सप्तर्षियों द्वारा जीवनाडी-पट्टिका में बताए अनुसार श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी १४.११.२०२२ को आंध्र प्रदेश में स्थित पिठापुरम् गई थीं । उस समय पिठापुरम् में हुई दैवीय लीला आगे दी है ।
१. पिठापुरम् के दत्तमंदिर में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा हिन्दू राष्ट्र के लिए प्रार्थना करना
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने पुजारियों से कहा, ‘‘हम यहां हिन्दू राष्ट्र के लिए प्रार्थना करने आए हैं ।’’ तब पुजारियों ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को सनातन के ३ गुरुओं के नाम से गर्भगृह में ३ नारियल बांधने के लिए कहा । नारियल लाने तक पुजारियों ने श्री दत्तपादुकाओं पर अभिषेक किया तथा श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को गर्भगृह की देहरी (दहलीज) के निकट आकर श्री दत्तपादुका के दर्शन करने के लिए कहा । पादुका के दर्शन करते ही श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी की भावजागृति हुई । उस समय उनकी स्थिति विलक्षण थी । मानो वे अपनी आंखों में छलके भावाश्रुओं से श्री दत्तगुरु की पादुका पर अभिषेक कर रही थीं ।
२. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को हुए श्री दत्तगुरु के दिव्य दर्शन तथा अनुभव हुई दैवीय लीला !
२ अ. श्री दत्तगुरु की मूर्ति से श्री दत्तगुरु का ही श्वेत दाढीधारी वृद्ध व्यक्ति के रूप में आना : श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी श्री दत्तगुरु की मूर्ति की ओर देखकर प्रार्थना कर रही थीं, उस समय उन्हें श्री दत्तगुरु की मूर्ति से सूक्ष्म से एक श्वेत दाढीधारी वृद्ध व्यक्ति बाहर निकलता दिखाई दिया । ‘वे ही श्री दत्तगुरु हैं’, ऐसा उन्हें प्रतीत हुआ ।
२ आ. सूक्ष्म से श्री दत्तगुरु की मूर्ति से बाहर निकले उस वृद्ध व्यक्ति की भांति ही एक वृद्ध पुजारी का वहां आना तथा इससे श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी द्वारा श्री दत्तगुरु ने ही ‘मैं वही अत्रिपुत्र दत्तात्रेय हूं’, इसकी साक्ष्य देने की बात बताना : उतने में एक श्वेत दाढीवाले वयोवृद्ध व्यक्ति वहां जल्दबाजी में आए तथा वे गर्भगृह में चले गए । कुछ समय पश्चात वे गर्भगृह से बाहर निकले । उनकी ओर देखकर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी उनके पीछे-पीछे चलने लगीं । उस समय हम साधकों को ‘यह क्या हो रहा है ?’, यही समझ में नहीं आ रहा था । हाथ में ३ नारियल लेकर वे उस पुजारी की वेशभूषाधारी दादाजी के पीछे दौड रही थीं । कुछ दूर पैदल चलने के उपरांत दादाजी ने पीछे मुडकर देखा और वे रुक गए । उन दादाजी की ओर देखकर पुनः एक बार श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी की भावजागृति हुई । उस समय वे एक भिन्न ही स्थिति में थीं । उन्होंने हम साधकों को बताया, ‘‘मुझे सूक्ष्म से श्री दत्तगुरु की मूर्ति से श्वेत दाढीधारी वृद्ध व्यक्ति बाहर निकलता दिखाई दिया था । अब वैसा ही व्यक्ति हमारे सामने आया है । इससे श्री दत्तगुरु ने ‘मैं वही अत्रिपुत्र दत्तात्रेय हूं’, इसकी साक्ष्य दी है ।’’
२ इ. दादाजी की ओर देखते ही श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी का भगवान से मिलने के आनंद में भावविभोर हो जाना : श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने उन दादाजी की ओर देखकर भावविभोर स्थिति में ही उनसे पूछा, ‘‘दादाजी, आप इस मंदिर में कबसे सेवा कर रहे हैं ?’’ उस पर दादाजी कहने लगे, ‘‘हे मां, मैं तो इस मंदिर के जन्म से ही इस मंदिर में हूं । मेरा जन्म वर्ष १९४२ में हुआ ।’’ यह सुनते ही श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के मुख पर भगवान से मिलने का आनंद दिख रहा था ।
३. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के श्री महालक्ष्मी होने की मिली साक्ष्य !
३ अ. दादाजी का श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को अपनी मां तथा समस्त विश्व का भरणपोषण करनेवाली ‘आदिशक्ति’ कहकर उनमें विद्यमान देवत्व का भान करा देना : श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी की ओर देखकर दादाजी कह रहे थे, ‘‘हे मां, आप ही मेरी मां हैं । आप केवल मां नहीं हैं, अपितु समस्त जगत का भरण-पोषण करनेवालीं ‘आदिशक्ति’ हैं । मेरे जन्म से लेकर अभी तक आप ही मेरा भरण-पोषण करती आई हैं ।’’
वास्तव में वहां ‘भगवान’ आए थे । श्री दत्तगुरु ने उन बूढे दादाजी के माध्यम से अपनी साक्ष्य दी । श्री दत्तगुरु ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को उनमें विद्यमान देवत्व का अर्थात आदिशक्तितत्त्व का भान करा दिया, किंबहुना वे उसके लिए ही वहां आए होंगे; क्योंकि दादाजी कहने लगे, ‘‘श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ही उनका भरण-पोषण कर रही हैं ।’’
३ आ. दत्तगुरु प्रतिदिन भिक्षा मांगने के लिए दोपहर १२ बजे कोल्हापुर में श्रीमहालक्ष्मी के पास आते हैं तथा उसी समय दादाजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी की भेंट हुई । इस माध्यम से श्री दत्तगुरु ने दिखा दिया कि वे महालक्ष्मी हैं ।
३ इ. सप्तर्षियों द्वारा किए गए नाडीपट्टिका के वाचन में भी उन्होंने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी का उल्लेख ‘श्रीदेवी’, ऐसा किया है तथा पृथ्वी पर ‘श्रीदेवी का’ वास कोल्हापुर में है, यह बात तो सर्वविदित है ।
४. श्रीविष्णु एवं श्री महालक्ष्मी की दैवीय लीला
भगवान भक्त के पास आते हैं; परंतु ‘वे ईश्वर ही हैं’, यह बात उस भक्त की समझ में आएगी, ऐसा आवश्यक नहीं । श्रीमहालक्ष्मी स्वरूप श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को दर्शन देने के लिए श्री दत्तगुरु का वृद्ध पुजारी के रूप में आना, यह भक्त एवं भगवान की भेंट नहीं, अपितु एक दैवीय लीला थी । यह श्रीविष्णु एवं श्री महालक्ष्मी की लीला थी । वह हम भक्तों के लिए थी । इस दैवीय भेंट में कुछ ही क्षण में श्री दत्तगुरु ने ‘मैं स्वयं पृथ्वी पर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के रूप में विराजमान हूं’, यह संदेश दिया तथा ‘श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी के रूप में सर्वत्र दैवीय भ्रमण करनेवाली साक्षात श्रीमहालक्ष्मी हैं’, इसका भी भान करा दिया । इसके लिए हम सभी सनातन के साधक दत्तगुरुस्वरूप गुरुदेवजी के चरणों में तथा श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ हैं ।’
– श्री. विनायक शानभाग (आध्यात्मिक स्तर ६७ प्रतिशत), भाग्यनगर, तेलंगाना. (१६.११.२०२२)
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी पर श्री दत्तगुरु की कृपा तथा दैवीय लीला !१. दत्त तीर्थस्थलों के पास तथा दत्तजयंती के दिन जन्म होना : श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी का जन्म दत्तजयंती के दिन हुआ है । उनका जन्म सांगली में हुआ है । सांगली के निकट ही नृसिंहवाडी एवं औदुंबर, ये २ प्रमुख दत्तक्षेत्र हैं । ये सभी संयोग नहीं, अपितु ‘दैवीय लीलाएं’ हैं, यही कहना पडेगा । २. सप्तर्षियों का नाडीपट्टिका में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी को श्री दत्तगुरु के रूप में देखने के लिए कहना : वर्ष २०२२ की गुरुपूर्णिमा को सप्तर्षियों ने बताया था, ‘साधक गुरुदेवजी की ओर श्री दत्तगुरु के रूप में देखें ।’ वयोवृद्ध पुजारी ने उनका जन्म १९४२ में हुआ, ऐसा बताया । गुरुदेवजी का जन्मवर्ष भी १९४२ है । इससे श्री दत्तगुरु ने यह दिखा दिया कि श्री दत्तगुरु एवं प.पू. डॉक्टरजी एक ही हैं ।’ ३. श्री दत्तगुरु का श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को ३ बार मनुष्यरूप में दर्शन देना : वर्ष २००८ में माणगांव (प.प. वासुदेवानंद टेंबेस्वामीजी का स्थान, कुडाळ, महाराष्ट्र) एवं वर्ष २०१३ में भिक्षालिंगस्थान में (कोल्हापुर के भिक्षापात्र को) श्री दत्तगुरु ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को मनुष्य रूप में दर्शन दिया था । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने कहा, ‘‘कुछ वर्ष साधना होने पर श्री दत्तगुरु ने तीसरी बार वृद्ध पुजारी के रूप में साक्ष्य दी ।’’ – श्री. विनायक शानभाग |
श्रीक्षेत्र पिठापुरम् की दिव्य महिमापिठापुरम् श्री दत्तगुरु के प्रथम अवतार श्रीपाद श्रीवल्लभजी का जन्मस्थान है । पिठापुरम् के श्रीकुक्कुटेश्वर मंदिर परिसर में दत्तावतार श्रीपाद श्रीवल्लभजी का जन्मस्थान है । वहां गूलर वृक्ष के पास स्थित एक छोटे मंदिर में श्री दत्तगुरु की स्वयंभू मूर्ति है । भक्त के मन में कोई इच्छा अथवा मनौती हो, तो वह पूर्ण होने के लिए श्री दत्तगुरु के गर्भगृह में नारियल बांधने की प्रथा है । – श्री. विनायक शानभाग |
इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक |