‘पृथ्वी पर रज-तम का स्तर अधिकतम (सर्वाेच्च) होने पर आपातकाल आता है । यह आपातकाल प्राकृतिक आपदाओं, युद्धों जैसे विभिन्न माध्यमों से दिखाई देता है । इस आपातकाल के कारण बडे स्तर पर प्राणहानि होती है । कुछ संतों ने भी कहा है कि आगामी काल में आनेवाले आपातकालकी भीषणता इतनी होगी कि उस समय हमें अपनी आंखें मूंद लेनी पडेंगी । सामान्य व्यक्तियों के लिए इस भीषण आपातकाल का सामना करना असंभव होगा । उसके कारण ही अभी तक अनेक बार संतों-महात्माओं ने सामान्य जीवों का विचार कर अपनी साधना खर्च कर इस आपातकाल को आगे बढा दिया है । सामान्य लोग जब अपनी साधना बढाएंगे, तभी जाकर यह आपातकाल उनके लिए सहनीय हो पाएगा !’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी
अध्यात्म से संबंधित ग्रंथों का केवल पाठ करना नहीं; अपितु पढे हुए पाठ का क्रियान्वयन महत्त्वपूर्ण !
‘अनेक लोग अध्यात्म के ग्रंथों का वाचन करते हैं । कुछ लोग बडप्पन दिखाने हेतु ‘मैंने यह ग्रंथ… इतनी बार पढा’, ऐसा भी बोलते हैं; परंतु वास्तव में देखा जाए, तो अध्यात्म का क्रियान्वयन महत्त्वपूर्ण होता है, उदा. तैरना कैसे चाहिए ?, इसकी चाहे कितनी भी जानकारी क्यों न पढ ली जाए; परंतु प्रत्यक्ष पानी में उतरे बिना तैरना सिखा नहीं जा सकता । उसी प्रकार अध्यात्म का क्रियान्वयन होने से ही वास्तव में वह आत्मसात होता है । अतः उसका केवल पाठ न करें ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी
सनातन के आश्रम में रहकर साधना करने के लाभ !
‘सनातन के आश्रम में रहकर साधना करने से साधक की सर्वांगीण आध्यात्मिक उन्नति होती है । उसे विभिन्न प्रकार के लाभ मिलते हैं, उदा. दिन में स्वच्छता की सेवा करने से लेकर सत्संग लेने तक की सभी सेवाएं करना संभव होता है । प्रार्थना, कृतज्ञता, नामजप जैसी कृतियों के माध्यम से भक्तियोग, सत्संग से सीखने के माध्यम से ज्ञानयोग, अपेक्षारहित सेवा करने के माध्यम से कर्मयोग तथा नामजप आदि उपचारों के माध्यम से ध्यानयोग जैसी विभिन्न पद्धतियों से साधना होती है । साधक एक-दूसरे को अपनी चूकें बताते हैं तथा पूछते हैं । उसके कारण निरंतर अंतर्मुख बने रहना संभव होता है । यहां सभी साधक ‘मैं यहां साधना करने हेतु आया हूं’, इस एक ही विचार से प्रेरित होकर कार्य करते हैं; उसके कारण आश्रम का कुल वातावरण साधना हेतु पोषक बन जाता है ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले (२८.१.२०२४)
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलजी को उनकी आध्यात्मिक विचारधारा के कारण मानसिक एवं बौद्धिक स्तर के विषय रखना कठिन होना; परंतु उस स्तर की पुस्तकें पढने के कारण उन्हें वैसा करना संभव होने लगना
‘साधना का आरंभ करने पर ‘कोई घटना घटित होने के पीछे अधिकांशतः आध्यात्मिक कारण अधिक होते हैं’, यह ज्ञात होने के उपरांत मैं प्रत्येक बार आध्यात्मिक स्तर के कारणों की खोज करता रहता हूं, उदा. ‘विगत ४ – ५ शतकों में भारत पर विदेशियों ने आक्रमण क्यों किए ?, इसके मानसिक एवं बौद्धिक कारण बताए जाते हैं । मेरी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि हिन्दुओं के साधना करना छोड देने के कारण उनमें सत्त्वगुण न्यून (कम) हुआ । इसलिए अधिक रज-तम से युक्त विदेशी हिन्दुओं पर बडी सहजता से आक्रमण कर पाए ।’ मेरी ऐसी आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के कारण मुझे किसी भी विषय के संदर्भ में मानसिक अथवा बौद्धिक स्तर का लेखन करना कठिन हो रहा है । इसलिए अब मानसिक एवं बौद्धिक स्तर के ज्ञान से युक्त अनेक ग्रंथ पढने पर मुझे वह थोडा-बहुत समझ में आ रहा है ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी