दैनिक जीवन में धर्माचरण की विशेषताएं एवं अध्यात्मशास्त्र
कलियुग में मनुष्य देवधर्म से कोसों दूर चला गया है । इसलिए टोपी या फेटा जैसे बाह्य माध्यमों की आवश्यकता लगने लगी, जिससे उसमें अपने कर्म के प्रति भाव तथा गंभीरता व आगे इसी माध्यम से ईश्वरप्राप्ति की रुचि उत्पन्न हो । इसीसे फेटा या टोपी धारण करने की पद्धति निर्मित हुई ।