राष्ट्रविरोधी व्यक्ति स्वतंत्रता वाले !

‘व्यक्ति की अपेक्षा समाज एवं समाज की अपेक्षा राष्ट्र महत्त्वपूर्ण है, यह न समझनेवाले व्यक्ति स्वतंत्रता के पक्षधर देश को विनाश की ओर ले जा रहे हैं !’

संपूर्ण सृष्टि के कर्ता-करावनहार भगवान का ही अस्तित्व नकारने वाले बुद्धिवादी !

‘कर्ता द्वारा बनाई गई वस्तु कभी भी कर्ता से श्रेष्ठ नहीं हो सकती, उदा. बढई द्वारा बनाई गई कुर्सी कभी भी बढई से श्रेष्ठ नहीं हो सकती । ऐसा होते हुए भी भगवान द्वारा निर्मित कुछ मनुष्य संपूर्ण सृष्टि के कर्ता-करावनहार भगवान को ही तुच्छ समझते हैं !’

हास्यास्पद बुद्धिवादी !

‘जिस प्रकार जन्म से दृष्टिहीन कोई व्यक्ति कहे, ‘देखना, दृष्टि, ऐसा कुछ होता है’, यह मानना अंधश्रद्धा है’; उसी प्रकार बुद्धिवादी कहते हैं, ‘सूक्ष्म दृष्टि जैसा कुछ है’, यह मानना अंधश्रद्धा है !’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘अपनी इच्छा के अनुसार न हो, तो मानसिक तनाव बढता है और आगे अनेक मनोविकार होते हैं । इसके लिए आजकल के मनोविकार विशेषज्ञ विविध उपाय सुझाते हैं; परंतु कोई भी यह नहीं सिखाता कि स्वेच्छा नहीं रखनी चाहिए ।

हिन्दू नववर्षारंभ (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) से व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में रामराज्य स्थापित करने का संकल्प करें !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का नववर्ष के अवसर पर संदेश

सूक्ष्म आयाम को समझने की क्षमता रखना – सनातन संस्था के साधकों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता !

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने अपने गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी के आशीर्वाद से १.८.१९९१ को ‘सनातन भारतीय संस्कृति संस्था’ की स्थापना की । उसके उपरांत उन्होंने संस्था का नाम सरल करने हेतु २३.३.१९९९ को ‘सनातन संस्था’ की स्थापना की । अब मार्च २०२४ में सनातन संस्था के २५ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं । इस … Read more

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की कृपा से ‘सनातन के साधक आनंद में रहनेवाले जीव हैं, इसकी प्रतीति लेनेवाले समाज के विभिन्न व्यक्ति !

‘‘सनातन के साधक सदैव आनंद में रहते हैं । हमारे यहां संप्रदाय जैसी विशिष्ट वेशभूषा नहीं होती; परंतु ‘चेहरे पर दिखाई देनेवाला आनंद’ ही हमारे साधकों की पहचान है ।

सनातन की सर्वांगस्पर्शी ग्रंथसंपदा

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की सिद्ध लेखनी से साकार हुए सनातन के ग्रंथ चैतन्यमय ज्ञान का भंडार है ! ये ग्रंथ केवल स्पर्श से लोहे को सोना बनानेवाले पारस के समान हैं; क्योंकि ग्रंथों में दी गई सीख के अनुसार आचरण करने से अनेक लोगों के जीवन में आमूल परिवर्तन हो रहे हैं !

साधकों को संतों के सत्संग में कुछ न बोलना हो, तब भी सत्संग से होनेवाले लाभ प्राप्त करने के लिए उन्हें सत्संग में बैठना चाहिए !

‘संत अर्थात ईश्वर का सगुण रूप ! ‘उनका सत्संग मिलना’ साधकों का अहोभाग्य ही है । संतों के सत्संग में रहने पर उनमें विद्यमान ईश्वरीय चैतन्य का साधकों को लाभ मिलता रहता है ।

रज-तम का प्रदूषण सभी प्रदूषणों की जड है !

‘ध्वनिप्रदूषण, जलप्रदूषण, वायुप्रदूषण आदि से संबंधित सदैव समाचार आते हैं; परंतु धर्म शिक्षा के अभाव में उनकी जड रज-तम के प्रदूषण की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता !’