‘१४.११.२०२२ को मैं किसी सेवा के संदर्भ में बात करने के लिए श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी के पास गई थी । हमारी बातें समाप्त होने के उपरांत वे मुझसे कहने लगीं, ‘‘अब तुम चिंता न करो । अब अच्छे से सेवा करो । परमेश्वर की आरती !’’ यह सुनते ही मुझे बहुत आश्चर्य और आनंद हुआ । मुझे सदैव ही अपना नाम ‘परमेश्वर की आरती’, ऐसा लिखने की आदत है । मुझे मन से भी ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी परमेश्वर हैं तथा मैं उस परमेश्वर की हूं’, ऐसा ही लगता रहता है; परंतु मैंने यह बात कभी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को नहीं बताई थी; परंतु तब भी उनके द्वारा इस बात को बहुत प्रेमपूर्वक कहे जाने के कारण ‘मेरे अंतर्मन का भाव उनके चरणों तक पहुंच गया है’, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ तथा मेरा मन कृतज्ञता से भर आया ।
उसके उपरांत भी उनकी आवाज में ‘परमेश्वर की आरती’, इन शब्दों पर मेरा आलंबन हुआ तथा मेरा मन रोमांचित हुआ । उस समय मुझे एक भिन्न प्रकार का उत्साह प्रतीत हो रहा था । ‘हमारे संत ईश्वर स्वरूप हैं तथा इन सभी को तैयार करनेवाले परात्पर गुरु डॉक्टरजी परमेश्वर स्वरूप हैं’, ऐसा मुझे लगता है । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी के मुख से मैंने ‘परमेश्वर की आरती’, ये शब्द सुने तथा श्रीसत्शक्ति (श्रीमती ) सिंगबाळजी ईश्वर स्वरूप तथा परात्पर गुरु डॉक्टरजी परमेश्वर स्वरूप हैं, इसकी पुनः एक बार प्रतीति हुई । ‘हे गुरुदेवजी, ‘परमेश्वर की आरती’, ये केवल शब्द नहीं हैं । आपने इन शब्दों को सगुण में साकार किया तथा मुझे यह अनुभूति दी’, इसके लिए मैं आपके चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करती हूं ।’
– होम्योपैथी डॉ. (सुश्री) आरती तिवारी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२०.११.२०२२)
इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक |