दैनिक जीवन में धर्माचरण की विशेषताएं एवं अध्यात्मशास्त्र

कलियुग में मनुष्य देवधर्म से कोसों दूर चला गया है । इसलिए टोपी या फेटा जैसे बाह्य माध्यमों की आवश्यकता लगने लगी, जिससे उसमें अपने कर्म के प्रति भाव तथा गंभीरता व आगे इसी माध्यम से ईश्वरप्राप्ति की रुचि उत्पन्न हो । इसीसे फेटा या टोपी धारण करने की पद्धति निर्मित हुई ।

हिन्दू धर्मशास्त्र की रूढि-परंपराओं के पीछे के वैज्ञानिक कारण

माथे पर दोनों आंखों के मध्य जिस स्थान पर तिलक लगाया जाता है, वह स्थान प्राचीन काल से मानवी शरीर का महत्त्वपूर्ण नियंत्रण केंद्र समझा जाता है । तिलक लगाने से शक्ति का लय टाला जाता है । भ्रूमध्य पर लाल रंग का तिलक लगाने से शरीर में ऊर्जा टिकी रहती है और विविध स्तरों पर एकाग्रता नियंत्रित होती है ।

अपने बच्चोंको भविष्यके आदर्श नागरिक बनाएं !

आजके बच्चे कलके आदर्श भारतके शिल्पकार हैं ! पश्चिमके अन्धानुकरण एवं ‘टीवी’के अतिरेकसे भटक रही आजकी पीढीको सुसंस्कारी एवं आदर्श बनानेका मार्ग है ग्रन्थमाला ‘बालसंस्कार’ !

माघ स्नानारंभ

‘गंगाजी शिवतत्त्व का सगुण रूप है’, इस मनोभाव से नमस्कार करें तथा विष्णुस्मरण करें ।

दत्तगुरु की काल के अनुसार आवश्यक उपासना

अधिकांश हिन्दुओं को अपने देवता, आचार, संस्कार, त्योहार आदि के विषय में आदर और श्रद्धा होती है; परन्तु अनेक लोगों को अपनी उपासना का धर्मशास्त्र ज्ञात नहीं होता । यह शास्त्र समझकर धर्माचरण उचित ढंग से करने पर अधिक लाभ होता है ।

‘उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड’ के भूतपूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी ने अपनाया हिन्दू धर्म !

“सनातन, विश्व का प्रथम धर्म है एवं यहां जितनी अच्छी बातें हैं, उतनी अन्य किसी भी धर्म में नहीं है। ‘जुम्मा’ के दिन नमाज पठन के पश्चात, मुझे मारने के लिए पुरस्कारों की घोषणा की गई। सिर काटने का फतवा निकाला गया। ऐसी स्थिति में मुझे ‘मुसलमान’ होने पर लज्जा आती थी !”

सनातनकी ग्रंथमाला : आचारधर्म (हिन्दू आचारोंका अध्यात्मशास्त्रीय आधार)

अलंकार हिन्दू संस्कृति की अनमोल धरोहर है । हिन्दू संस्कृति पर पश्चिमी संस्कृति का रंग चढा । फैशन के नाम पर आजकल स्त्रियां चूडियां नहीं पहनतीं एवं कुमकुम के स्थान पर बिंदी लगाती हैं ।

नथ

आभूषण धारण करने से शरीर के संबंधित भाग के बिंदु दबने से बिंदुदाब के उपचार होते हैं । इससे पूर्व से चला आ रहा आभूषण धारण करने का उद्देश्य अज्ञानवश आध्यात्मिक स्तर पर बिंदुदाब पद्धति से निरंतर कार्य करता है, यह ध्यान में आता है ।

हिन्दू संस्कार एवं परंपरा संजोनेवाले सनातनके ग्रंथ

केवल सुन्दर दिखनेवाली रंगोलियोंकी अपेक्षा देवताओंके तत्त्व आकृष्ट एवं प्रक्षेपित करनेवाली रंगोलियां लाभदायक होती हैं । देवताओंकी उपासना हेतु तथा त्योहार, जन्मदिन आदि प्रसंगोंमें बनाई जानेवाली रंगोलियां इस लघुग्रन्थमें प्रस्तुत हैं ।

शिक्षाप्रणाली निश्चित करते समय मनुष्य के जीवन से संबंधित ध्येय का व्यापक दृष्टिकोण आवश्यक !

आधुनिक शिक्षा में केवल इसी बात का ध्यान रखा गया है कि मनुष्य की नैसर्गिक आवश्यकताएं क्या हैं, इन्हीं की पूर्ति का आधार बनाकर तदनुरूप शिक्षा का कार्यान्वयन हुआ है । शिक्षा में व्यापक दृष्टिकोण का होना अत्यंत आवश्यक है ।