छायाचित्रमय जीवनदर्शन ग्रंथ के ‘यू.ए.एस.’ परीक्षण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल ४८६ मीटर पाया गया !
१. परात्पर गुरुदेवजी के अवतारी कार्य का परिचय करानेवाली, साथ ही उनके चैतन्यमय चित्रों के कारण साधकों को भावविभोर करनेवाली ग्रंथमाला !
‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी की जीवनयात्रा अखिल मानवजाति को ज्ञात हो’, इसके लिए उसे ‘परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का जीवनदर्शन’ ग्रंथमाला के नाम से प्रकाशित की गई है । अभी तक इसके ६ भाग प्रकाशित हुए हैं । इसमें परात्पर गुरुदेवजी का अवतारी कार्य, उनकी देह में आए दैवी परिवर्तन आदि जानकारी चित्रों सहित तथा सुंदर ढंग से प्रस्तुत की गई है ।
इस ग्रंथ में समाहित गुरुदेवजी की विभिन्न भावमुद्राएं, उनकी सुंदर व मनमोहक हंसी तथा उनकी कृपावत्सल दृष्टि दर्शानेवाले छायाचित्र देखकर साधकों की भावजागृति होती है । यह ग्रंथ हाथ में लेने पर साधक तथा पाठकों को प्रसन्नता प्रतीत होना, भाव उमड आना, आनंद का अनुभव होना, शांति प्रतीत होना आदि अनुभूतियां हो रही हैं । इस ग्रंथ के कारण अनेक लोगों को परात्पर गुरुदेवजी के अस्तित्व का अनुभव होता है, साथ ही साधना हेतु प्रेरणा भी मिलती है ।
२. ‘यू.ए.एस.’उपकरण के द्वारा ग्रंथ का परीक्षण करने पर ग्रंथ में नकारात्मक ऊर्जा दिखाई न देकर, ४८६ मीटर तक की सकारात्मक ऊर्जा पाई जाना
‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यू.ए.एस.)’, इस वैज्ञानिक उपकरण के द्वारा वस्तु, वास्तु, पशु तथा व्यक्ति आदि में विद्यमान नकारात्मक एवं सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल नापा जा सकता है । शोधकार्यात्मक अध्ययन करने हेतु ‘परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का छायाचित्रमय जीवनदर्शन’ ग्रंथ का परीक्षण ‘यू.ए.एस.’ उपकरण के द्वारा किया गया । तुलना हेतुसामान्य व्यक्ति के द्वारा लिखी गई पुस्तक, एक लेखक के द्वारा संतों के विषय में लिखा गया ग्रंथ तथा एक संस्था द्वारा प्रकाशित छायाचित्रमय ग्रंथ, इन सबका भी परीक्षण किया गया । सामान्य व्यक्ति द्वारा लिखी गई पुस्तक में सकारात्मक स्पंदनों की अपेक्षा नकारात्मक स्पंदन दिखाई दिए । आध्यात्मिक ग्रंथ तथा संतों के जीवनचरित्रों में विद्यमान सात्त्विकता के कारण उनमें सकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी, आगे दी सारणी से यह स्पष्ट होता है ।
‘परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का छायाचित्रमय जीवनदर्शन’, इस ग्रंथ की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल ४८६ मीटर जितने बडे स्तर पर दिखाई देना, यह इस ग्रंथ में विद्यमान सात्त्विकता एवं चैतन्य होने का लक्षण है ।
साधको, परात्पर गुरुदेवजी के अस्तित्व का अनुभव करानेवाला यह ग्रंथ ‘आपातकाल हेतु संजीवनी है’, इसे ध्यान में लेकर इस ग्रंथ में विद्यमान चैतन्य का अधिकाधिक लाभ उठाएं !’
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.