मानवी बुद्धि एवं पारमार्थिक तथ्य !

सर्वाेत्तम शिक्षा क्या है ?

पू. डॉ. शिवकुमार ओझाजी

     पू. डॉ. शिवकुमार ओझाजी (आयु ८७ वर्ष) ‘आइआइटी, मुंबई’ में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी प्राप्त प्राध्यापक के रूप में कार्यरत थे । उन्होंने भारतीय संस्कृति, अध्यात्म, संस्कृत भाषा इत्यादि विषयों पर ११ ग्रंथ प्रकाशित किए हैं । उसमें से ‘सर्वाेत्तम शिक्षा क्या है ?’ नामक हिंदी ग्रंथ का विषय यहां प्रकाशित कर रहे हैं । गत लेख में ‘अनेक विषयों के बारे में बुद्धि की अनभिज्ञता !’, इन विषयों पर किया विवेचन दिया गया था । अब देखेंगे उसका अगला भाग ! (भाग १२)

४६. मानसिक भावनाओं की प्रबलता एवं अयोग्य कृति संवेदनाओं के सामने बुद्धि को प्रायः झुकना पडता है ।

     जीवन में हम सभी का यह अनुभव रहता है कि जानते-बूझते हुए भी कि अमुक कार्य करना गलत है; परंतु तब भी हम मानसिक संवेदनाओं की प्रबलता के कारण उस कार्य को करने की ओर प्रवृत्त होते हैं और अंत में उसे करने के लिए बाध्य हो जाते हैं ।

४७. मानवी बुद्धि की उत्पत्ति अन्य बातों की निर्मिति के उपरांत होने से सृष्टि के विस्तार के समय मानवी बुद्धि पहली बात नहीं

     सृष्टि विस्तार में मानवीय बुद्धि पहला पदार्थ नहीं । सृष्टि की उत्पत्ति अव्यक्त प्रकृति से हुई है । सृष्टि उत्पत्ति एवं उसके विस्तार की प्रक्रिया सूक्ष्म से स्थूल पदार्थों की ओर बही है । सृष्टि में भिन्न-भिन्न पदार्थों के आने का क्रम देखा जाए (सांख्य दर्शन, सूत्र १/२६) तो पाते हैं कि मानव बुद्धि कुछ अन्य पदार्थों के आने के पश्चात आई है । इसका तात्पर्य यह हुआ कि इस सृष्टि में बहुत से पदार्थों का आना तथा निश्चयात्मक रूप से उनका कारण जानना मनुष्य की बुद्धि के परे है ।

४८. पारमार्थिक तथ्यों को समझना संभव नहीं

     तीनों कालों में जिस वस्तु का निषेध (मनाही) नहीं होता है, वह पारमार्थिक कहलाती है । ‘पारमार्थिक’ शब्द का मतलब होता है परमार्थ (परम अर्थ) संबंधी । परम अर्थ का मतलब होता है नाम, रूप आदि से परे, अर्थात संसार के परे । कुछ पारमार्थिक प्रश्न जो प्रत्येक मनुष्य के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं तथा मनुष्य की बुद्धि जिन्हें नहीं समझ सकती, नीचे प्रस्तुत किए गए हैं ।

४८ अ. विश्व के संदर्भ में पारमार्थिक प्रश्न : संसार संबंधी पारमार्थिक प्रश्न – संसार किसलिए है ? संसार कहां से बना ? संसार कहां से आया ? संसार कहां जा रहा है ? प्रकृति क्या है ? विश्व में सूर्य, चांद, सितारे, ग्रहों आदि के चलने के इतने निपुण एवं अटल नियम किसने बनाए ? सांसारिक पदार्थों के गुण किसने बनाए ? इस विश्व का अधिष्ठाता कौन है ? दुनिया में इतना ज्ञान-विज्ञान निकलता है, इतना अनुशासन है, इतनी बुद्धियां निकलती हैं, उनका उद्गम कहां है ? इत्यादि ।

४८ आ. मनुष्य संबंधी पारमार्थिक प्रश्न : मैं कौन हूं ? कहां से आया हूं ? कहां जा रहा हूं ? दुःख से कैसे बचूं ? मेरा संसार से क्या संबंध है ? संसार का मुझसे क्या संबंध है ? मेरे जीवन का संचालन कहां से हो रहा है तथा कैसे हो रहा है ? किसके नियंत्रण में बंधे हुए ये अनंत जीव सुख-दुःख भोग रहे हैं ? इत्यादि ।

४८ इ. ईश्वर संबंधी पारमार्थिक प्रश्न : ईश्वर या परमात्मा क्या है ? क्या परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है ? परमात्मा का संसार से क्या संबंध है ? संसार का परमात्मा से क्या संबंध है ? परमात्मा का मनुष्य से क्या संबंध है ? हमारा परमात्मा से क्या संबंध है ? इत्यादि ।’                                 (क्रमशः)

– (पू.) डॉ. शिवकुमार ओझा, वरिष्ठ शोधकर्ता एवं भारतीय संस्कृति के अध्ययनकर्ता (साभार : ‘सर्वाेत्तम शिक्षा क्या है ?’)