नथ

     आद्य शंकराचार्यजी के ‘त्रिपुरसुन्दरीस्तोत्र’में देवी से ऐसी प्रार्थना की है, ‘हे गिरिजा, मेरे द्वारा अर्पित यह नासिकाभूषण स्वीकार कीजिए’ । ऐसा कहा गया है कि नासिकाभूषण अर्थात ‘मोती’ । महाराष्ट्र में आज भी नथ मोतीजडित ही होती है ।

महत्त्व

साधना हेतु पूरक

१. ‘नथ धारण करने से जीवकी प्रकृति एवं प्रयत्नानुसार उसका अहंकार कुछ मात्रामें घटने में सहायता मिलती है ।

२. नथ धारण करने से जीवकी अन्तर्मुखता बढती है तथा वह अधिक स्व-परीक्षण करता है ।’

– एक साधिका (३.९.२००५)

चूडियां (कंगन)

     चूडी, कुमारिका (कुमारी कन्या) तथा सौभाग्यवती स्त्रियोंका महत्त्वपूर्ण अलंकार माना गया है । विवाह के समय वधू के हाथ में पहनी जानेवाली चूडियों को (कंगन को) महाराष्ट्रमें ‘लग्नचूडा’ कहा जाता है । विधवा स्त्रियों का चूडी पहनना निषिद्ध माना गया है । विविध धातु, कांच, शंख, लाख और हस्तिदंत से चूडियां बनाने की प्राचीन प्रथा है । पंजाब में हस्तिदंत तथा बंगाल में शंख से बनी चूडियों को विशेष महत्त्व है ।

कर्णाभूषण

कर्णकुंडल

  • कर्णकुंडल : ‘कुंडल’, कान में धारण किया जानेवाला एक गोलाकार आभूषण है । पत्राकार, शंखाकार, सर्पाकार ये आकारानुसार विविध प्रकार के होते हैं । विशिष्ट देवताओं का एवं उनके कर्णकुंडलों के विशेष आकारों का संबंध भी ग्रंथोें में दिए वर्णन से ज्ञात होता है, उदा. श्रीविष्णु के कानों में मकराकार कुंडल; शिव एवं श्री गणपति के सर्पाकार कुंडल तथा उमा एवं अन्य देवियों के पत्राकार एवं शंखाकार कुण्डल । संत तुकाराम महाराजजी ने पंढरपुर के श्री विठ्ठल भगवान का वर्णन करते हुए एक मराठी अभंग में ‘मकरकुण्डले तळपति श्रवणी ।’ इन शब्दों में उनके कान के मकराकार कुंडलों का उल्लेख किया है ।
  • कर्णकुंडल का महत्त्व : जीव द्वारा माया से मुक्त होकर ब्रह्मचिंतन में रहने के लिए कर्णकुंडल धारण करना : ‘जीव द्वारा ब्रह्मतत्त्व से संबंध स्थापित करने के लिए अध्यात्मशास्त्र अनुसार किया जानेवाला कृत्य अर्थात कर्णकुंडलों का उपयोग करना है । जीव जब जन्म लेता है, तब वह पूर्ण रूप से माया से बंधा रहता है । वह उस बंधन से मुक्त होकर निरंतर ब्रह्मचिंतन में रहे, इस हेतु कर्णभेद कर जीव को कर्णकुंडल पहनाए जाते हैं ।’’
    – एक साधिका (३.९.२००५)

मंगलसूत्र

     मंगलसूत्र में २ परतोंवाले धागे में काले मणि पिरोए होते हैं । मध्य में ४ छोटे मणि और २ छोटी कटोरियां होती हैं । २ धागों का अर्थ है पति-पत्नी का बंधन, २ कटोरियों का अर्थ पति-पत्नी और ४ काले मणियों का अर्थ होता है धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष ये ४ पुरुषार्थ !

मंगलसूत्र में विद्यमान काले मणि और कटोरियों का आध्यात्मिक अर्थ

     मंगलसूत्र की २ कटोरियों में एक कटोरी शिवजी का तथा दूसरी कटोरी शक्ति का प्रतीक होती है । शिव-शक्ति के बल पर ही वधु को ससुराल के लोगों की रक्षा और पालन करना होता है । इन २ कटोरियों को बांधनेवाला तार मायके की कुलदेवी की उपासना छोडकर ससुराल की कुलदेवी की उपासना करने के संबंध में हिन्दू धर्म द्वारा दी गई अनुमति के आदान-प्रदान का दर्शक है । मायके की कटोरी में हलदी तथा ससुराल की कटोरी में कुमकुम भरकर, कुलदेवता का स्मरण कर और मंगलसूत्र का पूजन कर ही उसे गले में धारण किया जाता है ।

अंगूठी

     ‘अंगूठी केवल हाथ की उंगलियों का सौंदर्य बढानेवाला एक अलंकार नहीं है; अपितु उसके पीछे संरक्षण की कल्पना भी है ।

     अभिमंत्रित (मंत्र से सिद्ध की गई) अंगूठी उंगलियों में धारण करने से पिशाचादि की बाधा नहीं होती ।

(संदर्भ – सनातन का ग्रंथ स्त्री-पुरुषों के अलंकार)

आभूषण से अज्ञानवश बिंदुदाब (एक्युप्रेशर) होना

     आभूषण धारण करने से शरीर के संबंधित भाग के बिंदु दबने से बिंदुदाब के उपचार होते हैं । इससे पूर्व से चला आ रहा आभूषण धारण करने का उद्देश्य अज्ञानवश आध्यात्मिक स्तर पर बिंदुदाब पद्धति से निरंतर कार्य करता है, यह ध्यान में आता है ।