बांग्लादेश के हिन्दुओं की रक्षा हेतु धर्मनिष्ठता तथा अपनी लडाकू वृत्ति के कारण निरंतर लडनेवाले पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोषजी !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के प्रति अपार श्रद्धा तथा कृतज्ञता रखनेवाले ‘बांग्लादेश माइनॉरिटी वॉच’ संगठन के संस्थापक पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोषजी (आयु ७३ वर्षे) फरवरी २०२४ में नई देहली के ‘एम्स’ चिकित्सालय में उपचार ले रहे थे । उस समय सनातन संस्था के धर्मप्रचारक श्री. अभय वर्तक एवं साधक श्री. गिरीश पुजारी ने पू. घोषजी से सद्भावना भेंट की । इस अवसर पर उनकी पत्नी श्रीमती कृष्णा घोष (आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत) उपस्थित थीं । उनसे वार्तालाप करते समय पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोषजी के संदर्भ में प्रतीत सूत्र यहां दे रहे हैं । बीमार पू. घोषजी के साथ किए वार्तालाप में बांग्लादेश के हिन्दुओं की रक्षा हेतु जागृत उनकी जाज्ज्वल्य लगन दिखाई दी । यही सच्ची धर्मनिष्ठता तथा लडाकूवृत्ति है ।

(बाईं ओर से) श्री. गिरीश पुजारी, श्री. अभय वर्तक, एवं पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोषजी

बांग्लादेश के हिन्दुओं के लिए प्राणों की बाजी लगाकर लडनेवाले ‘बांग्लादेश माइनॉरिटी वॉच’के संस्थापक अधिवक्ता रवींद्र घोष ३१ मई २०१९ को संतपद पर विराजमान !

‘स्वयं पर अनेक प्राणघातक आक्रमण होकर भी उनकी चिंता न कर इस्लामी देश बांग्लादेश के हिन्दुओं के लिए प्राणों की बाजी लगाकर लडनेवाले, उनके आधारस्तंभ, बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानी तथा ‘बांग्लादेश माइनॉरिटी वॉच’के संस्थापक अधिवक्ता रवींद्र घोष उनके निष्काम कार्य के कारण संतपद पर विराजमान हुए हैं ।’, यह घोषणा हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने अष्टम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में ३१ मई २०१९ को की थी । पति के कंधे से कंधा मिलाकर साहस के साथ हिन्दुत्व का कार्य करनेवाली तथा धर्माचरण करनेवाली पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोषजी की पत्नी श्रीमती कृष्णा घोष के द्वारा ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होने की भी घोषणा की गई थी ।

१. उपचार पूर्ण होने पर बांग्लादेश जाकर हिन्दुओं की रक्षा हेतु पुनः क्रियाशील होने हेतु प्रतिबद्ध !

कमर में घाव होने के कारण निरंतर तीसरी शल्य क्रिया करवाने के लिए चिकित्सालय में उपचार ले रहे पू. रवींद्र घोषजी की ओर देखकर प्रतीत हुआ की ‘वे सकारात्मक एवं स्थिर हैं ।’ शारीरिक कष्ट होते हुए भी वे बांग्लादेश के हिन्दुओं की रक्षा हेतु निरंतर क्रियाशील हैं । उनकी बातों से बार-बार यह ध्यान में आया कि शल्य क्रिया तथा उपचार पूर्ण होते ही वे बांग्लादेश की राजधानी ढाका जाकर वहां के हिन्दुओं की रक्षा हेतु तुरंत क्रियाशील होने का नियोजन कर रहे हैं तथा उसके लिए वे प्रतिबद्ध हैं । कुछ ही दिन पूर्व वहां के हिन्दुओं पर आक्रमण बढ रहे हैं, तो अनेक पद्धतियों से कैसे वहां के हिन्दुओं को सहायता मिल सकेगी ? इस संदर्भ में वे चिंतन कर लगन से प्रयासशील हैं । इस अवसर पर पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोषजी ने स्मरणपूर्वक ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी को मेरा प्रणाम बोलिए’, ऐसा बताया ।

२. संगठन कार्य में निरपेक्षता

साधकों के प्रति उन्हें कितना अपनापन लगता है, यह उनकी बातों से बार-बार प्रतीत हो रहा था । पू. घोषजी को आर्थिक समस्याएं होते हुए भी वे सकारात्मक एवं स्थिर हैं । उन्होंने कहा कि वे आर्थिक नियोजन कर इस परिस्थिति में भी अगले उपचार के लिए तत्पर हैं । इस अवसर पर ‘अत्यंत पारदर्शिता के साथ तथा निरपेक्षता से संगठन का कार्य करते समय पू. घोषजी कितने निरपेक्ष हैं, इसका दर्शन कराकर उन्होंने समस्त हिन्दू संगठनों के परिवारों के सामने एक आदर्श स्थापित किया है’, यह हमारे ध्यान में आया ।

पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोषजी और श्रीमती कृष्णा घोष

‘‘बांग्लादेश के हिन्दुओं की रक्षा करना तथा उनके मानवाधिकारों के लिए लडते रहना ही मेरी साधना है । बांग्लादेश में मैं तलवार अथवा बम के बल पर नहीं, अपितु साधना के बल पर कार्य कर रहा हूं । इस कार्य में मुझे मेरी धर्मपत्नी का भी सहयोग प्राप्त हुआ ।’’, ऐसे उद्गार पू. रवींद्र घोषजी ने संत सम्मान समारोह के समय व्यक्त किए ।

३. निरंतर वर्तमान में रहकर उत्साह के साथ परिस्थिति का स्वीकार कर आगे बढना !

पू. घोषजी बांग्लादेश के हिन्दुओं की रक्षा के ध्येय से प्रेरित होने से वे निरंतर वर्तमान में रहकर उत्साह के साथ परिस्थिति का स्वीकार कर आगे बढ रहे हैं । वास्तव में वयोवृद्ध होते हुए भी वे स्वयं की साधना, अधिवक्ता के कार्य हेतु आवश्यक बुद्धि, सकारात्मकता, व्यापकता, प्रेमभाव, धर्मनिष्ठता तथा लडने की वृत्ति के कारण वे आज भी युवकों के लिए प्रेरणास्रोत तथा आदर्श धर्माभिमानी योद्धा हैं ।

४. निरंतर आंतरिक सान्निध्य तथा हिन्दुओं की रक्षा की लगन

जब हम पू. घोषजी से मिले, उस समय वे बहुत आनंदित हुए । हम उनके स्वास्थ्य का हाल पूछने हेतु चिकित्सालय गए थे । हम उन्हें पूछ रहे थे, ‘आप पर कौनसी शल्य क्रिया की जानी है ? वह कितने बजे होगी ?’; परंतु वे इन प्रश्नों के संक्षेप में उत्तर देकर तुरंत ही आगे पूछते थे कि बांग्लादेश में हिन्दुओं पर बहुत अत्याचार किए जा रहे हैं; परंतु क्या आप मेरे समाचार पढते हैं ? मैं सब भेजता रहता हूं । क्या दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में ये समाचार प्रकाशित किए जाते हैं ? उन समाचारों का आगे क्या होता है ? वर्तमान समय में बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रही आक्रमण की घटनाओं के संदर्भ में क्या हम विदेशमंत्री डॉ. एस. जयशंकर से मिल सकते हैं ?’ जैसे विभिन्न प्रश्न वे प्रति २ मिनट पश्चात निरंतर पूछ रहे थे । बीच में ही थोडा रुककर पुनः ‘बांग्लादेश में हिन्दुओं पर बहुत अत्याचार हो रहे हैं । उनके लिए कुछ करना पडेगा’ हमें यह ज्ञात था कि उन्हें कुछ आर्थिक समस्याएं हैं; परंतु प्रत्यक्ष में उन्हें कहीं भी उस विषय में एक शब्द नहीं बोला । उन्हें सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी के प्रति श्रद्धा तथा उनके प्रति कृतज्ञता उनकी विभिन्न कृतियों तथा शब्दों से निरंतर प्रतीत हो रही थी । संत तथा आध्यात्मिक अधिकारी व्यक्तियों को पहचानकर विश्व को उनके अधिकार तथा कार्य का परिचय करानेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी हम सभी के लिए तथा समष्टि के लिए कितना कर रहे हैं, यह समझ में आए; इसके लिए ही यह सब घटित हुआ है, यह हमारे ध्यान में आया तथा अपार कृतज्ञता प्रतीत हुई ।

– श्री. अभय वर्तक एवं श्री. गिरीश पुजारी, नई देहली. (२९.२.२०२४)