विश्व स्तर पर मानवाधिकारों का कार्य करनेवालों के समूह में विवियन सिल्वर नामक महिला मानवाधिकार कार्यकर्त्री का नाम सुपरिचित है । ७४ वर्ष की आयु की सिल्वर जन्म से यहूदी (ज्यू) हैं; परंतु अपने जीवन के ५० वर्ष उन्होंने फिलिस्तीनी नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा हेतु, साथ ही इजरायल की सरकार तथा सेना पर दोष मढने में व्यतीत किए । उन्होंने कर्करोगग्रस्त फिलिस्तीनी नागरिकों को चिकित्सा सेवा मिले, इसके लिए इजरायल के चिकित्सालयों में उन्हें केवल भर्ती ही नहीं किया, अपितु इजरायल की गली-मुहल्लों से इजरायल की आलोचना करते हुए शांति फेरियां भी निकाली । उन्हें अभी तक अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है । ‘नोबेल’ शांति पुरस्कार हेतु भी उनका नाम आगे बढाया गया था । जीवनभर फिलिस्तीनियों के लिए इतना करने पर भी उनके हाथ क्या लगा ? ७ अक्टूबर को हमास के आतंकियों द्वारा किए आक्रमण के उपरांत वे लापता हैं । अभी भी उनके विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है । सामाजिक माध्यमों पर बताया जा रहा है कि हमास के आतंकियों ने उनके टुकडे-टुकडे कर दिए हैं । जीवन के अंतिम पडाव में सिल्वर के भाग्य में जो आया, वह पीडादायी है । उन्होंने जिनके लिए अविरत परिश्रम उठाए तथा जिनके लिए उन्होंने अपने धर्मबंधु यहूदियों की आलोचनाएं झेली, इन फिलिस्तीनी लोगों के लिए लडनेवाली (?) इस कार्यकर्त्री के साथ आतंकियों ने क्या दिया ?, यह ज्ञात करने का कोई मार्ग नहीं है । इस पृष्ठभूमि पर ‘मानवाधिकार’ के विषय पर वैश्विक मंच पर जोरदार चर्चा होना आवश्यक है । शांति एवं सौहार्द किसे नहीं चाहिए ? परंतु ‘आतंकवादियों तथा उन्हें संरक्षण देनेवालों के मानवाधिकारों के विषय में आग्रही रहकर तथा उनका तुष्टीकरण करने से क्या विश्व में शांति स्थापित होगी ?’ इस विषय में संपूर्ण विश्व के समस्त मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से स्पष्टीकरण मांगना आवश्यक है । सिल्वर ने जिस समूह के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन दे दिया, उन्हें उनसे इस प्रकार की पीडा मिलना, समस्त मानवाधिकारवादी विचारकों की वैचारिक पराजय है ।
सिल्वर के जीवन का मूल्य शून्य !
सिल्वर विगत अनेक वर्षाें से इजरायल के किबुट्ज में रह रही थीं । उन्होंने वहां रहकर फिलिस्तीनियों के मानवाधिकारों की रक्षा हेतु संघर्ष किया । इसलिए हमास के आतंकियों ने जब किबुट्ज पर आक्रमण किया, तब क्या उन्होंने इस बात की जानकारी नहीं ली थी कि ‘यहां हमारे कौन लोग हैं तथा पराए कौन हैं ?’ जो महिला फिलिस्तीनियों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए लडती है, उसे सम्मानपूर्वक छोड देने की बुद्धि हमास के आतंकियों को क्यों नहीं हुई ? इसका कारण स्पष्ट है । सिल्वर ने फिलिस्तीनी नागरिकों को ‘अपना’ माना; परंतु फिलिस्तीन की मिट्टी में पले-बढे हमास के आतंकियों ने उन्हें ‘अपना’ नहीं माना । उनके लिए सिल्वर यहूदी (ज्यू) थीं । इसलिए सिल्वर ने फिलिस्तीनी लोगों से भले ही कितना भी प्रेम किया हो; परंतु हमास की दृष्टि में वे उनके शत्रुराष्ट्र की नागरिक थीं तथा उन्हें पीडा देना एवं उनका शोषण करना, हमासवालों का जन्मसिद्ध अधिकार था । इसी कारण हमास के आतंकियों ने उनके प्राण ले लिए ।
इजरायल द्वारा युद्ध आरंभ करने पर इजरायल को ‘नरभक्षी’, ‘पाशवी’ कहकर उसका धिक्कार किया गया । ‘इजरायल ने गाजा पर आक्रमण कर निर्दाेष लोगों की हत्या की’, ऐसा आरोप लगाया गया । फिलिस्तीनी लोगों के मानवाधिकारों के विषय में बोलनेवाले, इजरायली नागरिकों के मानवाधिकारों के विषय में मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं । और तो और ‘सिल्वर के लापता होने के उपरांत उन्हें छुडाने के लिए अथवा ‘आगे उनका क्या हुआ ?’, यह जानने के लिए भी मानवाधिकार कार्यकर्ता कोई ठोस प्रयास करते नहीं दिखाई दे रहे । इससे यह प्रश्न उठता है कि ‘क्या मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की दृष्टि में सिल्वर के जीवन का कोई मोल नहीं है ?’ साथ ही मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की वैचारिक संकीर्णता भी दिखाई देती है ।
मानवाधिकार आंदोलन की असफलता !
क्या मानवाधिकार कार्यकर्ता सिल्वर के मानवाधिकारों के लिए हमास के विरुद्ध मोमबत्ती रैली अथवा शांति फेरियां निकालेंगे ? अथवा क्या हमास के प्रमुख के घर के सामने धरना आंदोलन करेंगे ? ऐसे कदम अभी तक तो नहीं उठाए गए हैं अथवा ‘भविष्य में उठाए जाएंगे’, ऐसी आशा भी नहीं है । इस घटना से फिलिस्तीनी नागरिकों का सच्चा स्वरूप भी विश्व के सामने उजागर हुआ है । ‘सिल्वर को सुरक्षित छोड दिया जाए’, इसके लिए अथवा ‘उनका आगे क्या हुआ ?’, यह जानने के लिए कितने फिलिस्तीनी नागरिकों ने हमास के आतंकियों से पूछा ? इसके विपरीत हमास के आतंकियों द्वारा इजरायल पर आक्रमण करने पर, वहां की महिलाओं के साथ बलात्कार करने पर तथा छोटे बच्चों की गर्दन काटने पर फिलिस्तीन में आनंदोत्सव मनाया गया । इसलिए ऐसे समाज के मानवाधिकारों के विषय में बोलना अथवा कुछ करना, एक प्रकार से समस्त मानवजाति के विरुद्ध किया गया द्रोह है । फिलिस्तीन ने अपनी छवि बढाने के लिए तथा स्वयं को विश्व के सामने ‘पीडित’ के रूप में प्रस्तुत करने के लिए सिल्वर का संपूर्णतया उपयोग किया तथा अपना उद्देश्य पूर्ण होने पर, उन्होंने सिल्वर को मरने के लिए छोड दिया ।
जिनके सिर पर मानवाधिकारों का भूत बैठा है, उनके लिए सिल्वर-प्रकरण आंखें खोलनेवाला है । आतंकियों एवं धर्मांधों के प्रति करुणा का भाव रखना, समाजघाती कृत्य है । उसका अंत दुखद होता है । जिहादियों को प्रेम, अपनेपन या मानवाधिकारों की भाषा समझ में नहीं आती । उन्हें केवल द्वेष व हिंसा की भाषा समझ में आती है । इसलिए मानवाधिकारों की रक्षा का प्रयास करनेवाले, आतंकियों से भी अधिक खतरनाक हैं । ऐसे लोगों की बाढ आ गई, तो लोगों को मानवता की हत्या करनेवाले इन आतंकियों के प्रति सहानुभूति अनुभव होगी । इस प्रकार से गांधीगिरी करनेवाली जमात के कारण विश्व का सुसंस्कृत, सहिष्णु एवं शांतिप्रिय समाज नष्ट हो जाएगा । ऐसा न हो; इसके लिए मानवाधिकारवालों को वैचारिक रूप से पराजित कर, उन्हें आईना दिखाना समय की मांग है ।