बिहार के बेतिया में आज भी ब्रिटिश कानून के द्वारा हो रहा है मंदिरों का शोषण !

स्वतंत्रता के उपरांत भी इस साम्राज्य में ‘कोर्ट ऑफ वॉर्ड’ कानून लागू है । इस कानून के अनुसार बेतिया साम्राज्य की भूमि के व्यवस्थापन की प्रतिवर्ष नीलामी की जाती है ।

युवको, सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के चैतन्यदायक ग्रंथकार्य की ध्वजा फहराते रहने हेतु ग्रंथ-निर्मिति की सेवा में सम्मिलित हों !

ग्रंथसेवा के अंतर्गत संकलन, अनुवाद, संरचना, मुखपृष्ठ-निर्मिति, ग्रंथों की छपाई से संबंधित सेवाएं आदि विभिन्न सेवाओं में सम्मिलित होने हेतु इच्छुक युवक अपनी जानकारी सनातन के जिलासेवकों के माध्यम से भेजें ।

अतीत में हुई चूकों से व्यथित न हों, अपितु अच्छा भविष्य बनाने हेतु तत्पर हों !

अतीत में जो कुछ भी चूकें हुईं, सो हुईं; परंतु अब उन चूकों को सुधारना संभव हो, तो उन्हें तत्परता से सुधारें, पहले हुईं चूकें पुनः न हों; इस हेतु तत्परता से प्रयास भी करें, ‘स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया’ अच्छे से करें । इस प्रकार प्रयास आरंभ करने से मन सकारात्मक होकर हम आनंदित रहते हैं।’

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी ने सप्तर्षियों की आज्ञा से तमिलनाडु के ‘कुंभकोणम्’ क्षेत्र के निकट कावेरी नदी के तट पर बसे ७ शिवमंदिरों के किए दर्शन !

इन ७ शिवमंदिरों में परंपरागत उत्सवों में जाने से श्रद्धालुओं के मनोरथ पूर्ण होते हैं । कुछ श्रद्धालु सप्त शिवमंदिरों के दर्शन का संकल्प लेकर मनौती मांगते हैं । अनेक ग्रामवासी मन में भिन्न-भिन्न संकल्प कर शिवमंदिरों में जाते हैं ।

आज तक आपातकाल को आगे ले जाने का मुख्य कारण है महान संतों-महात्माओं की कृपा !

सामान्य व्यक्तियों के लिए इस भीषण आपातकाल का सामना करना असंभव होगा । उसके कारण ही अभी तक अनेक बार संतों-महात्माओं ने सामान्य जीवों का विचार कर अपनी साधना खर्च कर इस आपातकाल को आगे बढा दिया है । सामान्य लोग जब अपनी साधना बढाएंगे, तभी जाकर यह आपातकाल उनके लिए सहनीय हो पाएगा !

बचपन से ही सात्त्विक वृत्ति एवं दैवी गुणों से युक्त कतरास (झारखंड) की सनातन की ८४ वीं (समष्टि) संत पू. (श्रीमती) सुनीता प्रदीप खेमकाजी (आयु ६३ वर्ष) !

माघ शुक्ल एकादशी (२०.२.२०२४) को पू. (श्रीमती) सुनीता खेमकाजी का ६३ वां जन्मदिवस है । इस उपलक्ष्य में उनके बचपन से लेकर अब तक की साधनायात्रा यहां दी गई है ।

आपातकाल संबंधी संतों द्वारा किया भाष्य !

इस विश्वयुद्ध में देश की इतनी हानि होगी कि उसके उपरांत ‘राष्ट्र के पुनर्निर्माण हेतु पूरी एक पीढी को अपना जीवन देना पडेगा ।

साधको, किसी साधक को तीव्र आध्यात्मिक कष्ट है, यह पता चलने पर तत्परता से श्रद्धापूर्वक निम्न आध्यात्मिक उपचार करें !

हिन्दू धर्मजागृति सभा, शिविर आदि कार्यक्रमों में या अन्य समय पर अनिष्ट शक्तियां साधकों को तीव्र कष्ट पहुंचाती हैं । इसलिए साधकों के आध्यात्मिक कष्ट में बहुत वृद्धि होती है । ऐसे में वहां उपस्थित अन्य साधक तत्परता से निम्न आध्यात्मिक स्तर के उपचार करें ।