१. नाडीवाचन में सप्तर्षियों द्वारा सप्त शिवमंदिरों का महत्त्व विशद कर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को उनके दर्शन करने हेतु कहना
‘१५.२.२०२१ को १७१ वां नाडीवाचन हुआ । इस नाडीवाचन में सप्तर्षियों ने मुझे बताया, ‘शिवजी के सप्तस्थानों से संबंधित सप्त शिवमंदिरों में जाकर शिवजीके दर्शन कर उनसे प्रार्थना करें ।’ महर्षि ने कहा, ‘इन शिवमंदिरों का निर्माण भिन्न-भिन्न कार्याें की उद्देश्यपूर्ति हेतु किया गया है ।’ इनमें से अनेक शिवमंदिर उपेक्षित हैं । इन ७ शिवमंदिरों में परंपरागत उत्सवों में जाने से श्रद्धालुओं के मनोरथ पूर्ण होते हैं । कुछ श्रद्धालु सप्त शिवमंदिरों के दर्शन का संकल्प लेकर मनौती मांगते हैं । अनेक ग्रामवासी मन में भिन्न-भिन्न संकल्प कर शिवमंदिरों में जाते हैं । यहां के उत्सवों के समय इन सातों मंदिरों से शिवजी की पालकी भिन्न-भिन्न स्थानों पर जाती है । ग्रामवासी इस पालकी के दर्शन करते हैं । इस प्रकार इन पालकियों के कारण संपूर्ण कावेरी क्षेत्र पवित्र हो जाता है । भारत के कई स्थानों पर भगवान की पालकी के माध्यम से पूरे गांव का शुद्धीकरण करनेवाले पारंपरिक ऊर्जास्रोत छिपे हुए हैं ।
२. शिव-पार्वती द्वारा उनके परमभक्त नंदी को कावेरी नदी के तट पर स्थित शिवजी के सप्त स्थानों के दर्शन कराना
सप्तर्षियों ने मुझे इन ७ शिवमंदिरों के दर्शन करने हेतु कहा था । इसकी पृष्ठभूमि कुछ ऐसी है, ‘सप्तनदियों में से एक कावेरी नदी के तट पर तमिलनाडु में अनेक मंदिर हैं । उनमें से ‘तिरुवैय्यारू’ का ‘अय्यारप्पर’ मंदिर विशेष प्रसिद्ध है । कहा जाता है, ‘इस मंदिर में चैत्र मास में विशाखा नक्षत्र की तिथि को शिलाद ऋषि के पुत्र ‘शिववाहन नंदी’ का विवाह व्याघ्रपाद ॠषि की पुत्री ‘स्वयंप्रकाशी’ के साथ हुआ था ।’ इस विवाह में स्वयं शिव-पार्वती उपस्थित थे । विवाह की सप्तपदी के समय शिव-पार्वती ने अपने परमभक्त नंदी को शिवजी के सप्त स्थानों के दर्शन कराए थे । (सौजन्य : www.shaivam.org)’
सप्तर्षियों के बताए अनुसार १८.२.२०२१ को सवेरे हम तमिलनाडु के ‘कुंभकोणम्’ क्षेत्र के निकट स्थित कावेरी नदी के तट पर बसे ७ शिवमंदिरों के दर्शन करने निकले ।
३. तंजावुर जिले के सप्त शिवमंदिरों का महत्त्व
३ अ. ओदवनेश्वर मंदिर, तिरुचोट्रादुरै
३ अ १. अकाल के समय शिवजी द्वारा एक शिवभक्त को स्वयं का अक्षयपात्र देना, ‘यहां चावल के खेतों में साक्षात् देवी-देवता अन्नग्रहण करने हेतु आते हैं’, इसकी भक्तों को अनुभूति होना तथा ‘अन्न का अभाव न हो’; इस हेतु भक्तों द्वारा शिवजी से प्रार्थना करना : एक बार तिरुचोट्रादुरै गांव में सूखा पड जाने से वहां के शिवभक्त ‘अरुळालन्’ ने शिवजी से प्रार्थना की । उस समय शिवजी ने वरदान दिया कि ‘यहां कभी भी अन्न का अभाव नहीं होगा ।’ शिवजी ने वहां का सूखा दूर कर फसल के कटने तक ‘ग्रामवासियों को अन्न मिले’, इस हेतु अपना अक्षयपात्र ‘अरुळालन्’ को प्रदान किया । यह शिवजी का अन्नक्षेत्र है । यहां पार्वतीदेवी ‘अन्नपूर्णा’ रूप में हैं । ‘यहां के चावल के खेतों में साक्षात देवी-देवता अन्नग्रहण करने आते हैं । अन्य स्थानों की तुलना में यहां चावल शीघ्र पकता है । ‘यह चावल साक्षात देवता ग्रहण करते हैं’, इसकी अनुभूति भक्तों ने ली है । ‘जीवन में कभी भी अनाज का अभाव न हो’, इस हेतु भक्त यहां शिवजी से प्रार्थना करते हैं ।
३ आ. आपत्साहाय्येश्वर मंदिर, तिरुपळनम्
३ आ १. मृत्यु जैसा बडा संकट दूर होने हेतु भक्तों द्वारा यहां उपासना करना : एक शिवभक्त सुश्रीत पर मृत्यु का संकट मंडरा रहा था । ‘५ दिन में तुम्हारी मृत्यु होगी’, यह अशरीरी वाणी उसे सुनाई दी थी । उस समय उसने तथा उसके परिवार के सदस्यों ने शिवजी की पूजा की । शिवजी ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर सुश्रीत को मृत्यु से अभय दिया । तब से यह क्षेत्र आपातकाल में भक्तों के लिए दौडे चले आनेवाले शिवजी के नाम से अर्थात ‘आपत्सहाय्येश्वर’ के नाम से जाना जाता है । मृत्यु जैसा बडा संकट दूर होने हेतु भक्त यहां आकर शिवजी की उपासना करते हैं ।
३ इ. नैय्याडियप्पर मंदिर, तिल्लैस्थानम्
३ इ १. कामधेनु द्वारा एक विशिष्ट स्थान पर दूध देने पर उसका घी में रूपांतरण होना, उस स्थान पर खुदाई करने पर एक शिवलिंग मिलना तथा उस स्थान को ‘नैय्याडियप्पर’ अर्थात ‘घी का अभिषेक करवा लेनेवाले शिवजी’, ऐसा नाम पडना : बहुत पहले यहां कामधेनु एक सामान्य गाय के रूप में आकर प्रतिदिन इस भूमि पर दूध देती थी । भूमि पर गिरते ही उस दूध का घी में रूपांतरण होता था । इससे आश्चर्यचकित ग्रामवासियों ने इस संदर्भ में राजा को सूचित किया । राजा ने जब इस स्थान पर खुदाई की, उस समय भूमि के नीचे एक शिवलिंग मिला । तमिल भाषा में ‘नैय्य’ का अर्थ है घी ! दूध का भूमि के नीचे स्थित शिवलिंग पर गिरते ही उसका घी में रूपांतरण होने से इस स्थान का नाम ‘नैय्याडियप्पर’ अर्थात ‘घी का अभिषेक करवा लेनेवाले शिवजी’, ऐसा पडा । आज भी इस मंदिर में शिवलिंग पर घी का अभिषेक किया जाता है । यह देवालय बंद होने से हमें इसके प्रत्यक्ष दर्शन नहीं हुए; इसलिए हमने वहां जाकर बाहर से ही भगवान से प्रार्थना की ।
३ ई. अय्यारप्पर मंदिर, तिरुवैय्यारू
३ ई १. कावेरी नदी में पांच नदियां मिलने के कारण शिवजी को ‘पंचनदीश्वर’ कहा जाना तथा ‘विवाह होने में उत्पन्न बाधाएं दूर हों’, इस हेतु इस स्थान पर शिवजी से प्रार्थना की जाना : तिरुवैय्यारू गांव में कावेरी नदी में ५ नदियों के स्रोत आकर मिलते हैं । इन ५ नदियों के स्रोत पर नियंत्रण रखनेवाले शिवजी को यहां ‘पंचनदीश्वर’ कहा जाता है । तमिल भाषा में पंचनदीश्वर को ‘अय्यारप्पर’ कहा जाता है । कहा जाता है कि ‘इसी स्थान पर शिव-पार्वती की उपस्थिति में शिववाहन नंदी का विवाह संपन्न हुआ ।’ नंदी की विवाह की तिथि पर अर्थात चैत्र मास के विशाखा नक्षत्र में प्रतिवर्ष मंदिर में ‘सप्तस्थान उत्सव’ मनाया जाता है । उत्सव के समय सप्त शिवमंदिरों में स्थित उत्सव मूर्तियां पालकी से इस मंदिर में एकत्रित होती हैं । उसके उपरांत वे कावेरी नदी के तट पर जाती हैं तथा वहां बडे उत्साह के साथ उत्सव मनाया जाता है । ‘विवाह होने में उत्पन्न बाधाएं दूर हों’, इस हेतु भक्त यहां आकर शिवजी से प्रार्थना करते हैं ।
३ उ. ब्रह्मशिरकंडीश्वर मंदिर, कंडीयूर
३ उ १. ब्रह्माजी को हुए अहंकार के कारण शिवजी द्वारा उनका एक सिर शरीर से अलग कर देना, उसके उपरांत ब्रह्माजी द्वारा की गई स्तुति से प्रसन्न होकर शिवजी द्वारा उनके पांचवें सिर का तेज शेष ४ सिरों में संक्रमित करना तथा ब्रह्महत्या जैसे दोष के निवारण हेतु यहां शिवभक्ति की जाना : ब्रह्माजी को हुए अहंकार के कारण शिवजी ने ब्रह्माजी को दंडित करने के लिए उनका एक सिर शरीर से अलग किया । कहा जाता है कि ‘इस स्थान पर ५ सिरों में से ४ सिर शेष रहे ब्रह्माजी ने शिवस्तुति कर शिवजी से क्षमायाचना की ।’ ब्रह्माजी की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने ब्रह्माजी के शरीर से अलग किए सिर में समाहित तेज को शेष ४ सिरों में संक्रमित किया; इसलिए इस स्थान पर शिवजी को ‘ब्रह्मशिरकंडीश्वर’ कहा गया है । ब्रह्महत्या जैसे दोष के निवारण हेतु श्रद्धालु यहां आकर शिवजी की भक्ति करते हैं ।
३ ऊ. पुष्पवननाथ मंदिर, तिरुपुंदुरूत्ती
३ ऊ १. गौतम ऋषि द्वारा इंद्रदेव को कुरूप होने का श्राप देना, इस स्थान पर आने पर इंद्र की श्राप से मुक्ति होना तथा इसलिए शारीरिक न्यूनता को दूर करने हेतु यहां शिवजी की उपासना की जाना : वासनाओं में लिप्त होकर अपना कर्तव्य भुलानेवाले इंद्रदेव को गौतम ऋषि ने श्राप दिया, ‘इंद्रदेव के शरीर पर एक सहस्र मस्से आएंगे तथा इस कारण वे कुरूप दिखेंगे !’ श्राप से मुक्ति पाने हेतु इंद्रदेव पृथ्वी के अनेक शिवस्थानों पर गए । यहां आने पर इंद्रदेव ने यहीं के पुष्पों से शिवलिंग की पूजा की । उस समय उनकी गौतम ऋषि के श्राप से मुक्ति हुई । तब से यहां के शिवजी का नाम पडा ‘पुष्पवननाथ ।’ शरीर में स्थिति न्यूनताएं दूर होने हेतु शिवभक्त यहां आकर शिवभक्ति करते हैं ।
३ ए. वेदपुरीश्वर मंदिर, तिरुवेदीकुडी
३ ए १. हिरण्याक्ष असुर द्वारा ब्रह्मलोक से वेदों को हरण कर उन्हें पाताल ले जाना, उससे उत्पन्न दोष के निवारण हेतु वेदों द्वारा शिवजी की उपासना करना तथा इस उपासना से प्रसन्न होकर शिवजी द्वारा वेद पुनः पवित्र करना : सत्ययुग में हिरण्याक्ष असुर ब्रह्मलोक से वेदों का हरण कर उन्हें पाताल ले गया । भगवान श्रीविष्णु ने वेदों की रक्षा की; किंतु असुरों के हाथ लगने से उत्पन्न दोषनिवारण हेतु वेदों ने यहां शिवजी की भक्ति की । दोषनिवारण हेतु की गई उपासना से प्रसन्न होकर शिवजी ने वेदों को पवित्र किया; इस हेतु यहां के शिवजी का नाम पडा ‘वेदपुरीश्वर ।’ कहा जाता है कि ‘यहां ब्रह्माजी ने भी शिवजी की उपासना की थी ।’
३ ए २. मंदिर में वेद सुनने हेतु एक ओर झुकी हुई गर्दन की स्थिति में ‘वेदविनायक’ नामक श्री गणेशमूर्ति होना : कहा जाता है कि इस स्थान पर ‘गणेशजी ने चार वेदों का गायन सुनने हेतु अपनी गर्दन को दाहिनी ओर झुकाकर वेदमंत्रों का आनंद लिया था ।’ इसके प्रतीक के रूप में मंदिर में वेद सुनने हेतु एक ओर झुकी हुई गर्दन इस स्थिति में ‘वेदविनायक’ नामक श्री गणेशजी की मूर्ति है । शिवजी ने नंदी के विवाह हेतु वेदमंत्रों में पारंगत ब्राह्मण का चयन यहीं से किया था; इसलिए ‘मंगलकार्य में किसी प्रकार का विघ्न न आए’, इस हेतु भक्त यहां आकर शिवजी से प्रार्थना करते हैं ।
३ ए ३. सप्त शिवस्थानों के दर्शन पूर्ण होने के उपरांत वेदुरीश्वर मंदिर में पुजारी द्वारा प्रसाद देना, उस समय ‘शिवजी ने सप्त शिवस्थानों के दर्शन स्वीकार किए’, ऐसा प्रतीत होना : सातों शिवमंदिरों के दर्शन करने का हमारा संकल्प इस स्थान पर पूर्ण हुआ तथा यहीं मंदिर के पुजारी ने हमारे हाथ में माला, नींबू एवं कुमकुम का प्रसाद रखा । हमारे सातों मंदिरों के दर्शन पूर्ण होने तक किसी भी मंदिर के पुजारी ने हमें प्रसाद नहीं दिया था । सातवें मंदिर के दर्शन करने के उपरांत ही हमें प्रसाद मिला । उस समय ‘सातों देवताओं ने हमारे दर्शन स्वीकार किए’, मानो इसका प्रतिफल ही हमें मिला । इससे हमें प्रतीत हुआ कि ‘महर्षियों का हमारी ओर संपूर्ण ध्यान है ।’
– श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ, कुंभकोणम्, तमिलनाडु (१९.२.२०२१, दोपहर २.२६)