अध्यात्म

अध्यात्म और अध्यात्मशास्त्र

अध्यात्मविषयक बोधप्रद ज्ञानामृत…

पू. अनंत आठवले

     ‘अध्यात्म विषयक बोधप्रद ज्ञानामृत’ लेखमाला से भक्त, संत तथा ईश्वर, अध्यात्म एवं अध्यात्मशास्त्र तथा चार पुरुषार्थ ऐसे विविध विषयों पर प्रश्नोत्तर के माध्यम से पू. अनंत आठवलेजी ने सरल भाषा में उजागर किया हुआ ज्ञान यहां दे रहे हैं । इस से पाठकों को अध्यात्म के तात्त्विक विषयों का ज्ञान होकर उनकी शंकाओं का निर्मूलन होगा तथा वे साधना करने के लिए प्रवृत्त होंगे ।

प्रश्न : (रायगड,महाराष्ट्रके एक जिज्ञासुका प्रश्न) ‘अध्यात्म’का अर्थ क्या है?

उत्तर : ‘अध्यात्म’ शब्द कई लोग बोलते, लिखते हैं; किंतु ‘प्रत्येक व्यक्ति इस शब्द का ठीक अर्थ जानता ही है’, ऐसा नहीं है ।

१. ‘अध्यात्म’ का अर्थ

१ अ. भाषाशास्त्र अथवा व्याकरणकी दृष्टिसे : अध्यात्म = अधि + आत्मन्, अर्थात् स्वयंसे संबंधित अथवा आत्मासे संबंधित ।

१ आ. भगवान् श्रीकृष्णद्वारा बताया गया ‘अध्यात्म’ शब्दका अर्थ : भगवद्गीतामें भगवान् श्रीकृष्णने ‘अध्यात्म’ शब्दका अर्थ बताया है । वे कहते हैं,

     ‘स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते ।’- भगवद्गीता, अध्याय ८, श्लोक ३

अर्थ : ‘स्वभाव’को अध्यात्म कहते हैं ।

     हमारा अस्तित्व, यही अध्यात्म है । ‘भाव’ (टिप्पणी १) का अर्थ है सत्ता, होनेकी स्थिति, विद्यमानता, अस्तित्व । हमारा अस्तित्व देहका अस्तित्व नहीं, देहान्तर होता ही रहता है; किंतु जीवात्मा वही रहता है, यह ध्यानमें लिया तो पहिले बताया शब्दार्थ और भगवान् श्रीकृष्णने बताया अर्थ एक ही है, यह स्पष्ट होगा ।

     यहां ‘स्वभाव’ का अर्थ हम व्यवहार में जैसा कहते हैं, ‘क्रोधी स्वभाव,आनंदी स्वभाव, रूखा स्वभाव’, वैसा नहीं है । ‘भाव’ शब्द संस्कृत भाषाके ‘भू’ धातुसे बना है और उसका अर्थ है ‘सत्ता’ । पुन:, ‘सत्ता’ का अर्थ व्यवहारमें हम ‘शासनका अधिकार’ कहते हैं, वैसा न होकर ‘अस्तित्व’, ऐसा है (टिप्पणी २) । ‘अस्तित्व’,‘उत्पत्ति’, इस अर्थसे ‘भाव’ शब्द भगवद्गीतामें कई बार आया है, यथा अध्याय २, श्लोक १६ ।

१ इ. आद्य शंकराचार्यद्वारा बताया गया अर्थ : आद्य शंकराचार्य गीता अध्याय ८, श्लोक ३ पर अपने भाष्यमें कहते हैं,

     ‘ब्रह्मण: प्रतिदेहं अन्तरात्मभाव: स्वभाव: ।’

अर्थ : ‘प्रत्येक शरीरमें ‘ब्रह्म’का (परामात्माका) अंतरात्मारूपसे अस्तित्व, यह ‘स्वभाव’ है । तात्पर्य, अध्यात्म अर्थात् ‘आत्मासे संबंधित, देहमें आत्माका अस्तित्व ।’ इतना ही अध्यात्म शब्द का अर्थ है ।

२. अध्यात्मशास्त्र : ‘अध्यात्मशास्त्र’ अर्थसे कई बार संक्षेपमें ‘अध्यात्म’ शब्दका प्रयोग किया जाने लगा है । इसलिए ‘अध्यात्मशास्त्रके अंतर्गत क्या आता है’, यह देखते हैं ।

२ अ. भगवान् श्रीकृष्ण का ‘सर्व विद्याओंमें मैं अध्यात्मविद्या हूं’, ऐसा कहना : भगवान् श्रीकृष्ण उनकी वैशिष्ट्यपूर्ण उत्पत्तियां, प्रत्येक गुटकी श्रेष्ठ उत्पत्ति, बताते हुवे कहते हैं, मैं ‘अध्यात्मविद्या विद्यानां ।’ हूं (गीता, अध्याय १०, श्लोक ३२) । अर्थात् ‘सभी विद्याओंमें मैं अध्यात्मविद्या’ हूं । उन्होंने ‘अध्यात्मविद्या’ ही क्यों कहा ? क्यों कि केवल वही ‘मोक्ष क्या होता है ?’ और मोक्षप्राप्तिके मार्ग क्या हैं, यह बताती है ।

२ आ. ‘अध्यात्म अर्थात् स्वयं का अस्तित्व’, यह हमने पहिले ही देखा । अस्तित्व, उत्पत्ति हो तो स्थिति और लय क्रमप्राप्त हैं ही; क्यों कि सभी उत्पत्ति विनाशशील, नश्वर होती है । इसलिए अध्यात्मशास्त्र अर्थात्,

१. ब्रह्मसे अव्यक्त, महत्तत्त्व,त्रिगुण, सूक्ष्म, स्थूल सभी उत्पत्तियां; उनकी उत्पत्तियोंका क्रम, उनके घटक; उनके गुण और उनका पुन: उलटे क्रमसे होनेवाला लय, इनका शास्त्र

२. कालबद्धता और कालातीत्वका ज्ञान

३. आत्मा, परमात्मा, ईश्वर और ब्रह्मके स्वरूपका ज्ञान

४. उत्पत्ति-स्थिति-लयके चक्रमें फंसनेके कारण और इस चक्रसे छूटनेके उपायोंकी विद्या, मोक्षप्राप्तिकी विद्या

     ऊपर अध्यात्मविद्यामें आनेवाली केवल कुछ मुख्य बातें बतायी हैं ।

टिप्पणी १ : भाव: – सत्ता (संदर्भ – कल्पद्रुम)
भाव: – सत्ता (संदर्भ – अमरकोश)
भाव: – सत्तायाम् (संदर्भ – वाचस्पत्यम्)

टिप्पणी २ : भू सत्तायाम् । इति कविकल्पद्रुम:।।
सत्तेह द्विविधा । उत्पत्तिर्विद्यमानता च । इति दुर्गादास:
अर्थ : भू सत्ता अर्थसे । (संदर्भ – कविकल्पद्रुम)
यहां सत्ता दो प्रकारसे, उत्पत्ति और अस्तित्व ।
(संदर्भ : दुर्गादास)

टिप्पणी ३ : अर्जुनने भगवान् श्रीकृष्णसे शरीरके अनुषंगसे सात शब्दोंके अर्थ पूछे । (भगवद्गीता, अध्याय ८, श्लोक १, २) । उनमेंसे चार प्रस्तुत विषयसे संबद्ध हैं । उनके भगवान् श्रीकृष्णने बताये अर्थ (अध्याय ८, श्लोक ३, ४) नीचे देकर आगे बहुत संक्षिप्त रूपमें स्पष्ट किये हैं ।

अध्यात्म : स्वभाव । अर्थ ऊपर दिया है ।

अधिभूत : क्षरभाव । सभी प्राणियोंके, पदार्थाेंके, नाशवंत देह ।

अधिदैव : पुरुष । जीवात्मा । पुरुष, जो देहमें रहकर सुख-दुःखोंका उपभोक्ता है ।

अधियज्ञ : कृष्ण (ईश्वर) । भोगोंकी इच्छाओंका संयम और वैराग्य रूप अग्निमें हवन करा लेनेवाला शरीरस्थ ईश्वर ।

     – अनंत आठवले (३१.१.२०२१)

(संदर्भ : शीघ्र ही प्रकाशित होनेवाला ग्रंथ)

।। श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।।