सनातन संस्था के आश्रम और सेवाकेंद्र में निवास करनेवाले साधकों का सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी एवं देवताओं के प्रति उच्च प्रति का भाव है । साधक जो भी सेवा करते हैं, उसे भावपूर्ण करने का प्रयास करते हैं । इसलिए उन्हें विविध अनुभूतियां होती हैं । यहां दिए हुए लेख में देहली के सनातन के सेवाकेंद्र में रहकर साधना करनेवाले कुछ साधकों को वर्ष २०२२ में दिवाली की अवधि में सेवाकेंद्र में दीप लगाने पर हुई अनुभूतियां प्रस्तुत हैं ।
१. सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के छायाचित्र पर दीपों का प्रतिबिंब देखकर ऐसा प्रतीत होना कि ‘साक्षात गुरुदेवजी ने ही आशीर्वाद दिया है एवं उनकी ही कृपा से देहली क्षेत्र में प्रचार हो रहा है !’
देहली स्थित सनातन के सेवाकेंद्र में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का बडा छायाचित्र लगा है । दिवाली के दिन सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने गुरुदेवजी के छायाचित्र के सामने ३ दीप जलाए । उन तीनों दीपों की ज्योति का प्रतिबिंब छायाचित्र में दिखाई दे रहा था । दीपों का प्रतिबिंब छायाचित्र में लिखे हुए ‘संस्थापक, सनातन संस्था एवं महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’, इस वाक्य के ‘संस्थापक, महर्षि एवं विश्वविद्यालय’, इन ३ शब्दों पर पडा था । (छायाचित्र क्र. १ देखें) उस दिन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की संगीत समन्वयक कु. तेजल पात्रीकर एवं अन्य २ साधक सेवाकेंद्र में उपस्थित थे । (दिवाली के समय देहली में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के साधकों का दौरा भी शुरू था ।) गुरुदेवजी के छायाचित्र पर दीपों का प्रतिबिंब दिखाई दिया । तब ऐसे लगा जैसे साक्षात गुरुदेवजी ने ही आशीर्वाद दिया है और उनकी ही कृपा से देहली क्षेत्र में प्रचार हो रहा है ।
गुरुदेवजी के छायाचित्र पर दीपों का प्रतिबिंब दिखाई दिया । तब ऐसे लगा जैसे साक्षात गुरुदेवजी ने ही आशीर्वाद दिया है और उनकी ही कृपा से देहली क्षेत्र में प्रचार हो रहा है ।
२. सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजीके छायाचित्र के सामने लगे दीपोंके प्रकाश के कारण छायाचित्रपर नीले रंग की परछाई पडना
भैयादूज के दिन शाम के समय गुरुदेवजी के छायाचित्र के सामने दीप लगाया था । तब उसके प्रकाश से छायाचित्र पर नीले रंग की परछाई पडी । वैसे परछाई काले रंग की होती है; परंतु यहां वह नीले रंग की पडी थी । सद्गुरु पिंगळेजी ने बताया, ‘‘गुरुदेव यहां सगुण रूप में आए हैं । गुरु की परछाई कभी भी काले रंग की नहीं होती । इसलिए वह नीले रंग की है ।’’
३. गुरुदेवजी के छायाचित्र के सामने कागद का एक कमल रखकर और छायाचित्र के सामने दीप लगाकर एक ही समय पर उस दीप के अलग-अलग चल दूरभाष द्वारा छायाचित्र खींचने पर ध्यान में आए सूत्र
अ. एक छायाचित्र में दीप की ज्योति का प्रतिबिंब छायाचित्र के नीचे बिछे हुए वस्त्र पर पडा । (छायाचित्र क्र. २ देखें) प्रत्यक्ष में उस वस्त्र पर पडी परछाई दिखाई नहीं दे रही थी; परंतु छायाचित्र में प्रतिबिंब दिखाई दे रहा है ।
आ. दूसरे छायाचित्र में कमल में ही दीप की संपूर्ण ज्योति आई है (छायाचित्र क्र. ३ देखें) । दीप की ज्योति अलग से नहीं दिखाई दे रही थी । इस विषय में सद्गुरु पिंगळेजी ने कहा, ‘‘ज्योति पूर्ण प्रभामंडल के साथ प्रकाशित हुई है । वह अंदर से प्रकाशित हुई है ।’’
इ. तीसरे छायाचित्र में कमल के बीच की पंखुडी पर ज्योति आई और अन्य स्थानों पर ज्योति अल्प आई है । उसके पास की पंखुडियां पीले रंग की दिखाई दे रही थीं ।
ई. सद्गुरु पिंगळेजी ने कहा, ‘‘साधकों के भावानुसार विविध छायाचित्र आए हैं ।’’
– कु. मनीषा माहुर, देहली (१०.११.२०२२)
इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक |