‘इस चैतन्यदायी भारतभूमि को ईश्वरप्राप्ति हेतु धूप-वर्षा आदि में से किसी भी बाधा की चिंता किए बिना कठोर तपस्या करनेवाले ऋषि-मुनियों की परंपरा प्राप्त है । अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या करने पर ही उन्हें ईश्वरप्राप्ति का उच्च लक्ष्य साध्य करना संभव होता था ।
हमारे परम दयालु एवं सर्वज्ञ परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने इस घोर कलियुग में भी हमारे लिए संभव ऐसा सरल साधनामार्ग उपलब्ध करवाया है तथा उनकी इच्छाशक्ति के प्रभाव से अनेक साधक प्रगतिपथ पर अग्रसर हैं । अतः अपेक्षित है कि साधक अपने अंतर में कृतज्ञभाव रखकर प्रयासरत रहें ।
– (श्रीसत्शक्ति) श्रीमती बिंदा सिंगबाळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.