१. ‘मेरे गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी की कृपा से ‘गुरुकृपायोग’ नामक साधनापद्धति की निर्मिति हुई । इसमें विभिन्न साधनामार्ग, उदा. भक्तियोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग आदि समाए हुए हैं । उसके कारण साधकों की आध्यात्मिक उन्नति तीव्रगति से होती है ।
२. कलियुग में भक्तियोग के अनुसार साधना कर शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति करना संभव है । इसके लिए ‘गुरुकृपायोग’ भक्तियोगप्रधान है । गुरुकृपायोग के अनुसार साधना करते समय साधक को आवश्यकता के अनुसार अन्य साधनामार्ग भी सिखाए जाते हैं ।
३. गुरुकृपायोग में ज्ञानयोग की स्वतंत्ररूप से शिक्षा न देते हुए उसे भक्तियोग के माध्यम से सिखाया जाता है, यह इसकी एक विशेषता है । भक्तियोग के अनुसार उपासना करते समय साधक को उसमें समाहित केवल कृतियां करने के लिए न कहकर वह उस प्रकार से क्यों करनी चाहिए ? तथा उसका क्या शास्त्र है ?, इसका भी ज्ञान विशद किया जाता है, उदा. भक्तियोग के अनुसार ‘श्री विठ्ठल को बुक्का तथा तुलसी की माला प्रिय है; इसलिए उन्हें वह समर्पित करनी चाहिए’, ऐसा बताया जाता है; जबकि गुरुकृपायोग के अनुसार साधना करनेवाले साधक को ‘श्री विठ्ठल को बुक्का तथा तुलसी की माला ही क्यों अर्पित करनी चाहिए ?’, इसका शास्त्र भी बताया जाता है । संक्षेप में कहा जाए, तो ‘गुरुकृपायोग में ‘ज्ञानयोग’ भक्तियोग के अंतर्गत आता है ।’
४. गुरुकृपायोग में अन्य साधनामार्ग, उदा. कर्मयोग, नामसंकीर्तनयोग, मंत्रयोग जैसे साधनामार्ग के अनुसार साधना करते समय उनकी जानकारी दी जाती है, वह केवल उस साधनामार्ग के तत्त्व अथवा विवेचन करने तक सीमित होती है, उदा. कर्मफल कैसे लागू होता है ? कौनसा नाम तथा कैसे लेना चाहिए ? इत्यादि’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी (१२.७.२०२३)