हिंसा करनेवालों को क्षमा न करें !
समाज में हिंसा कर सार्वजनिक अथवा निजी संपत्ति की हानि पहुचाने वालों को कठोर दण्ड देना चाहिए ।
समाज में हिंसा कर सार्वजनिक अथवा निजी संपत्ति की हानि पहुचाने वालों को कठोर दण्ड देना चाहिए ।
पश्चिमी लोग चाहे कितना भी अधिक शोध कर लें, अभी भी उन्हें पूर्णता के बिंदु तक पहुंचने में अभी भी समय लगेगा; किंतु ऋषि-मुनियों लाखों वर्ष पूर्व ही इस पर गहन शोध करके संपूर्ण मानव जाति के लिए निर्धारित किया था तथा भारत में पीढियों से वह चलता आ रहा है, इसका उचित सम्मान होना चाहिए !
भारत में मादक पदार्थाें का व्यापार अल्प करने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाने चाहिए ! राष्ट्र को विकास एवं विश्वगुरु के स्तर पर ले जाने में जो अनेक चुनौतियां हैं, उनमें यह भी एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है ।
यदि प्रश्न पूछने के लिए भी पैसे लिए जाते हों, तो वैसा करनेवालों को नियम के अनुसार दण्ड मिलना ही चाहिए । यदि उन्हें दण्ड मिलेगा, तभी संसद, जिसे हम ‘लोकतंत्र का मंदिर’ कहते हैं, उसकी विश्वसनीयता अक्षुण्ण रहेगी ।
आज अमेरिका में पल रही बंदूक संस्कृति (नहीं, विकृति) भविष्य में संपूर्ण विश्व में फैल गई, तो कितना बडा अनर्थ हो जाएगा ? क्या इसका अमेरिका को भान है ?
गांधीगिरी करनेवाली जमात के कारण विश्व का सुसंस्कृत, सहिष्णु एवं शांतिप्रिय समाज नष्ट हो जाएगा । ऐसा न हो; इसके लिए मानवाधिकारवालों को वैचारिक रूप से पराजित कर, उन्हें आईना दिखाना समय की मांग है ।
सद्यः स्थिती में प्रत्येक मनुष्य अधिकार ही बताता है परंतु दूसरे के लिए त्याग करने को सिद्ध नहीं । इसलिए कावेरी प्रश्न जैसे अनेक प्रश्न वर्तमान में फैल रहे हैं । यह बार-बार प्रशासनिक व्यवस्था की विफलता तथा सनातन धर्मराज्य की (हिन्दू राष्ट्र) आवश्यकता को हमारे सामने लाता है !
राष्ट्रीयता को आधारभूत मानकर कानून एवं न्यायव्यवस्था में परिवर्तन लाना तो आवश्यक है ही; परंतु उसके साथ ही ‘जूता जापानी, पतलून इंग्लिस्तानी’ गीत में तो ठीक हैं; तथापि न्यायव्यवस्था में वेशभूषा एवं हृदय, दोनों भारतीय संस्कृति के अनुसार हों, तो न्यायव्यवस्था की स्थिति में सुधार आएगा !
भारत को अब क्रिकेट जैसे पाश्चात्त्य खेलों को महत्त्व न देकर भारतीय खेलों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए । इसके लिए खिलाडियों को सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने पर भारत भी आगे चलकर प्रत्येक स्पर्धा में अधिकाधिक पदक प्राप्त करते दिखाई देगा, यह निश्चित !
आज विदेश में भौतिक सुख भले ही मिलता है, किंतु मन की शांति नहीं, यह स्पष्ट दिखाई दे देती है । नैतिकता का भी ह्रास हुआ है । ये दोनों बातें हिन्दू धर्म में हैं । भौतिक सुविधाएं निर्मित करने में भारत को अनेक वर्ष लग सकते हैैं; किंतु साधना के माध्यम से भारत विश्वगुरु हो सकता है ।