‘मुझे विगत २० वर्ष से सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी का सत्संग मिल रहा है । सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी मुंबई, ठाणे एवं रायगड जिलों में अध्यात्मप्रसार की सेवा करते थे, उस समय हिन्दू जनजागृति समिति के अंतर्गत सेवा में हमारा उनसे संपर्क होता था । लगभग विगत १४ वर्ष से हम दोनों का देवद (पनवेल) के सनातन आश्रम में निवास है, इसलिए हम निरंतर एक-दूसरे के संपर्क में होते हैं । मेरी अल्पबुद्धि को प्रतीत उनकी गुणविशेषताएं तथा उनमें आ रहे परिवर्तनों को मैं कृतज्ञभाव से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के चरणों में समर्पित करता हूं ।
१. उत्साहित एवं प्रसन्न
सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी को कुछ बीमारियों के कारण तीव्र पीडा होती है; परंतु तब भी वे सदैव उत्साहित एवं प्रसन्न रहते हैं । ‘उनसे प्रेरणा लेकर मैं भी उत्साह से साधना करूं’, मुझे ऐसी प्रेरणा मिलती है ।
२. निकटता बनाना
सद्गुरु शिंदेजी सभी के साथ सहजता से बातें करते हैं । समाज के व्यक्ति, साधकों एवं संतों से शीघ्र ही उनकी निकटता हो जाती है । साधक उन्हें अपनी समस्याएं बता सकते हैं । सद्गुरु शिंदेजी साधकों को आधार प्रतीत होते हैं ।
३. व्यष्टि साधना के प्रति गंभीरता
अ. सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी भले ही ‘सद्गुरु’ पद पर विराजमान हों; तब भी वे निरंतर साधना के प्रयास करते हैं । एक बार उन्होंने बताया, ‘‘इस सप्ताह में मेरे स्वसूचना सत्र अल्प हुए ।’’
आ. नामजप बढाने हेतु वे निरंतर प्रयास करते रहते हैं ।
इ. सद्गुरु शिंदेजी ने अनावश्यक न बोलने हेतु प्रयास कर उस पर नियंत्रण पा लिया है ।
४. ‘संतों की प्रत्येक कृति ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम् ।’ अर्थात गुरुदेवजी को अपेक्षित होनी चाहिए’, सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी स्वयं के आचरण से यह सिखाते हैं ।
५. चूकों के प्रति संवेदनशील होना
अ. सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी निर्मलता से अपनी चूकें स्वीकार कर क्षमा मांगते हैं । वे स्वयं का निरीक्षण कर उनसे हुई चूकें सत्संग में बताते हैं ।
आ. सद्गुरु शिंदेजी मुझे एक सूत्र बताने हेतु मेरे कक्ष में आए थे । उस समय वे मुझसे ऊंचे स्वर में बात कर रहे थे, तभी मेरे कक्ष में रहनेवाले एक अन्य संत नामजप कर रहे थे । उन्होंने सद्गुरु शिंदेजी से ‘मैं नामजप कर रहा हूं । आप ऊंचे स्वर में बात न करें’, ऐसा जब बताया, तब सद्गुरु शिंदेजी ने अपने कान पकडकर उनसे क्षमायाचना की तथा संतों के सत्संग में अपनी यह चूक भी बताई ।
इ. एक बार वे कपडे खरीदने हेतु मुंबई गए थे । ‘उस समय नामजप करना निर्धारित कर मैं उस प्रकार प्रयास कर रहा था; परंतु कपडे देखते समय मेरा नामजप रुक गया ।’, उनकी यह चूक उन्होंने निर्मलता से बताई ।
६. सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी सनातन के ग्रंथ तथा दैनिक ‘सनातन प्रभात’ का अध्ययन कर उनसे सीखने का प्रयास करते हैं ।
७. साधकों को लगन तथा तत्परता से नामजपादि उपचार बताना
सद्गुरु शिंदेजी उनके कष्टों पर नामजपादि उपचार बताते हैं । सद्गुरु शिंदेजी में श्रद्धा है कि ‘यह सेवा मुझे भगवान ने दी है तथा भगवान ही मुझसे यह सेवा करवाएंगे ।’ साधकों को उनके बताए नामजप का लाभ मिल रहा है । सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी को जब भी आध्यात्मिक कष्ट से ग्रस्त साधकों का चल-दूरभाष (फोन) आता है, उस समय वे तुरंत ही अपनी सेवा रोककर साधकों को नामजपादि उपचार बताते हैं; क्योंकि सद्गुरु शिंदेजी को उस क्षण साधकों को हो रहे कष्ट का भान होता है ।
८. नेतृत्वगुण
अ. संतों के पास नामजपादि उपचार करने की समष्टि सेवा होती है । अनिष्ट शक्तियां इसमें बाधाएं उत्पन्न करती रहती हैं; परंतु यह सेवा निर्धारित समय-सीमा में, परिपूर्ण तथा भावपूर्ण करनी होती है । सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी बहुत ही अच्छे ढंग से प्राथमिकता से यह सेवा तथा उसका समन्वय करते हैं ।
आ. वे साधकों की व्यष्टि साधना का ब्योरा लेते समय साधकों से उनमें नेतृत्वगुण बढने हेतु प्रयास करवा रहे हैं ।
९. सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी ‘नामस्मरण करते समय कैसे भाव रखना है ? तथा मानस मुद्रा कैसे करनी चाहिए ?’, सभी को यह सिखाते हैं ।
१०. सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी का समाज के व्यक्ति, अनेक साधकों तथा संतों से संपर्क होता है, साथ ही अनेक लोग साधना का मार्गदर्शन लेने के लिए उनसे संपर्क करते हैं ।
११. ‘स्वयं को जो अच्छा सीखने के लिए मिला, उसे समष्टि को बताएं’, सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी की यह लगन होती है ।
१२. सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के आज्ञापालन के रूप में सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी ने समष्टि हेतु लेखन किया है । वे किसी भी बात का कर्तापन नहीं लेते ।
१३. गुरुदेवजी के प्रति भाव
सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी में सनातन के तीनों गुरुओं के प्रति (टिप्पणी) भाव है । सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी ने गुरुकार्य में स्वयं को समर्पित कर दिया है । ‘जो हुआ, जो हो रहा है तथा जो होनेवाला है, वह सब मेरे गुरु की कृपा है’, यह उनका भाव है ।
टिप्पणी – तीन गुरु : सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी
१४. सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी में प्रतीत परिवर्तन
१४ अ. साधकों को उनकी साधना में निरपेक्षता से सहायता करना : व्यष्टि साधना का ब्योरा देनेवाले साधकों तथा उनके संपर्क में आनेवाले व्यक्तियों का निरीक्षण कर वे उन्हें साधना में सहायता के रूप में उनकी अल्पता बताते हैं । अब वे साधकों से अपेक्षा किए बिना साधना में उनकी सहायता करते हैं ।
१४ आ. क्षमाशीलता में वृद्धि प्रतीत होना : सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी में ‘क्षमाशीलता’ का गुण बढ रहा है । वे स्थिर रहकर तथा शांति से साधकों को उनकी चूकें बताते हैं । इससे पूर्व उनसे चूक होने पर साधकों को सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी के प्रति भय प्रतीत होकर तनाव आता था; परंतु अब साधक चूकों से सीखकर स्वयं में सुधार लाने का प्रयास कर रहे हैं । इससे ‘सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी साधकों को क्षमा कर रहे हैं तथा साधकों से बहुत ही निकटता बना रहे हैं’, ऐसा मुझे लगता है ।
१४ इ. चैतन्य में वृद्धि प्रतीत होना : सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी की चैतन्यमय वाणी साधकों के अंतर्मन को भेदती है तथा उससे साधक स्वप्रेरणा से उनकी आज्ञा का पालन करते हैं । ‘सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी में विद्यमान चैतन्य बहुत बढ रहा है तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी सद्गुरु शिंदेजी से चैतन्य के स्तर पर कार्य करवा रहे हैं’, ऐसा मुझे लगता है ।
‘अध्यात्म, साधना एवं गुरुकार्य हेतु ही मेरा जीवन है’, सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी की ऐसी धारणा है । ‘मुझे ‘सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी का अनमोल सत्संग मिल रहा है, साथ ही मुझे साधना एवं सेवा में उनकी सहायता मिल रही है तथा उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है’, इसके लिए मैं सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी एवं सद्गुरु राजेंद्र शिंदेजी के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करता हूं ।’
– (पू.) शिवाजी वटकर (सनातन के १०२ वें [समष्टि] संत, आयु ७७ वर्ष), सनातन आश्रम, देवद, पनवेल (२०.८.२०२४)