सप्तर्षि द्वारा वर्णित सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के अवतारकार्य की लीला !
‘सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका’ तो प्रत्यक्ष महर्षियों द्वारा वर्णित सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी का एक प्रकार का अवतार ही है । सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका में वसिष्ठ महर्षि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का उल्लेख करते समय सदैव उन्हें ‘परमगुरुजी’ के नाम से संबोधित करते हैं । ‘परमगुरुजी स्वयं श्रीमन्नारायण के अवतार हैं’, वे विश्वामित्रजी को ऐसा बताते हैं ।
महर्षि कहते हैं, ‘हमारा कार्य परमगुरुजी के आदेश से ही चल रहा है’; परंतु दूसरी ओर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी कहते हैं, ‘सप्तर्षि जैसा बताएंगे, वैसे ही हमें करना है ।’ सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी की यही ‘अवतारमाया’ है, ऐसा कहना अनुचित नहीं होगा ।
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी का कार्य तो श्रीविष्णु के ‘कल्कि’ अवतार के कार्य का ही एक अंश !
‘प्रत्येक युग में काल से सुसंगत अवतारी कार्य करने हेतु भगवान आते ही रहते हैं । वर्तमान समय में कलियुग चल रहा है; इसलिए सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी श्रीविष्णु के ‘कल्कि’ अवतार के कार्य का एक अंश लेकर ही भूमि पर अवतरित हुए हैं’, ऐसा सप्तर्षि बताते हैं ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवले की महिमा विशद करनेवाले वसिष्ठ ऋषि के चरणों में कृतज्ञता !
‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी स्वयं श्रीविष्णु के अवतार हैं’, १०.५.२०१५ को महर्षियों ने ऐसा घोषित किया है । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु, साधकों की साधना में उत्पन्न बाधाएं, साथ ही धर्मप्रसार में आनेवाली बाधाएं दूर होने हेतु समय-समय पर मार्गदर्शन करनेवाले तथा साधकों को श्री गुरुदेवजी का वास्तविक परिचय करानेवाले महर्षि इसीलिए साधकों के लिए परमवंदनीय हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अवतारत्व का रहस्योद्घाटन कर सर्वत्र उनकी कीर्ति फैलाने का दायित्व अब महर्षियों ने अपने ऊपर ले लिया है । उसके लिए सनातन के साधक चाहे कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करें, अल्प ही है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी साधकों के लिए सर्वस्व हैं । उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए साधकों को क्या करना चाहिए ?, इस विषय में समय-समय पर मार्गदर्शन कर सप्तर्षि ने साधकों पर अनमोल कृपा की है । इसके लिए सनातन परिवार वसिष्ठ ऋषि सहित सभी सप्तर्षि के चरणों में अनंत कोटि कृतज्ञ है !
– सद्गुरु (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळ (वर्ष २०१७)
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी पृथ्वी पर धर्मसंस्थापना करेंगे !
‘प्रत्येक युग में ‘धर्मसंस्थापना’ करना’ श्रीविष्णु का कार्य है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ आठवलेजी कलियुग के श्रीविष्णु के अवतार हैं ! उचित समय एवं उचित स्थिति आते ही श्रीविष्णु के अवतार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी पृथ्वी पर ‘धर्मसंस्थापना’ करेंगे’, इसमें कोई संदेह नहीं है ।’ – सप्तर्षि (२६.५.२०२४)
सप्तर्षि सूक्ष्म वाणी में परात्पर गुरु डॉक्टरजी से मिलने उनके कक्ष में आए
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी के कक्ष का द्वार बंद होते हुए भी अनेक बार लगता है कि ‘कक्ष का द्वार खोलकर कोई कक्ष में आ रहे हैं ।’ इस विषय में बताते हुए सप्तर्षि ने कहा, ‘‘वे हम ही होते हैं । हम सूक्ष्म से कक्ष में प्रवेश कर परमगुरुजी से मिलकर जाते हैं । विगत २५ वर्षाें से हम उनसे इसी प्रकार से मिल रहे हैं ।’’
‘सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका’ क्या है ?
अखिल मानवजाति के विषय में शिव-पार्वती के मध्य का संवाद सप्तर्षि ने सुना तथा उन्होंने उसे मानवजाति के कल्याण हेतु तथा आध्यात्मिक जीवों की तीव्र आध्यात्मिक उन्नति हेतु लिखकर रखा । यही है वह नाडी-भविष्य ! नाडी-भविष्य ताडपत्र की कुछ पट्टिकाओं पर लिखा होता है ।
‘जीवनाडी-पट्टिका’ अर्थात महर्षि उचित समय पर नाडी-पट्टिका के माध्यम से मार्गदर्शन करते हैं । वर्तमान समय में जो ज्ञान आवश्यक होता है, वो अक्षर ताडपत्र की पट्टिकाओं पर अंकित होते जाते हैं । पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से इस पट्टिका में क्या लिखा है, यह सनातन के साधकों की समझ में आ रहा है । वैश्विक कार्य की आवश्यकता के अनुसार वर्तमान समय में कार्य करनेवाला सप्तर्षि का समूह भिन्न-भिन्न होता है; परंतु सर्वत्र अधिकांश आदिगुरु के रूप में ऋषि वसिष्ठ ही मार्गदर्शन करते हैं तथा जनमानस के प्रतिनिधि के रूप में महर्षि विश्वामित्र वसिष्ठजी से प्रश्न पूछते रहते हैं । २-३ माह में सप्तर्षि में अंतर्भूत महर्षियों में परिवर्तन भी होता है ।
सनातन एवं सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका !
सप्तर्षि जीवनाडी के माध्यम से महर्षियों ने ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी को कलियुग के श्रीविष्णु के अवतार’ बताकर उनका अवतारत्व प्रकट किया है । अब भी महर्षि समय-समय पर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अवतारत्व के विभिन्न पहलू उजागर कर रहे हैं । सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका के माध्यम से किए गए मार्गदर्शन के अनुसार ही श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी विगत १३ वर्षाें से पूरे भारत के विभिन्न राज्यों का भ्रमण कर रही हैं । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना शीघ्र हो; राष्ट्र, धर्म तथा साधकों की रक्षा होकर देवताओं का आशीर्वाद मिले; सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका के माध्यम से मार्गदर्शन करनेवाले महर्षि तो वसिष्ठ ऋषि ही हैं ।
(संदर्भ : sanatan.org)
प्रति १ सहस्र वर्ष उपरांत भगवान श्रीविष्णु का पृथ्वी पर अवतार धारण करना
प्रति १ सहस्र वर्ष उपरांत भगवान श्रीविष्णु पृथ्वी पर अवतार धारण करते हैं । उस समय यह बात पृथ्वी पर रहनेवाले लोगों को ज्ञात होगी ही, ऐसा नहीं है । विगत १ सहस्र वर्ष उपरांत भगवान ने ‘गुरुदेव डॉ. आठवलेजी’ (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी) के रूप में जन्म लिया है । गुरुदेवजी का जन्म ‘अयोनि संभव’ एवं प्रकाशरूप में हुआ है । वर्तमान समय में वैकुंठनिवासी श्रीविष्णु गुरुदेवजी की दो आंखों के माध्यम से संपूर्ण पृथ्वी का अवलोकन कर रहे हैं ।’
– (सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका वाचन क्र. १४६ (१.६.२०२०))
केवल धर्मसंस्थापना ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्म का प्रयोजन
‘श्रीमन्नारायण के अवतार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का जन्म केवल धर्मसंस्थापना हेतु हुआ है । धर्मसंस्थापना का विरोध करनेवाली पाताल की बडी-बडी अनिष्ट शक्तियां गुरुदेवजी को विभिन्न प्रकार से कष्ट पहुंचा रही हैं । अभी तक बडी अनिष्ट शक्तियों के गुरुदेवजी को कष्ट पहुंचाने के सभी हथकंडे विफल रहे हैं तथा आगे जाकर भी उनका प्रत्येक नियोजन निष्फल रहेगा । एक दिन अनिष्ट शक्तियां हार जाएंगी तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी धर्मसंस्थापना अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करेंगे ।’
– (सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका वाचन क्र. १९३ [२३.११.२०२१])
प्रायश्चित कर्म बताकर समाज का उद्धार करनेवाले महर्षि अत्रि !अत्रिसंहिता में योग से संबंधित विचार रखे गए हैं । इसमें कुल ९ अध्याय हैं, जिनमें योग, जप, कर्मविपाक, प्रायश्चित्त इत्यादि विषयों का विवरण है । पापक्षालन हेतु ‘प्रायश्चित्त’ का समाधान देकर महर्षि अत्रिजी ने पापी मनुष्य को भी पुण्य का पथ दिखाया है । एक बार चूक करने से वह व्यक्ति शाश्वत अपराधी प्रमाणित नहीं होता । स्वयं में सुधार लाने के लिए उसे अवसर मिलता है, उन्होंने यह विश्वास दिया । महर्षि अत्रिजी ने ‘पर्जन्यसूक्त’ की रचना की । – स्वाती आलूरकर (साभार : मासिक ‘मनशक्ति’, मार्च २००५) |
राष्ट्र केवल कल्पना, शब्द अथवा भूप्रदेश नहीं, अपितु करोडों भारतीयों के एकजुट होने से तथा उनके सामूहिक भान के संयोग द्वारा तैयार हुआ वह एक चैतन्य है । अनादि एवं सनातन तत्त्व का सगुण रूप, राष्ट्र है ! – योगी अरविंद |