तृतीय विश्वयुद्ध के विषय में भविष्यकथन, विश्वयुद्ध का दुष्परिणाम और उसमें से बचने हेतु उपाय

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी
श्री. शॉन क्लार्क

१. प्रस्तावना

     पिछले कुछ दशकों में समस्त विश्व ‘प्राकृतिक आपदाओं, आतंकी गतिविधियों, युद्ध और राजनीतिक उथलपुथल’ जैसे दुष्टचक्रों से गुजर रहा है । ये सब रुकने के चिन्ह दिखाई नहीं दे रहे हैं । केवल इतना ही नहीं, यह सब घटता हुआ भी दिखाई नहीं दे रहा है । संपूर्ण विश्व एक अनिश्चित भविष्य की ओर अनियंत्रित पद्धति से खिंचता जाता हुआ देखकर कई लोगों के मन में असहायता की भावना उत्पन्न हो रही है । नॉस्ट्रेडैमस, एडगर केयस जैसे द्रष्टाओं ने विश्व का भयंकर विनाश होने के संदर्भ में अपना भविष्यकथन लिखकर रखा है । ‘विश्व को विनाश की खाई में ढकेलनेवाली घटनाओं के पीछे आध्यात्मिक कारण’ एवं ‘संपूर्ण मनुष्यजाति का भविष्य’ विषय में ‘एसएसआरएफ’ ने शोधकार्य किया । यह शोधकार्य प्रमुखता से निम्नांकित दो सूत्रों पर आधारित है तथा इस शोध से ध्यान में आए सूत्र इस लेख के माध्यम से रखने का प्रयास कर रहा हूं ।

अ. तृतीय विश्वयुद्ध और प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि होना जैसी घटनाएं विश्व स्तर पर घटित करनेवाली आध्यात्मिक शक्ति

आ. इन घटनाओं का प्रभाव न्यून करने के लिए अथवा तीसरे विश्वयुद्ध के समय में स्वयं की रखा करने हेतु अखिल मनुष्यजाति को करने आवश्यक उपाय

२. तृतीय विश्वयुद्ध के विषय में किया गया भविष्यकथन और सूक्ष्म स्तरीय युद्ध

     संपूर्ण विश्व में सूक्ष्म स्तर पर एक विश्वयुद्ध चल रहा है; परंतु इस विषय में अधिकांश लोगों को कुछ भी ज्ञात नहीं है । यह सूक्ष्म स्तरीय युद्ध अच्छी शक्तियों और अनिष्ट शक्तियों के मध्य चल रहा है । आज के समय में पृथ्वी पर हो रही कुछ घटनाएं सूक्ष्म के युद्ध का दृश्य परिणाम है । इस युद्ध के परिणामों का भविष्य में विश्व का विविध स्तरों पर अत्यंत तीव्रगति से पतन होने के लिए बीजरूप में रोपण किया गया है । ये परिणाम दो प्रकार के हैं –

अ. संपूर्ण विश्व की सात्त्विकता न्यून होना

आ. अखिल मानवजाति पर अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव बढ जाना : वर्ष १९९३ से सूक्ष्म की शक्तिशाली अनिष्ट शक्तियों ने समाज पर नियंत्रण स्थापित कर अधर्माचरण को बल दिया और वहीं से पतन का आरंभ हुआ । उससे पूर्व समाज में रज-तम के बढने से विविध माध्यमों से इस पतन का आरंभ हुआ ही था । उसके प्रमुख कारण हैं, ‘मनुष्य की माया की ओर स्थित खिंचाव और साधना से दूर जाने के कारण उत्पन्न धर्माचरण का अभाव !’ ७ वें पाताल की बडी अनिष्ट शक्तियों के प्रभाव के कारण समाज का तीव्रगति से पतन हो रहा है । जैसे-जैसे समाज अधिकाधिक अधर्मी बनता जा रहा है, वैसे-वैसे अनिष्ट शक्तियों ने समाज पर अधिकाधिक नियंत्रण स्थापित किया और इसके फलस्वरूप वातावरण में रज-तम और अधिक बढ रहा है । इस रज-तम के प्रभाव के कारण वातावरण और समाज अस्थिर बनता जा रहा है । ‘इसका परिणाम भीषण प्राकृतिक आपदाओं और तृतीय विश्वयुद्ध में होगी’, इसमें कोई संदेह नहीं है ।

३. तृतीय विश्वयुद्ध की तीव्रता

     पृथ्वी पर स्थूल से होनेवाला यह युद्ध सूक्ष्म से घटित होनेवाली घटनाओं के परिणाम होते हैं । सूक्ष्म युद्ध के लिए मूल कारणों को जानने की क्षमता आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत जीवों में ही होती है । वास्तव में इस सूक्ष्म युद्ध के कुछ ही अंश का पृथ्वी पर अनुभव हो सकेगा; परंतु यह थोडासा अंश भी विश्व की दृष्टि से अत्यंत विनाशकारी और प्रचंड हानि करनेवाला होगा । यह काल संपूर्ण मानवजाति को बढती जानेवाली प्राकृतिक आपदाओं और तृतीय विश्वयुद्ध के रूप में भोगना पडेगा । तृतीय विश्वयुद्ध में उपयोग किए जानेवाले परमाणु शस्त्रों के कारण प्रचुर मात्रा में हानि होनेवाली है । अधर्माचरण में वृद्धि होने के कारण पृथ्वी की सात्त्विकता लय तक पहुंच गई है; जिसके परिणामस्वरूप बाढ, भूकंप, ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हो रही है । सप्तपातालों में विद्यमान बडी अनिष्ट शक्तियों के नियंत्रण में गए लोग और उसके कारण घटित होनेवाले प्रसंग विश्व को तृतीय विश्वयुद्ध की खाई में ढकेलनेवाले हैं ।

३ अ. स्थूल और सूक्ष्म युद्ध की तीव्रता : स्थूल और सूक्ष्म के पहलुओं के आधार पर विश्वयुद्धों की तीव्रता का किया गया तुलनात्मक अध्ययन आगे दिया गया है –

 

     तृतीय विश्वयुद्ध में होनेवाली हानि प्रथम विश्वयुद्ध की तुलना में साढे चार गुना और द्वितीय विश्वयुद्ध की तुलना में तीन गुना अधिक होगी ।’

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

     इससे सूक्ष्म स्तरीय युद्ध और तृतीय विश्वयुद्ध के मध्य के परस्परसंबंधों की सामान्य रूप से कल्पना की जा सकती है । पिछले कुछ वर्षाें में विश्व पर आए बडे संकट एवं आतंकी आक्रमण इस सूक्ष्म युद्ध से संबंधित हैं । पाताल की बडी अनिष्ट शक्तियां बुरी मनोवृत्तिवाले लोगों पर नियंत्रण स्थापित कर उनसे दुष्कृत्य करवा लेते हैं और समाज को हानि पहुंचाते हैं ।

४. तृतीय विश्वयुद्ध एवं सूक्ष्म स्तरीय युद्ध में स्थित प्रमुख चरण

तृतीय विश्वयुद्ध के चरण

     नीचे दी गई सारणी में तृतीय विश्वयुद्ध के आरंभ से लेकर अंत तक का घटनाक्रम और अच्छी शक्तियों द्वारा अनिष्ट शक्तियों पर प्राप्त की हुई विजय, अर्थात ही ‘ईश्वरीय राज्य’ की स्थापना की समयावधि दी गई है ।

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

४ अ. तृतीय विश्वयुद्ध के लिए कारण घटक : तृतीय विश्वयुद्ध का आरंभ सूक्ष्म की अनिष्ट शक्तियों के कारण होनेवाला है । बडी अनिष्ट शक्तियां समाज की धार्मिक संवेदनशीलता का लाभ उठाकर समाज को शीर्ष स्तर के कदम उठाने के लिए बाध्य बनाएंगे और उसके कारण विश्व के कुछ राष्ट्र एक-दूसरे के विरुद्ध खडे हो जाएंगे । ये तीनों विश्वयुद्ध होने के पीछे सप्तपातालों में से सबसे निचले पाताल में विद्यमान बडी अनिष्ट शक्तियां कारण हैं, जिन्होंने विविध देशों को एक-दूसरे के विरुद्ध युद्ध करने के लिए प्रवृत्त किया और अब वे तृतीय विश्वयुद्ध के लिए प्रवृत्त कर रही हैं । ‘इन युद्धों को कराने में सप्तपातालों में से कौनसी अनिष्ट शक्तियां कार्यरत थीं और हैं ?’, यह निम्न सूत्रों से ध्यान में आएगा ।

४ अ १. प्रथम विश्वयुद्ध : दूसरे पाताल की अनिष्ट शक्तियां

४ अ २. द्वितीय विश्वयुद्ध : द्वितीय विश्वयुद्ध करवाने में तीसरे पाताल की अनिष्ट शक्तियों का बडा हाथ था । इसके उदाहरण के रूप में हिटलर को देखा जा सकता है । हिटलर के संपूर्ण कार्यकाल में वह पांचवें पाताल की अनिष्ट शक्तियों के नियंत्रण में था; इसलिए वह अत्यंत नाट्यमय पद्धति से सत्ता प्राप्त कर सकता, साथ ही उसके संपूर्ण कार्यकाल पर अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव था ।

४ अ ३. तृतीय विश्वयुद्ध : तृतीय विश्वयुद्ध प्रत्यक्ष करवाने में चौथे पाताल की अनिष्ट शक्तियां कारण बनेंगी; परंतु सूक्ष्म के युद्ध में सांतवें पाताल की अनिष्ट शक्तियां सम्मिलित होंगी । वर्ष २०१७ से वर्ष २०२४ की समयावधि में होनेवाले सूक्ष्म के युद्ध में छठे और सांतवें पाताल की अनिष्ट शक्तियां सम्मिलित होंगी ।

     वर्ष २०१५ से सूक्ष्म से तृतीय विश्वयुद्ध का आरंभ होकर उसके उपरांत वह ९ वर्ष तक अर्थात वर्ष २०२४ तक चलेगा । इस समयावधि में होनेवाले युद्ध इसी विश्वयुद्ध से संबंधित होंगे; परंतु विश्व को उसका भान नहीं होगा । इस अवधि के अंत में प्रचुर मात्रा में हानि पहुंचानेवाले परमाणु अस्त्रों का उपयोग किया जाएगा और उसके कारण असीमित मानवहानि होकर विश्व की ५० प्रतिशत जनसंख्या नष्ट होगी । इस युद्ध के कारण विश्व के कुछ देशों की अन्य देशों की अपेक्षा अधिक हानि होगी; किंतु संपूर्ण विश्व एक-दूसरे के साथ जुडा होने से सभी देशों को हानि पहुंचेगी ।                                                                                                                                                                                        (क्रमशः)

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