भारतीय खेलों को प्रोत्‍साहन आवश्यक !

चीन में हो रहे ‘एशियन गेम्‍स २०२३’ में भारतीय खिलाडी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं । वर्ष १९८२ में पदक जीतने के पश्चात भारत ने ४१ वर्षों के उपरांत घुडसवारी में स्वर्णपदक जीता है । इस स्‍पर्धा में भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया तथा इरान सहित ४५ देश सहभागी हैं । स्‍पर्धा के ३८ खेलों में भारत के सब मिलाकर ६३४ खिलाडी सहभागी हैं । अब तक इस खेल में चीन ५९ स्वर्णपदक लेकर प्रथम क्रमांक पर, तो भारत ५ स्वर्णपदक पाकर ५ वें क्रमांक पर है । यह भी उतना ही सच है कि विगत कुछ वर्षाें में खेलों में भारत के प्रदर्शन में सुधार हुआ है, किंतु यह भी सच है कि १४२ करोड जनसंख्‍यावाले देश को पदकों के अभाव पर विजय पाने के लिए अनेक वर्ष प्रतीक्षा करनी पडी ।


पदक न मिलने का एक महत्त्वपूर्ण कारण यहां की प्रशासकीय व्‍यवस्‍था के साथ-साथ भारतीय धरती पर मल्लखंबम, खो-खो, कबड्डी के साथ भारतीय खेलों को महत्त्व न देकर इस देश में क्रिकेट को मिल रहा अवास्‍तविक एवं अस्वाभाविक महत्त्व भी एक महत्त्वपूर्ण कारण है । हम क्रिकेट पर जितना पैसा व्‍यय करते हैं, जनता एवं जनप्रतिनिधियों से हमें जितना समर्थन मिलता है, उतना समर्थन अन्‍य भारतीय खेलों को नहीं मिलता । भारत की अपेक्षा जनसंख्‍या में बहुत छोटे जापान, दक्षिण कोरिया जैसे अनेक देश प्रत्येक बार अधिक पदक क्यों पा सकते हैं ? निश्चय ही यह चिंता का विषय है । इसलिए भारत को अब क्रिकेट जैसे पाश्चात्त्य खेलों को महत्त्व न देकर भारतीय खेलों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए । इसके लिए खिलाडियों को सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्‍ध कराने पर भारत भी आगे चलकर प्रत्‍येक स्‍पर्धा में अधिकाधिक पदक प्राप्त करते दिखाई देगा, यह निश्चित !