कावेरी नदी के जल बंटवारे पर कर्नाटक एवं तमिलनाडू राज्यों में पुन: एक बार संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई है । तमिलनाडू को कावेरी का पानी देने के प्रश्न पर २६ सितंबर २०२३ को बेंगलुरू पूरी तरह से बंद रखा गया । पानी देने के निर्णय के विरुद्ध कर्नाटक में सदैव तीव्र विरोध होता है । इससे पूर्व भी इसी सूत्र पर अनेक बार प्रखर आंदोलन हुए तथा कुछ वर्ष पूर्व आगजनी हुई थी, जिसके कारण बेंगलुरू में धारा १४४ लगानी पडी थी । स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस के कार्यकाल में महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा-विवाद तथा कश्मीर प्रश्न जिस प्रकार अनसुलझे एवं जटिल प्रश्न हो गए हैं, उसी प्रकार अभी ‘कावेरी नदी के पानी के बंटवारे का विवाद’, भी अनसुलझा प्रश्न है ।
८०० किलोमीटर लंबी कावेरी नदी का उद्गम कर्नाटक के पश्चिम घाट के ब्रह्मगिरी पर्वत से होता है तथा आगे चलकर तमिलनाडू एवं केरल राज्यों से होकर वह समुद्र में मिलती है । पानी-बंटवारे का यह प्रश्न वर्ष १८०७ से चल रहा है । तत्कालीन मैसूर राज्य में कावेरी नदी पर बांध बनाने का निर्णय लिया गया था । मद्रास ने इसका विरोध किया था । तभी से कावेरी का जल-बंटवारा विवाद का सूत्र बना हुआ है । वर्ष १९१४ में मध्यस्थता के प्रमुख के रूप में एच.डी. ग्रिफिन ने कावेरी-विवाद प्रथम निर्णय दिया । इस पर विवाद के उपरांत वर्ष १९२४ में पुन: दोनों राज्यों में समझौता हुआ ।
स्वतंत्रता पाने के उपरांत भी दोनों राज्यों में वाद-विवाद होते ही रहे । अंत में यह मतभेद मिटाने के लिए भारत सरकार ने २ जून १९९० को ‘कावेरी जल व्यवस्थापन प्राधिकरण’ की स्थापना की । इन प्राधिकारियों द्वारा दिए गए कुछ निर्णय दोनों राज्यों को आरंभ से ही मान्य नहीं हुए थे । इससे कावेरी जल- विवाद अनेक बार उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय तक गया । प्राधिकरण ने फरवरी २००७ में तामिलनाडू को ४१९ टी.एम.सी., कर्नाटक को २७० टी.एम.सी. तथा पुदुचेरी को ७ टीएमसी पानी देने के आदेश दिए थे । कर्नाटक एवं तमिलनाडू को यह निर्णय भी अमान्य था । इस पूरी पृष्ठभूमि पर सितंबर २०१६ में तमिलनाडू पुन: एक बार सर्वोच्च न्यायालय में गया । उस समय न्यायालय ने १० दिनों के लिए १५ सहस्र घनफीट (क्यूबिक फीट)प्रति सेकेंड पानी छोडने का आदेश दिया था । यह निर्णय कर्नाटक राज्य को स्वीकार्य नहीं है ।
वर्तमान विवाद !
गत मास कावेरी जल व्यवस्थापन प्राधिकरण ने कर्नाटक राज्य को तमिलनाडू राज्य के लिए ५ सहस्र घनफीट प्रति सेकेंड पानी छोडने के आदेश दिए । इस पर तमिलनाडू के जलसंपदा मंत्री एस. दुराई मुरुगन ने खेत की उपज बचाने के लिए निरंतर १० दिन प्रतिदिन २४ सहस्र घनफीट प्रति सेकेंड पानी छोडने की मांग की थी तथा इस निर्णय के विरुद्ध तमिलनाडू राज्य सर्वोच्च न्यायालय में गया । सर्वोच्च न्यायालय ने इसमें हस्तक्षेप करना अस्वीकार कर दिया। ‘प्राधिकरण एवं समिति ने पानी का नियोजन विचारपूर्वक निश्चित किया है । उसके लिए मौसमुविभाग के वर्षा का पूर्वानुमान, कृषि एवं जल संस्धान प्रबंधन कीे प्राप्त जानकारी, सूखा, वर्षा का अभाव, नदी नदी में जल स्तर पर विचार विचार करने के उपरांत ही यह निर्णय लिया गया है । नयायालय यह निष्कर्ष व्यर्थ तथा अस्थायी नहीं कह सकता । इसलिए इस निर्णय में हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते, खंडपीठ ने ऐसा स्पष्ट किया । न्यायालय के द्वारा प्राधिकरण का निर्णय मान्य करने के पश्चात यह निर्णय कर्नाटक को मान्य नहीं । उनका कहना है कि अभी हमारे पास ही अपर्याप्त पानी है, तो तमिलनाडू को हम पानी नहीं दे सकते।
स्वतंत्रता के पश्चात आज तक के सभी शासकों ने धर्म, जाति, भाषा तथा प्रांत में ही भारतीय समाज कैसे विभाजित होगा, ऐसे ही प्रयास किए । देश किसी परिवार जैसा होता है; किंतु सद्यः स्थिती में प्रत्येक मनुष्य अधिकार ही बताता है परंतु दूसरे के लिए त्याग करने को सिद्ध नहीं । इसलिए कावेरी प्रश्न जैसे अनेक प्रश्न वर्तमान में फैल रहे हैं । यह बार-बार प्रशासनिक व्यवस्था की विफलता तथा सनातन धर्मराज्य की (हिन्दू राष्ट्र) आवश्यकता को हमारे सामने लाता है !
स्वतंत्रता के ७६ वर्षाें के पश्चात भी दो राज्यों के मध्य जलविवाद न सुलझना, सर्वपक्षीय सरकारों के लिए लज्जास्पद ! |