आध्यात्मिक कष्टों को दूर करने हेतु उपयुक्त दृष्टिकोण
कभी-कभी कष्ट की तीव्रता बहुत बढ जाने से नामजप करते समय बार-बार ध्यान विचलित होता है तथा उसे भावपूर्ण करने का चाहे कितना भी प्रयास करें, तब भी वह भावपूर्ण नहीं हो पाता ।
कभी-कभी कष्ट की तीव्रता बहुत बढ जाने से नामजप करते समय बार-बार ध्यान विचलित होता है तथा उसे भावपूर्ण करने का चाहे कितना भी प्रयास करें, तब भी वह भावपूर्ण नहीं हो पाता ।
कुम्भमेला अर्थात हिन्दुओं का धार्मिक सामर्थ्य बढानेवाला पर्व ! प्रस्तुत ग्रन्थ में कुम्भपर्वक्षेत्र एवं उसकी महानता, कुम्भमेले की विशेषताएं, कुम्भक्षेत्र में करने-योग्य धार्मिक कृत्य एवं उनका महत्त्व, धर्मरक्षक अखाडों का महत्त्व, हिन्दू धर्म के उत्थान की दृष्टि से कुम्भमेले के कार्य आदि सम्बन्धी मौलिक विवेचन किया गया है ।
प्रयागराज में कुंभमेले की अवधि में सर्वत्र के साधकों को सेवा का अनमोल अवसर !
निवास की दृष्टि से, तथा विविध सेवाओं के लिए प्रयाग में वास्तु की (घर, सदनिका [फ्लैट], सभागृह [हॉल] की) आवश्यकता है ।
कथा एवं प्रवचन जैसे माध्यमों से केवल वैचारिक स्तर पर अध्यात्म बताना तथा ग्रहण करना मानसिक स्तर का होता है । वर्तमान समय की शैक्षिक पद्धति के अनुसार अध्यात्म सीखने का यह स्तर ‘बालवाडी’ स्तर का है ।
‘व्यक्ति के हाथों की रेखाएं उसके मस्तिष्क का आलेख होती हैं । व्यक्ति के मन में यदि ६ माह से निरंतर एक ही विचार आता हो, तो हथेली के एक विशिष्ट क्षेत्र में उसकी रेखा तैयार होती है । ये रेखाएं तात्कालिक अथवा हाथों की मुख्य रेखाओं का विस्तार होती हैं ।
सनातन का ग्रंथ ‘आध्यात्मिक कष्टों को दूर करने हेतु उपयुक्त दृष्टिकोण’ का कुछ भाग १६ से ३० सितंबर के अंक में पढा । आज आगे के दृष्टिकोण देखेंगे ।
व्यष्टि साधना (व्यक्तिगत साधना) कितनी भी कर लें, किन्तु समष्टि साधना (समाज की उन्नति हेतु साधना) किए बिना ईश्वरप्राप्ति नहीं होती ! व्यष्टि साधना के साथ समष्टि साधना की (राष्ट्ररक्षा, धर्मजागृति की) अनिवार्यता इस ग्रन्थ में स्पष्ट की है ।
श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी इतनी अद्वितीय हैं कि उनके विषय में लिखते समय अन्य लेखों की भांति नहीं लिखा जा सकता । केवल इतना ही नहीं, अपितु उनमें इतने अद्वितीय गुण हैं कि वह शब्दों से परे होने के कारण भी उन्हें लिखा नहीं जा सकता ।
अध्यात्म में प्रगति करते समय किसी में देवत्व के एक-दो लक्षण दिखाई देते हैं; परंतु श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी में देवीतत्त्व के सभी गुण विद्यमान होने से ही महर्षि ने उन्हें देवीस्वरूप अवतार के रूप में सम्मानित किया है, इसमें कोई संदेह नहीं है ।