गुरुकृपा से सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजीद्वारा की जा रही सेवाओं की व्याप्ति

सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी

१. ‘विविधांगी सेवा मिलने के मुख्य कारण मुझमें ‘जिज्ञासा’ गुण और प्रमुखरूप से ‘गुरुकृपा’ भी है’, ऐसा लगना

‘मैं वर्ष २००३ से मुख्य रूप से ग्रंथों से संबंधित सेवा कर रहा हूं । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने मुझे संकलन करना सिखाया । इस मुख्य सेवा के साथ मुझे एक-एक कर अन्य सेवाएं मिलती गईं । मुझे लगता है कि इसका कारण मेरी ‘जिज्ञासा’ और प्रमुख रूप से ‘गुरुकृपा’ है ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी साधकों को होनेवाले आध्यात्मिक कष्टों पर हाथ की अंगुलियों की मुद्रा, चक्रों पर न्यास और नामजप ढूंढकर देते थे । ‘वे आध्यात्मिक स्तर पर उपचार कैसे ढूंढते हैं ?’, इसकी मुझे उत्कंठा थी । वर्ष २००७ से मैं भी उसका अध्ययन करने लगा । मैं देखने लगा कि ‘चक्रों पर कष्ट के स्पंदन कैसे प्रतीत होते हैं ?’, इसके साथ ही नामजप ढूंढने का प्रयत्न करता था । फिर मेरी पत्नी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी साधकों को नामजपादि उपचार बताने लगीं । वर्ष २०१० में उन्होंने मुझसे कहा, ‘‘अब आप साधकों को नामजपादि उपचार बताइए ।’’ मुझे उस विषय में बहुत अधिक समझ में नहीं आता था; परंतु पानी में ढकेलने पर, जैसे व्यक्ति अपनेआप तैरना सीख जाता है । मेरी अवस्था भी कुछ ऐसी ही थी । मुझपर नामजपादि उपचार बताने का दायित्व आने से मुझे भी उस बारे में थोडा-थोडा समझ में आने लगा । आगे वर्ष २०११ में गुरुकृपा से संतपद पर विराजमान होने पर नामजपादि उपचार बताने का दायित्व गुरुदेवजी ने मुझे सौंप दिया । वर्ष २०१७ में ‘प्राणशक्ति प्रणाली उपचार-पद्धति’ पर सनातन का ग्रंथ निकलने पर कष्टों के अनुरूप उपचार बताना सरल हो गया ।

कल्पनातीत एवं अप्रतिम लेख लिखनेवाले सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळ का यह लेख पढकर मैं आश्चर्यचकित रह गया ! इसमें दिया ज्ञान विश्व में किसी को नहीं होगा ! भारतीय संगीत के बडे-बडे विशेषज्ञ भी यह लेख पढकर चकित रह जाएंगे ! ‘सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी यह ज्ञान विश्व के जिज्ञासु साधकों को सिखाकर, अपने समान अनेक आध्यात्मिक उपचार करनेवाले तैयार करें । इससे विश्व के संगीत से ठीक होनेवाले साधकों को उपचार उपलब्ध होंगे’, ऐसी मैं उनके चरणों में प्रार्थना करता हूं ।

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

तदुपरांत नामजपादि उपचार बताने की मेरी व्याप्ति बढती गई । किसी साधक का अपघात होने पर अथवा उसे रुग्णालय के अतिदक्षता विभाग में रखे जाने इत्यादि कठिन प्रसंगों में भी उपचार बताने पडे । प्रसारसेवा, संगणकीय सेवा, घर अथवा भूमि की खरीदी-बिक्री का व्यवहार इत्यादि में आनेवाली विविध समस्याओं के लिए साधक मुझे आध्यात्मिक स्तर पर उपचार पूछने लगे । ऐसी विविध प्रकार की अडचनों के विषय में साधकों द्वारा आध्यात्मिक स्तर पर उपचार पूछे जाने से मुझमें सूक्ष्म संबंधी जानने की क्षमता बढने में सहायता हुई ।

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को ईश्वर से ज्ञान मिलता था, इसके साथ ही वे किसी अध्यात्म संबंधी घटना का सूक्ष्म परीक्षण भी करती थीं । इन विषयों के प्रति मुझे उत्कंठा थी । ‘सूक्ष्म से कैसे समझ सकते हैं ? सूक्ष्म से उत्तर कैसे मिलते हैं ? क्या मैं भी सूक्ष्म से समझ सकूंगा ?’, ऐसे प्रश्न मेरे मन में उठते थे । मेरे इन प्रश्नों के उत्तर मिलने के लिए ही मानो, मुझे गुरुकृपा से उस संदर्भ में कुछ सेवाएं मिल गईं, उदा. गायन, वादन, नृत्य के विविध प्रयोग, ध्वनिमुद्रित किए विविध नामजप के प्रयोग, विविध वस्तु, प्राणियों की सात्त्विकता की दृष्टि से लिए प्रयोग इत्यादि में सम्मिलित होकर सूक्ष्म से जो भी लगे, उसका लेखन करना । इस प्रकार मेरी सेवाओं की व्याप्ति बढती गई । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने मुझे मेरी सेवाओं की व्याप्ति के विषय में लेखन करने के लिए कहा । उनके आज्ञापालन के रूप में मैं अपनी सेवाओं की व्याप्ति यहां दे रहा हूं ।

प्राणशक्ति प्रणाली उपचार-पद्धति अनुसारउपचार ढूंढते सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी

२. आध्यात्मिक कष्टों पर उपचार बताना

मैं गत १२ वर्षाें से साधकों को आध्यात्मिक कष्टों पर न्यास, मुद्रा और नामजप ढूंढकर दे रहा हूं । इसके लिए मुझे सर्वत्र के साधक संपर्क करते हैं । वर्तमान में मुझे प्रतिदिन ५० से ६० साधकों को नामजपादि उपचार बताने पडते हैं । इसके लिए मुझे लगभग ४ घंटे लगते हैं । कोरोना महामारी के काल में यह मात्रा १०० से भी अधिक थी । उपचार बताने की सेवा करते समय आगे दिए सूत्र मुझे सीखने को मिले ।

अ. साधकों के कष्टों पर उपचार ढूंढते समय कभी-कभी अनिष्ट शक्तियों द्वारा साधक पर लाए गए कष्टदायक (काली) शक्ति के आवरण के कारण उस साधक के किसी चक्र पर आया कष्ट मुझे ध्यान में नहीं आता था । तब सतर्कता से परीक्षण करने पर मुझे ध्यान में आता कि ‘अनिष्ट शक्ति मुझे धोखा दे रही है ।’

आ. ‘किसी साधक पर कष्टदायक शक्ति का आवरण है’, यह अनिष्ट शक्ति मुझे कभी-कभी पता नहीं लगने देती थी । इसलिए साधकों के लिए उपचार ढूंढते समय मुझे सतर्क रहना पडता था ।

इ. साधकों के लिए नामजपादि उपचार ढूंढते समय मुझे भगवान ने कालानुसार उपचारों के समय ‘आज्ञाचक्र’ पर न्यास करने के मुख्य स्थान में हुआ परिवर्तन मेरे ध्यान में लाकर दिया । वह यह कि आज्ञाचक्र पर उपचार करने की अपेक्षा आंखों पर उपचार करना अधिक महत्त्वपूर्ण है । हम आंखों से पूरा जग देखते हैं, इसलिए अच्छी अथवा बुरी शक्ति सहजता से हमारे शरीर में प्रवेश करती है ।

ई. इसके आगे ध्यान में आया कि आज्ञाचक्र अथवा आंखों पर उपचार करने के स्थान पर सिर पर उपचार करना अधिक प्रभावकारी है; क्योंकि सिर का भाग मस्तिष्क से संबंधित होता है और मस्तिष्क हमारी कृतियों का नियोजन करता है । इसलिए अनिष्ट शक्ति साधक के मस्तिष्क पर आक्रमण कर, उसकी कृतियों पर नियंत्रण पाने का प्रयत्न करती हैं । आजकल कालानुसार अनिष्ट शक्तियां शारीरिक स्तर पर अधिक मात्रा में आक्रमण कर रही हैं ।

२ अ. गुरुकृपा से विविध विकारों पर देवताओं का नामजप ढूंढना : ‘कोई विकार दूर होने के लिए दुर्गादेवी, राम, कृष्ण, दत्त, गणपति, हनुमान एवं शिव, इन ७ मुख्य देवताओं में से कौनसे देवता का तत्त्व कितनी मात्रा में आवश्यक है ?’, यह ध्यान में ढूंढकर, मैंने कुछ विकारों पर जप बनाए हैं । सर्वप्रथम मैंने ऐसा जप मार्च २०२० में ‘कोरोना विषाणुओं’ की बाधा दूर करने के लिए ढूंढा था । जब उसकी प्रभावकारिता ध्यान में आई तो मुझे अन्य विकारों पर भी जप ढूंढने की प्रेरणा मिली । ये जप आवश्यकता अनुसार उन विविध देवताओं के एकत्रित जप हैं । मैं ये जप साधकों को उनके विकारों के अनुसार देता हूं । तब उनके अनुभवों से समझ में आया कि उन जप का उन्हें भी बहुत अच्छा लाभ हो रहा है । मैंने अब तक (मार्च २०२४ तक) शारीरिक और मानसिक विकारों पर कुल मिलाकर २५० विकारों पर देवताओं का नामजप ढूंढ निकाला है ।

३. दूसरों के लिए नामजपादि उपचार करना

कुछ साधक तीव्र शारीरिक, मानसिक अथवा आध्यात्मिक कष्ट के कारण कई बार स्वयं नामजपादि उपचार नहीं कर सकते । तब उनके लिए उपचार करने होते हैं । ऐसा ध्यान में आया है कि कई बार उत्तरदायी साधक अथवा संत जब किसी महत्त्वपूर्ण समष्टि सेवा में होते हैं, तब अनिष्ट शक्तियां आक्रमण कर उन्हें कष्ट देती हैं । उनके लिए समष्टि सेवा करना कठिन हो जाता है । तब उनके लिए नामजपादि उपचार करना आवश्यक होता है । समष्टि सेवा करनेवाले संतों अथवा साधकों को कष्ट होते समय उनके लिए नामजपादि उपचार करते समय मुझे कृतज्ञता लगती है कि मुझे ‘समष्टि सेवा’ का अवसर मिला । उपचार करते समय मुझे नई-नई बातें सीखने को मिली । उनमें से कुछ का संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है ।

अ. अनिष्ट शक्तियां यदि शरीर पर कष्टदायक शक्ति का आवरण लाएं, तो नामजप, मुद्रा और न्यास द्वारा उपचार करने से पहले आवरण निकालना चाहिए, अन्यथा उपचारों का परिणाम नहीं होता ।

आ. अनिष्ट शक्तियों द्वारा लाए आवरण विविध आकारों के प्रतीत होते हैं, उदा. सिर पर टोपी समान, सिर के सर्व ओर ‘हेल्मेट’ समान, शरीर के सामने किसी पर्दे समान, शरीर पर आया आवरण का पट्टा, संपूर्ण शरीर पर बुरके समान आवरण इत्यादि ।

इ. आवरण निकालने के लिए ‘एक हथेली अपनी दिशा में और उसपर दूसरी हथेली की पिछली बाजू,जिससे हथेली बाहर की दिशा में आए, ऐसे रख की गई मुद्रा और दोनों हथेलियों के बीच की उंगलियों के सिरे जोडकर की गई मुद्रा’ अर्थात ‘मनोरा मुद्रा, इन दो मुद्राओं का शोध मुझे गुरुकृपा से हुआ ।

ई. चक्रों पर उपचार करते समय कई बार अनिष्ट शक्तियों का कष्ट अल्प होने पर पुन: नामजप ढूंढकर उपचार करने और यह प्रक्रिया, कष्ट अल्प होने के प्रत्येक चरण पर पुनः-पुन: करने से कष्ट शीघ्र गति से पूर्णत: दूर होता है । इसका कारण है कष्ट के प्रत्येक चरण पर अनिष्ट शक्तियों के कष्ट की ऊर्जा का स्तर और उस कष्ट के लिए अचूक ढूंढे गए नामजप का स्तर एक समान होने से उपचार प्रभावकारी होते हैं ।

उ. चक्रों पर अनिष्ट शक्तियों का कष्ट पूर्ण रूप से दूर हो जाए, तब भी आंखों में कष्टदायक शक्ति शेष रहती है और आंखों पर उपचार कर उसे भी पूर्ण रूप से दूर करना आवश्यक होता है ।

ऊ. उपचार करते समय बीच-बीच में केवल श्वास पर ध्यान केंद्रित कर २ – ३ मिनट के लिए ध्यान लगाने पर निर्गुण स्तर के उपचार होकर कष्ट शीघ्र दूर होने में सहायता मिलती है ।

ए. उपचार करते समय शरणागतभाव रखने पर प्रभावकारी उपचार होकर कष्ट शीघ्र अल्प होता है ।

– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, पीएच.डी., महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (१७.४.२०२४)

(क्रमशः)

  • सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है ।
  • आध्यात्मिक कष्ट : इसका अर्थ है व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन होना । मंद आध्यात्मिक कष्ट का अर्थ है व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन ३० प्रतिशत से अल्प होना । मध्यम आध्यात्मिक कष्ट का अर्थ है नकारात्मक स्पंदन ३० से ४९ प्रतिशत होना; और तीव्र आध्यात्मिक कष्ट का अर्थ है नकारात्मक स्पंदन ५० प्रतिशत अथवा उससे अधिक मात्रा में होना । आध्यात्मिक कष्ट प्रारब्ध, पितृदोष इत्यादि आध्यात्मिक स्तर के कारणों से होता है । किसी व्यक्ति के आध्यात्मिक कष्ट को संत अथवा सूक्ष्म स्पंदन समझनेवाले साधक पहचान सकते हैं ।
  • बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्तियों से हो रही पीडा के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपचार वेदादि धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।
  • इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक