‘ईश्वर प्रत्येक युगपरिवर्तन के काल में विविध अवतारों के माध्यम से युगपरिवर्तन की प्रक्रिया सूक्ष्म और स्थूल से करते हैं । वर्तमान में भी एक सूक्ष्म युगपरिवर्तन का काल जारी है । इस काल में ईश्वर का कार्य सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के माध्यम से हो रहा है; इसलिए महर्षिजी ने विविध नाडीपट्टिकाओं में उनका उल्लेख ‘ईश्वर का अवतार’, ‘श्रीविष्णु का अवतार’, ‘श्रीजयंतावतार’ जैसे विविध नामों से किया है । ऐसे इस ‘अवतार’के कार्य की नाडीपट्टिका में वर्णन की हुईं गुणविशेषताएं सारांश में आगे दी हैं ।
१. युगों के अनुसार श्रीविष्णु के अवतार और उनके कार्य !
१ अ. सत्ययुग : सत्ययुग में भगवान ने मत्स्य, कूर्म, वराह और नरसिंह, ऐसे ४ प्रमुख अवतार धारण किए थे । भगवान के ये अवतारकार्य पृथ्वी पर निर्मिति, सृजन, पालन और धर्माचरण से संबंधित थे । भगवान ने मत्स्यरूप में सप्तर्षि की रक्षा कर पृथ्वी का बीज बचाया । मछली का रूप धारण कर श्रीविष्णु ने प्रलयकाल में आपद्बंधु के रूप में (संकटकाल में बंधु समान) सप्तर्षि का संरक्षण दिया ।
१ आ. त्रेतायुग : त्रेतायुग में भगवान ने वामन अवतार धारण किया । तदुपरांत उन्होंने परशुराम अवतार धारण किया और अंत में श्रीरामावतार धारण कर रामराज्य की स्थापना की । श्रीरामावतार के उपरांत त्रेतायुग का अंत हुआ ।
१ इ. द्वापरयुग : द्वापरयुग में श्रीकृष्णावतार धारण करने से भगवान की महिमा अनेक गुना बढ गई; कारण वह पूर्णावतार था । आश्चर्य की बात यह है कि श्रीकृष्णावतार समाप्त होते ही कलियुग का आरंभ हो गया । कलि के प्रवाह में भगवान ने कोई प्रतिबंध नहीं लगाया; क्योंकि वह उन्हीं की इच्छा थी !
१ ई. श्रीविष्णु के अंशावतार : भगवान द्वारा तीन युगों में लिए ८ प्रमुख अवतारों का उल्लेख शास्त्रों के साथ ही ऋषि-मुनियों के वाङ्मय (के साहित्य) में मिलता है । इन ८ प्रमुख अवतारों सहित भगवान ने अनेक अवतार धारण किए हैं; परंतु उनके कार्य और प्रकट शक्ति सीमित होने से उन्हें ‘अंशावतार’ अथवा ‘अंशअंशावतार’ कहा गया है ।
२. कलियुग के ‘श्रीजयंतावतार’ !
अब कलियुग आरंभ हुए ५ सहस्र से भी अधिक वर्ष पूर्ण हो गए हैं । गत २ सहस्र वर्षाें में भगवान श्रीविष्णु ने अनेक अंशअंशावतार धारण किए । कलियुग के इस चरण में सप्तर्षि की मधुर वाणी और लेखनकार्य के कारण सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी श्रीविष्णु के अंशावतार ‘श्रीजयंतावतार’ के रूप में हमारे सामने आए हैं । बहुतांश समय भगवान के पृथ्वी पर अवतार धारण करने पर ‘वह अवतार है’, इससे समाज अनभिज्ञ होता है । इसका कारण है भगवान की माया !
भगवान की माया इतनी प्रबल होती है कि शिष्यों को लगता है कि ‘गुरुरूप में अवतार, कोई अवतार नहीं अपितु वे गुरु ही हैं !’, गुरु को पता होता है कि वे अवतार हैं; परंतु अवतारी भगवान की ही सत्ता संपूर्ण सृष्टि पर चलती है, तो शिष्य भी क्या करेंगे ? भगवान की यह लीला अगाध है ।
२ अ. श्रीजयंतावतार के कार्य की विशेषताएं : कलियुग में श्रीविष्णु द्वारा धारण किया ‘श्रीजयंतावतार (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले)’ यह अनोखा अवतार है; क्योंकि इस अवतार में उनके सर्वाधिक कार्य सूक्ष्मस्तर पर हैं । श्रीजयंतावतार के सूक्ष्म कार्य के कुछ चुनिंदा पहलू आगे दिए हैं ।
१. निद्रित हिन्दू समाज को मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर पर जागृत करना (केवल शब्दों से नहीं, अपितु चैतन्य से जागृत करना, जिससे समाज पुन: निद्राधीन नहीं होगा ।)
२. पृथ्वी पर विविध स्थानों पर ईश्वरप्राप्ति के लिए प्रयत्नशील साधक-जीवों को आंतरिक प्रेरणा होने से उनका सनातन संस्था के माध्यम से एकत्र आना
३. कालप्रवाह में सनातन धर्म के नाम पर निर्माण हुई अयोग्य रूढि-परंपराओं का निर्मूलन करना, हिन्दुओं के मन पर उचित संस्कार अंकित करना और उसे बनाए रखने के लिए हिन्दू राष्ट्र का संकल्प करना
४. धर्मज्ञान लोगों तक सरल शब्दों में पहुंचाना, उसके लिए नई-नई पद्धतियों को ढूंढ निकालना और सरल-सुलभ शब्दों में प्रस्तुत धर्मज्ञान स्वीकार कर हिन्दू समाज द्वारा आचरण में लाना ।
५. सनातन धर्म जीवन में उतारनेवाले, धर्मज्ञान का आचरण करने के लिए दीपस्तंभ सिद्ध होनेवाले साधक, संत और सद्गुरु निर्माण कर, उन्हें प्रकाश में लाना, साथ ही ‘सनातन धर्म का पालन करने से ईश्वरप्राप्ति होती है और जीवन आनंदमय बना सकते हैं’, इस विषय में समाज को आश्वस्त करना ।
३. श्रीविष्णु के ‘श्रीजयंतावतार’ के श्री चरणों में प्रार्थना !
‘हे श्रीविष्णु, श्रीजयंतावतार का सूक्ष्म कार्य पृथ्वी पर कुछ संतों ने पहचान लिया है और ऋषियों ने जीवनाडी-पट्टिका के माध्यम से गुरुदेवजी के सूक्ष्म कार्य का परिचय दिया है । तब भी इतना ही कहा जा सकता है कि ‘ज्ञात-अज्ञात स्रोतों से अब तक हुई गुरुदेवजी की पहचान अपूर्ण ही है ।’ गुरुदेवजी के चरणों में प्रार्थना है, ‘भविष्य में भी अनेक स्रोतों द्वारा आपकी धर्मसंस्थापना के सूक्ष्म के कार्य की विस्तारपूर्वक पहचान हम सभी साधकों को हो और हम सभी उसका आनंद लेते हुए और अधिक वेग से साधना करें ।’
– श्री. विनायक शानभाग (आध्यात्मिक स्तर ६७ प्रतिशत), कांचीपुरम्, तमिलनाडु. (१३.५.२०२४)