साधको, जिन पर स्वयं की सेवाओं का दायित्व है, उन साधकों को समझो !

साधकों ने भी ‘हम स्वयं उत्तरदायी साधक हैं’, इस भूमिका में जाकर विचार किया, तो उन्हें उन साधकों को समझना सरल होगा, उनकी समस्याएं भी ध्यान में आएंगी तथा उनके प्रति एक प्रकार की नकारात्मक अथवा कडवाहट की भावना अल्प होने में सहायता मिलेगी ।

अध्यात्मशास्त्र के दृष्टिकोण से हस्तरेखा शास्त्र !

‘हस्तरेखा शास्त्र हाथ की रेखाओं के आधार पर व्यक्ति के जीवन का मार्गदर्शन करनेवाला प्राचीन शास्त्र है । हस्तरेखा शास्त्र की सहायता से व्यक्ति का स्वभाव, स्वास्थ्य, बुद्धि, विद्या, कार्यक्षेत्र, प्रारब्ध आदि अनेक बातों का बोध होता है । प्रस्तुत लेख में हस्तरेखा शास्त्र में अध्यात्म से संबंधित सूत्रों का कैसे विचार किया जाता है, इसकी व्याख्या दी गई है ।

आध्यात्मिक कष्टों को दूर करने हेतु उपयुक्त दृष्टिकोण

कभी-कभी कष्ट की तीव्रता बहुत बढ जाने से नामजप करते समय बार-बार ध्यान विचलित होता है तथा उसे भावपूर्ण करने का चाहे कितना भी प्रयास करें, तब भी वह भावपूर्ण नहीं हो पाता ।

ग्रंथमाला : ‘कुम्भपर्व एवं वर्तमान स्थिति’

कुम्भमेला अर्थात हिन्दुओं का धार्मिक सामर्थ्य बढानेवाला पर्व ! प्रस्तुत ग्रन्थ में कुम्भपर्वक्षेत्र एवं उसकी महानता, कुम्भमेले की विशेषताएं, कुम्भक्षेत्र में करने-योग्य धार्मिक कृत्य एवं उनका महत्त्व, धर्मरक्षक अखाडों का महत्त्व, हिन्दू धर्म के उत्थान की दृष्टि से कुम्भमेले के कार्य आदि सम्बन्धी मौलिक विवेचन किया गया है ।

प्रयागराज में कुंभपर्व के समय की साधना का मिलता है १ सहस्र गुना फल ! इस अवधि में धर्मप्रसार की सेवा (समष्टि साधना) में सम्मिलित हों !

प्रयागराज में कुंभमेले की अवधि में सर्वत्र के साधकों को सेवा का अनमोल अवसर !

प्रयागराज में होनेवाले कुंभपर्व के लिए वहां अपनी वास्तु उपयोग हेतु देकर, धर्मकार्य में सहभागी हों !

निवास की दृष्टि से, तथा विविध सेवाओं के लिए प्रयाग में वास्तु की (घर, सदनिका [फ्लैट], सभागृह [हॉल] की) आवश्यकता है । 

अध्यात्म सीखने के चरण !

कथा एवं प्रवचन जैसे माध्यमों से केवल वैचारिक स्तर पर अध्यात्म बताना तथा ग्रहण करना मानसिक स्तर का होता है । वर्तमान समय की शैक्षिक पद्धति के अनुसार अध्यात्म सीखने का यह स्तर ‘बालवाडी’ स्तर का है ।

हस्तरेखा शास्त्र का प्राथमिक परिचय

‘व्यक्ति के हाथों की रेखाएं उसके मस्तिष्क का आलेख होती हैं । व्यक्ति के मन में यदि ६ माह से निरंतर एक ही विचार आता हो, तो हथेली के एक विशिष्ट क्षेत्र में उसकी रेखा तैयार होती है । ये रेखाएं तात्कालिक अथवा हाथों की मुख्य रेखाओं का विस्तार होती हैं ।

आध्यात्मिक कष्टों को दूर करने हेतु उपयुक्त दृष्टिकोण

सनातन का ग्रंथ ‘आध्यात्मिक कष्टों को दूर करने हेतु उपयुक्त दृष्टिकोण’ का कुछ भाग १६ से ३० सितंबर के अंक में पढा । आज आगे के दृष्टिकोण देखेंगे ।

ग्रन्थमाला : ईश्वरप्राप्ति हेतु साधना

व्यष्टि साधना (व्यक्तिगत साधना) कितनी भी कर लें, किन्तु समष्टि साधना (समाज की उन्नति हेतु साधना) किए बिना ईश्वरप्राप्ति नहीं होती ! व्यष्टि साधना के साथ समष्टि साधना की (राष्ट्ररक्षा, धर्मजागृति की) अनिवार्यता इस ग्रन्थ में स्पष्ट की है ।