई ।

३. कृतज्ञता

प.पू. बाबा का रथ अर्थात ‘प.पू. बाबा’, यही समीकरण है । ‘प.पू. बाबा द्वारा उपयोग में लाई गई वस्तु में इतना चैतन्य है, तो प.पू. बाबा में कितना होगा !’, इसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती । प.पू. बाबा ने निर्जीव वस्तु को चैतन्य से प्रभारित कर, साधकों को आध्यात्मिक लाभ के लिए अनमोल देन दी है । इतना ही नहीं, अपितु उन्होंने स्वरचित और अपनी चैतन्यमय वाणी में गाए भजनों द्वारा संपूर्ण मानवजाति को चैतन्य का भंडार दिया है । ऐसे एकमेवाद्वितीय प.पू. बाबा के चरणों में कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करें, वह अल्प ही है ।

– वैद्या (कु.) माया पाटील, देवद आश्रम, पनवेल, महाराष्ट्र.