‘एक बार मैं एक सूत्र के संदर्भ में बात करने के लिए श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के पास गई थी । हमारी बात समाप्त होने पर उन्होंने मुझसे कहा, ‘‘अब तुम चिंता न करो, अच्छी सेवा करो; परमेश्वर की आरती !’’ उस समय मुझे आश्चर्य होकर आनंद हुआ । मुझे सदैव स्वयं का नाम ‘परमेश्वर की आरती’ लिखने की आदत है । मुझे मन से भी ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी परमेश्वर हैं तथा मैं उस परमेश्वर की हूं’, ऐसा ही लगता रहता है; परंतु मैंने यह बात कभी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को नहीं बताई थी; परंतु तब भी उन्होंने मुझे प्रेमपूर्वक वैसा कहा, उसके कारण ‘मेरे अंतर का भाव उनके चरणों तक पहुंचा’, ऐसा प्रतीत हुआ तथा उससे मेरा मन कृतज्ञता से भर आया ।
उसके उपरांत भी मेरे द्वारा उनकी आवाज में कहे गए ‘परमेश्वर की आरती’ शब्द का आलंबन होकर मेरा मन रोमांचित हुआ । ‘हमारे संत ईश्वर स्वरूप हैं तथा उन्हें तैयार करनेवाले परात्पर गुरु डॉक्टरजी परमेश्वर स्वरूप हैं’, ऐसा मुझे लगता है । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के मुख से मैंने ‘परमेश्वर की आरती’ शब्द सुना तथा उससे मुझे श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी के ईश्वरस्वरूप होने की तथा परात्पर गुरु डॉक्टरजी के परमेश्वर स्वरूप होने की प्रतीति पुन: एक बार हुई । ‘हे गुरुदेवजी, ‘परमेश्वर की आरती’, ये केवल शब्द नहीं हैं, अपितु आपने इन शब्दों को सगुण में साकार किया तथा मुझे यह अनुभूति दी’, इसके लिए मैं आपके चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करती हूं ।’
– होम्योपैथी डॉक्टर (सुश्री) आरती तिवारी, फोंडा, गोवा. (२०.११.२०२२)