गुरुकृपायोग में ‘ज्ञानयोग’ भक्तियोग के अंतर्गत आता है !

कलियुग में भक्तियोग के अनुसार साधना कर शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति करना संभव है । इसके लिए ‘गुरुकृपायोग’ भक्तियोगप्रधान है । गुरुकृपायोग के अनुसार साधना करते समय साधक को आवश्यकता के अनुसार अन्य साधनामार्ग भी सिखाए जाते हैं ।

गुरुकृपायोगानुसार साधना में स्वभावदोष और अहं-निर्मूलन की प्रक्रिया को ६० प्रतिशत महत्त्व होने का कारण

साधना करनेवाले जीवों की साधना उनका प्रारब्ध और संचित नष्ट करने के लिए उपयोग की जाती है । इसीलिए साधकों की प्रगति की (आध्यात्मिक उन्नति की) गति अल्प होती है ।