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आभूषण धारण करने से शरीर के संबंधित भाग के बिंदु दबने से बिंदुदाब के उपचार होते हैं । इससे पूर्व से चला आ रहा आभूषण धारण करने का उद्देश्य अज्ञानवश आध्यात्मिक स्तर पर बिंदुदाब पद्धति से निरंतर कार्य करता है, यह ध्यान में आता है ।

हिन्दू संस्कृति के आधार पर कैलाश से कन्याकुमारी तक भारत को पुनः अखंड करने का संकल्प पारित !

हिन्दू संस्कृति के आधार पर पुनः भारत अखंड होगा । वेद भारतीय संस्कृति का मूल है तथा वेदों का मूल संस्कृति एवं संस्कृत है ।

हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी की सनातन धर्म परिषद, देहली के कार्यकारी अध्यक्ष श्री. भूषण लाल पराशरजी से सस्नेह भेंट !

श्री. पराशरजी ने कहा ‘हम सनातन के ग्रंथ देहली के प्रमुख मंदिरों में रखने का प्रयास करेंगे ।’

वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में ‘ज्ञानशक्ति प्रसार अभियान’ को समाज का उत्स्फूर्त प्रतिसाद !

राज्यमंत्री श्री. रविंद्र जयसवालजी ने संपर्क के विषय सुनते ही तुरंत दो संच की मांग दी । ‘हलाल अर्थव्यवस्था भारत के लिए संकट कैसे है’, यह बताने पर उन्होंने यह विषय विधानसभा में उठाने का आश्वासन दिया ।

परिजनों की भी साधना में अद्वितीय प्रगति करवानेवाले एकमेवाद्वितीय पू. बाळाजी (दादा) आठवलेजी ! (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता)

अनेक लोगों को ‘पैतृक संपत्ति’ अर्थात घर, पैसे इत्यादि मिलते हैं । हम पांचों भाईयों के संदर्भ में हमें प्राप्त पैतृक संपत्ति अर्थात ‘माता-पिता ने किए संस्कार और साधना की रुचि ।’ व्यवहारिक वस्तुओं की तुलना में यह संपत्ति अनमोल है ।

समर्पित जीवन जीनेवाली और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति उत्कट भाव से युक्त बेळगांव की श्रीमती विजया दीक्षित बनीं सनातन की ११३ वीं व्यष्टि संत !

श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी ने पू. दीक्षितजी को पुष्पहार पहनाकर और भेंटवस्तु देकर उनका सम्मान किया, साथ ही जन्मदिन के निमित्त उनकी आरती भी उतारी ।

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के अमृतवचन

प्रारब्ध कितना भी कठिन हो, भगवान से आंतरिक सान्निध्य बनाए रख, उचित क्रियमाण का उपयोग कर कर्म करनेसे उस पर मात की जा सकती है ।

६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद) के स्वर में ध्वनिमुद्रित किया गया ‘ॐ निर्विचार’ नामजप सुनने के प्रयोग में सम्मिलित साधकों को हुए कष्ट और प्राप्त विशेषतापूर्ण अनुभूतियां

मन निर्विचार करने हेतु स्वभावदोष और अहं का निर्मूलन, भावजागृति इत्यादि चाहे कितने भी प्रयास किए, तब भी मन कार्यरत रहता है, साथ ही किसी देवता का अखंड नामजप भी किया, तब भी मन कार्यरत रहता है और मन में भगवान की स्मृतियां, भाव इत्यादि आते हैं ।

निधन वार्ता

कतरास (झारखंड) के सनातन के साधक श्री. पूरण चंद धानु का (आयु ६४ वर्ष) १५ नवंबर २०२१ को सवेरे हृदयाघात के कारण निधन हो गया । सनातन परिवार उनके दुःख में सहभागी है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

पूर्व काल में सभी साधना करते थे, इसलिए दूसरों से कैसे बात करें , यह उन्हें सिखाना नहीं पडता था । बचपन से ही यह आत्मसात रहता था ; परंतु अब प्रत्येक को यह सिखना पडता है ! – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले