‘कुछ साधक उनके द्वारा अतीत में की गई चूकों के विषय में व्यथित होते हैं तथा पुनःपुनः उन्हीं चूकों का स्मरण कर दुखी हो जाते हैं । वे स्वयं से ‘मुझसे ऐसी चूकें हुई ही क्यों ?’, ‘मैंने चूकों से क्यों कुछ नहीं सीखा ?’ जैसे प्रश्न पूछकर स्वयं ही त्रस्त होते हैं ।
अनेक लोगों के संदर्भ में ऐसा दिखाई देता है कि जीवन के कुछ सामान्य सूत्र समझ लेने में ही उनके जीवन के अनेक वर्ष बीत जाते हैं । कुछ लोगों की आयु बढती है; परंतु उसकी तुलना में उनमें समझदारी अथवा विवेक बढता ही है, ऐसा नहीं है । कुछ लोगों के प्रारब्ध में ही उनके द्वारा उस प्रकार की चूकें होने का संयोग होता है, इसलिए जीवन के विभिन्न चरणों पर उनके द्वारा चूकें होती रहती हैं ।
सर्वप्रथम हमें यह स्वीकार करना आना चाहिए कि ‘प्रत्येक बार सभी बातें हमारी समझ में आएंगी ही, ऐसा नहीं है ।’ मैं जब सेवा के संदर्भ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के पास जाता था, उस समय अनेक बार वे चल रही सेवाओं के संदर्भ में उन्हें कुछ सूझने पर मुझसे कहते, ‘‘यह सामान्य सूत्र समझ में आने में भी हमें बहुत समय लगा न !’’
अतीत में जो कुछ भी चूकें हुईं, सो हुईं; परंतु अब उन चूकों को सुधारना संभव हो, तो उन्हें तत्परता से सुधारें, उदा. हमने किसी से अनुचित पद्धति से अथवा अपशब्द बोले हों, तो अनेक दिन उपरांत अथवा कुछ वर्षोें के उपरांत ही क्यों न हो; परंतु हम उनसे क्षमा मांग सकते हैं । इसके कारण पापक्षालन होने में सहायता मिलकर एक-दूसरे के बीच के संबंध भी अच्छे बन जाते हैं । पहले हुईं चूकें पुनः न हों; इस हेतु तत्परता से प्रयास भी करें, ‘स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया’ अच्छे से करें । इस प्रकार प्रयास आरंभ करने से मन सकारात्मक होकर हम आनंदित रहते हैं, साथ ही भविष्य को अच्छा बनाने की दृष्टि से भी हम सक्षम बन जाते हैं ।’
– (पू.) संदीप आळशी (१५.१.२०२४)