चिकित्सकीय अध्ययन एवं साधना, इन दोनों में सफलता प्राप्त करनेवाली सनातन की युवा साधिका डॉ. (कु.) श्रिया साहा !

बंगाल की दैवी युवा साधिका तथा डॉ. (कु.) श्रिया साहा ने एक ही समय पर चिकित्सकीय अध्ययन एवं साधना के प्रयास किए । उन्होंने चर्मरोग विशेषज्ञ की (एम.डी. डर्मेटोलॉजी) शिक्षा ली है, साथ ही साधना में प्रगति कर ६२ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया है ।

अनिष्ट शक्तियों के कारण होनेवाले कष्टों को मात करने के लिए आध्यात्मिक स्तर पर उपचारों की क्षमता व साधना बढाएं !

‘मनुष्य के जीवन में आनेवाली ८० प्रतिशत समस्याओं के पीछे प्रारब्ध, अतृप्त पूर्वजों के लिंगदेह से कष्ट, अनिष्ट शक्तियों के कष्ट इत्यादि आध्यात्मिक कारण होते हैं ।’

‘स्वभावदोष एवं अहं के निर्मूलन की प्रक्रिया, अर्थात साधकों की आध्यात्मिक उन्नति के लिए भगवान द्वारा दी गई संजीवनी है’, इसे अनुभव करनेवाली ६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर की श्रीमती अनुराधा निकम (वय ६४ वर्ष)!

हमारे द्वारा की हुई प्रत्येक कृति एवं उसके पीछे की विचारप्रक्रिया ईश्वर को अपेक्षित होने हेतु व्यष्टि साधना के ब्योरे होते हैं और हमारी आनंदयात्रा आरंभ होती है ।

साधकों को साधना के लिए प्रेरित करनेवाला श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी का अमूल्य मार्गदर्शन !

‘आश्रम में रहकर पूर्णकालीन साधना करनेवाले एक साधक ने उसे हो रहे आध्यात्मिक कष्टों के कारण घर जाने का विचार किया । श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी को उसने यह बताया ।

साधको, ‘मेरी आध्यात्मिक उन्नति कब होगी ?’, इसकी चिंता किए बिना गुरुदेवजी के प्रति श्रद्धा रख लगन से प्रयास करते रहें !

‘प.पू. डॉक्टरजी ने एक साधिका को बताया था कि आध्यात्मिक उन्नति २० वर्ष उपरांत होगी । उसके उपरांत उत्तरदायी साधकों ने उसकी सहायता करने के लिए न जाने कितने प्रयास किए; परंतु तब भी उसमें साधना के संदर्भ में किसी प्रकार का भान उत्पन्न नहीं हो रहा था ।

गुरुकृपायोग के अनुसार साधना में भक्तियोग, कर्मयोग एवं ज्ञानयोग से संबंधित कुछ तत्त्वों का समावेश होने से साधकों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होना

‘गुरुकृपायोगानुसार साधना में ‘स्वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, नामजप, सत्संग, सत्सेवा, भक्तिभाव, सत् के लिए त्याग एवं अन्यों के प्रति प्रीति (निरपेक्ष प्रेम)’ इस अष्टांग साधना के अनुसार साधना करते समय साधकों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होती है ।

साधना में स्थूल स्तर की चूकें बताने का महत्त्व !

‘साधना में मन के स्तर पर होनेवाली अनुचित विचार-प्रक्रिया अधिक बाधक होती है । अंतर्मुखता के अभाव के कारण साधक को अपनी चूकें समझ में नहीं आतीं तथा वे चूकें मन के स्तर की चूकें होने के कारण अन्यों के ध्यान में भी नहीं आतीं ।

साधको, गुरुसेवा में रुचि-अरुचि को न संजोकर ‘शूद्र वर्ण की सेवा करने से तीव्र गति से आध्यात्मिक उन्नति होती है’, यह ध्यान में रखकर सभी सेवाएं करने की तैयारी रखें !

संगणकीय सेवा करनेवाले कुछ साधकों को स्वच्छता सेवा अथवा रसोईघर से संबंधित सेवाएं कनिष्ठ स्तर की लगती हैं । उसके कारण वे शूद्र वर्ण की इन सेवाओं को करने में टालमटोल करते हैं ।

साधकों में व्यष्टि एवं समष्टि साधना के प्रति गंभीरता बढाने के लिए उत्तरदायी साधक सभी साधकों के व्यष्टि लेखन का ब्योरा लें !

‘अब आपातकाल की तीव्रता प्रतिदिन बढती जा रही है । उसके कारण सभी साधकों की व्यष्टि एवं समष्टि साधना नियमित होनी चाहिए ।

आंतरिक आनंद, संतुष्टि एवं ‘श्रीकृष्ण की सेवा’ भाव से नृत्य करनेवालीं देहली की प्रसिद्ध भरतनाट्यम् नृत्यांगना तथा नृत्यगुरु पद्मश्री श्रीमती गीता चन्द्रन् !

देहली की प्रसिद्ध भरतनाट्यम् नृत्यांगना एवं कर्नाटक शैली की गायिका पद्मश्री श्रीमती गीता चन्द्रन् से भेंट की । इस भेंट में श्रीमती गीता चन्द्रन् द्वारा वर्णित उनकी नृत्यसाधना की यात्रा यहां दी गई है ।