अध्यात्म
अध्यात्म विषयक बोधप्रद ज्ञानामृत’ लेखमाला से भक्त, संत तथा ईश्वर, अध्यात्म एवं अध्यात्मशास्त्र तथा चार पुरुषार्थ ऐसे विविध विषयों पर प्रश्नोत्तर के माध्यम से पू. अनंत आठवलेजी ने सरल भाषा में उजागर किया हुआ ज्ञान यहां दे रहे हैं ।
अध्यात्म विषयक बोधप्रद ज्ञानामृत’ लेखमाला से भक्त, संत तथा ईश्वर, अध्यात्म एवं अध्यात्मशास्त्र तथा चार पुरुषार्थ ऐसे विविध विषयों पर प्रश्नोत्तर के माध्यम से पू. अनंत आठवलेजी ने सरल भाषा में उजागर किया हुआ ज्ञान यहां दे रहे हैं ।
प्रत्येक साधक के जीवन में गुरु विविध माध्यम से आते हैं । सभी संत भले ही अलग-अलग दिखाई दें, तब भी वे अंदर से एक ही होते हैं । किससे कौनसी साधना करवानी है, यह उन्हें पता होता है ।
सनातन की ८३ वीं संत पू. गीतादेवी खेमकाजी का ७९ वां जन्मदिन भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी (२८.८.२०२१) को है । इस अवसर पर उनकी बेटी और पोते को ध्यान में आई पू. खेमकाजी की गुणविशेषताएं आगे दी हैं ।
बालभाव में साधक का भाव बालक की भांति निर्मल होता है । विविध कृत्य करते समय ‘स्वयं छोटी बच्ची हूं और मेरे साथ श्रीकृष्ण हैं’, ऐसा साधिका का भाव इस ग्रंथमें दिए इन चित्रोंसे प्रतीत होता है ।
अध्यात्म विषयक बोधप्रद ज्ञानामृत’ लेखमाला से भक्त, संत तथा ईश्वर, अध्यात्म एवं अध्यात्मशास्त्र तथा चार पुरुषार्थ ऐसे विविध विषयों पर प्रश्नोत्तर के माध्यम से पू. अनंत आठवलेजी ने सरल भाषा में उजागर किया हुआ ज्ञान यहां दे रहे हैं ।
‘एक बार हम गोवा से पुणे की यात्रा कर रहे थे । उस समय सद्गुरु पिंगळेजी मेरे बगल में बैठे थे । सद्गुरु पिंगळेजी के प्रभाव से ‘स्टेयरिंग’ पर हाथ होने के समय मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ‘मैंने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरण पकडे हुए हैं ।’
वर्ष २०१९ में पू. मेनरायजी जब रामनाथी आश्रम में थे, तब मुझे ‘उनके वस्त्र धोने और इस्तरी करने’ की सेवा मिली थी । तब पू. (श्रीमती) मेनरायजी एवं पू. मेनरायजी दोनों ही बीमार थे । उन्हें अधिकांश समय विश्राम ही करना पडता था ।
संत भक्तराज महाराजजी के देहत्याग उपरांत परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने गुरुतत्त्व को पहचानकर (गुरुतत्त्व से सान्निध्य रखकर) व्याप क कार्य किया । प्रत्यक्ष रूप से उन्हें उनके गुरुदेवजी का सान्निध्य बहुत अल्पावधि के लिए ही प्राप्त हुआ ।
‘साधना में आने के कारण हम इसी जन्म में जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होनेवाले हैं, इसके प्रति कृतज्ञता ।
कलियुग में सैकडों की संख्या में शिष्यपरिवारवाले कुछ महान गुरु हुए । उनके शिष्यपरिवार में से अनेक शिष्य संत (७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के) थे; परंतु इसके संदर्भ में वस्तुनिष्ठ आंकडे उपलब्ध नहीं है ।