भक्तवात्सल्याश्रम (मध्यप्रदेश) में प.पू. भक्तराज महाराजजी का गुरुपूर्णिमा महोत्सव !
इंदौर (मध्य प्रदेश) – ‘प्रत्येक साधक के जीवन में गुरु विविध माध्यम से आते हैं । सभी संत भले ही अलग-अलग दिखाई दें, तब भी वे अंदर से एक ही होते हैं । किससे कौनसी साधना करवानी है, यह उन्हें पता होता है । इसलिए ‘क्या करवाने से साधक की साधना होगी’, यह गुरु को पता होने से वे उससे वैसा कार्य करवा लेते हैं । लेखन भी एक साधना है । जो साधक साधना के रूप में लेखन करनेवाला है, वे उससे वह करवा लेंगे । मुझसे मेरे गुरु ने ‘ज्ञानेश्वरी’ एवं ‘अमृतानुभव’ का हिन्दी अनुवाद करवा लिया । समर्थ का चरित्र हिन्दी भाषा में लिखवा लिया । ‘दासबोध’, ‘मनाचे श्लोक’ पर लेखन करवा लिया । प.पू. गुळवणी महाराजजी का चरित्र हिन्दी भाषा में लिखवा लिया । संतों का चरित्र भी उनकी ‘वाङ्मय मूर्ति’ होती है, ऐसा भाव रखकर उसका वाचन करना चाहिए । उसी से आगे आत्मज्ञान की ओर जा सकते हैं ।’ ऐसा प्रतिपादन सुप्रसिद्ध लेखक एवं वैज्ञानिक डॉ. मोहन बांडे ने किया । सनातन संस्था के संस्थापक डॉ. जयंत आठवलेजी के गुरु एवं सनातन संस्था के श्रद्धाकेंद्र प.पू. भक्तराज महाराजजी के इंदौर स्थित भक्तवात्सल्याश्रम में २२ एवं २३ जुलाई को कोरोना के सभी नियमों का पालन कर गुरुपूर्णिमा उत्सव भावपूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ । सवेरे ८ बजे भावपूर्ण वातावरण में श्री सत्यनारायण पूजन एवं श्री व्यासपूजन हुआ । तदुपरांत स्तवन मंजिरी एवं रामानंद बावनी पाठ होने के उपरांत गुरुपादुकाओं पर अभिषेक, पूजन एवं आरती हुई । २२ जुलाई को डॉ. बांडे के हस्तों उज्जैन के श्री. विठ्ठल पागे द्वारा लिखे ‘नाथ माझा भक्तराज’ इस ग्रंथ के चतुर्थ संस्करण का, इसके साथ ही डॉ. (श्रीमती) कुंदा आठवलेजी द्वारा प.पू. भक्तराज महाराजजी के विषय में, तथा प.पू. रामानंद महाराजजी के विषय में लिखे ग्रंथों का १ से ४ खंडों का लोकार्पण किया गया । इस अवसर पर व्यासपीठ पर ‘श्री सद्गुरु अनंतानंद साईश शैक्षणिक एवं परमार्थिक सेवा ट्रस्ट’ के अध्यक्ष श्री. शरद बापट, उपाध्यक्ष श्री. अनिल जोग, प.पू. बाबा के भक्त श्री. शशिकांत ठुसे एवं डॉ. (श्रीमती) कुंदा आठवले आदि उपस्थित थे । इस कार्यक्रम का ऑनलाइन प्रक्षेपण किया गया ।
गुरु के चरित्र के चतुर्थ संस्करण के साथ मेरे ग्रंथों का लोकार्पण होना, मेरे जीवन में परमभाग्य का दिन है ! – डॉ. (श्रीमती) कुंदा आठवलेआज मेरे गुरु के चरित्र ग्रंथ के चतुर्थ संस्करण के लोकार्पण के साथ मेरे ग्रंथों का लोकार्पण होना, यह मेरे जीवन में परमभाग्य का दिन है । हमने प.पू. भक्तराजजी के विषय में जो भी अनुभव किया, वे दिन अब इतिहास में परिवर्तित हो गए हैं । आनेवाली पीढी को समझ में आए कि ‘गुरु क्या होते हैं ?’ ‘उनका जीवन कैसा होता है ?’, इसलिए परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ने मुझे सब लिखने के लिए कहा, तो मैंने ये ग्रंथ लिखे । डॉ. (श्रीमती) कुंदा आठवलेजी द्वारा लिखे एवं प्रकाशित किए जा रहे ग्रंथों के नाम १. अमृतमय गुरुगाथा : खंड १ – डॉ. (श्रीमती) कुंदा जयंत आठवलेजी के आध्यात्मिक जीवन का आरंभ एवं उन्हें हुई गुरुप्राप्ति २. अमृतमय गुरुगाथा : खंड २ – गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी की अगम्य लीला एवं सीख ३. अमृतमय गुरुगाथा : खंड ३ – गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी के अंतिम दिनों की रुग्णावस्था में हुई उनकी सेवा ४. अमृतमय गुरुगाथा : खंड ४ – प.पू. रामानंद महाराजजी के सान्निध्य के अनुभव एवं उनके संदर्भ में अनुभूतियां |