गुरुदेवजी, श्री गुरु का जन्मोत्सव मनाने के संदर्भ में भी ‘आप ही विजयी हुए, हम पराजित !’
वर्ष २०१५ से सनातन का मार्गदर्शन करनेवाले विभिन्न महर्षियों की आज्ञा का पालन करने की दृष्टि से साधक गुरुदेवजी का जन्मदिवस मना रहे हैं ।
वर्ष २०१५ से सनातन का मार्गदर्शन करनेवाले विभिन्न महर्षियों की आज्ञा का पालन करने की दृष्टि से साधक गुरुदेवजी का जन्मदिवस मना रहे हैं ।
‘इस समारोह में गुरुदेवजी का उनके सहस्रों साधक भक्तों के साथ दर्शन करना’, यह मेरे लिए आनंददायी एवं उत्साहवर्धक अनुभव था । ‘इन साधक भक्तों के पांव की धुल भी अत्यंत पवित्र है’, ऐसा मुझे लग रहा है ।
अनेक विषयों की शिक्षा लिए बिना भी किसी व्यक्ति को उस विषय का ज्ञान होना बिल्कुल दुर्लभ है ! ऐसे व्यक्ति को यदि भविष्य की घटनाओं की सूक्ष्मदृष्टि प्राप्त हो, तो कहा जाएगा कि ‘वह व्यक्ति एकमेवाद्वितीय ही है’ । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के संदर्भ में यह बात सटीक मेल खाती है ।
वे उनके साथ आए प्रत्येक साधक का नाम लेकर मुझे पूछते, ‘क्या उनका भोजन हो गया ?’ यदि मैं एवं हमारे साथ आए साधकों ने भोजन न किया हो, तो वे हमें भोजन करने के लिए कहते ।
महर्षिजी का परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी संकलित सनातन के ग्रंथों को ‘ॐकार वेद’ संबोधित करना
‘भगवान के आंतरिक सान्निध्य में रहना’, यह ज्ञान होने के लिए गुरुदेवजी की आवश्यकता होती है ।
वर्ष २०१७ में मैंने एक बार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी को सुझाया था, आपका स्थान सभी से भिन्न है । वह अलग ही होना और दिखाई भी देना चाहिए । क्या हम सभी आपके नाम के पहले भिन्न उपाधि लगाएं ?’ इस पर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी ने कहा, ‘‘अभी उसका विचार नहीं करना है ।’’
मुजफ्फरपुर बिहार के साधक सोहम मिश्रा (आयु १६ वर्ष) ने CBSE के १० वीं बोर्ड की परीक्षा में ९५.२ % अंक प्राप्त किये। इसके साथ ही अपने विद्यालय (अंबिका भवानी पब्लिक स्कूल) में दूसरा स्थान भी प्राप्त किया ।
वर्ष २०१७ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के समय उन्होंने बताया था, ‘आज महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के अंतर्गत संगीत के माध्यम से साधना करने हेतु ‘संगीत से संबंधित कार्य आरंभ किया गया है ।’ उनके इस संकल्प के कारण ही यह कार्य अल्पावधि में बढता गया तथा प्रतिदिन बढता ही जा रहा है ।
निरपेक्ष प्रीति के उच्च बिंदु हैं सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ! उनमें भगवान के सभी गुणों की प्रतीति होती है । अपना कोई भी भिन्न दल न रखकर सहजता के साथ साधकों के स्तर पर आकर उनके साथ रहने के संदर्भ में साधकों द्वारा अनुभव किए हुए कुछ क्षण यहां दे रहे हैं !