हनुमानजी की पूजा से पूर्व मारुतितत्त्व से संबंधित सात्त्विक रंगोलियां बनाना

हनुमानजी की पूजा से पूर्व, तथा हनुमान जयंती के दिन घर अथवा देवायल में हनुमान तत्त्व आकर्षित एवं प्रक्षेपित करनेवाली सात्त्विक रंगोलियां बनाएं । ऐसी कुछ रंगोलियां आगे दी हैं ।

शनि की साढे साती एवं हनुमानजी की पूजा

पूजा में विशिष्ट देवता को जो विशिष्ट सामग्री अर्पित की जाती है, ‘वह सामग्री उस देवता को प्रिय है’, उदा. गणपति को लाल फूल, शंकरजी को बिल्वपत्र एवं विष्णुजी को तुलसी ।

श्रीराम नवमी

देवताओं एवं अवतारों की जन्मतिथि पर उनका तत्त्व भूतल पर अधिक मात्रा में सक्रिय रहता है । श्रीराम नवमी के दिन रामतत्त्व सदा की तुलना में १ सहस्र गुना सक्रिय रहता है । इसका लाभ लेने हेतु श्रीराम नवमी के दिन ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ नामजप अधिकाधिक करें ।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही हिन्दुओं का नववर्षारंभ है !

३१ दिसंबर को रात १२ बजे आरंभ होनेवाले नववर्ष की तुलना, सूर्यास्त के पश्चात आरंभ होनेवाली तमोगुणी रात्रि से कर सकते हैं । प्राकृतिक नियमों के अनुसार आचरण मनुष्य के लिए पूरक है, जबकि विरुद्ध आचरण हानिकारक । अतः, पश्चिमी संस्कृति अनुसार १ जनवरी को नहीं; चैत्र शु. प्रतिपदा पर ही नववर्षारंभ मनाने में हमारा वास्तविक हित है ।’

महाशिवरात्रि निमित्त हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा ‘ऑनलाइन’ प्रवचन

शिवरात्रि पर शास्त्रोक्त शिवजी की उपासना कैसे करें, शिवजी की आध्यात्मिक विशेषताएं क्या हैं ? तथा शिवरात्रि के दिन शिवजी का नामजप करने का महत्त्व क्या है, इस विषय में जानकारी दी ।

होली ७ मार्च (फाल्गुन पूर्णिमा)

होलिकोत्सव दुष्प्रवृत्ति व अमंगल विचारों को समाप्त कर, सन्मार्ग दर्शानेवाला उत्सव है । इस उत्सव का महान उद्देश्य है, अग्नि में वृक्षरूपी समिधा अर्पित कर वातावरण को शुद्ध करना ।

धर्मशिक्षा एवं आचरण के कारण हिन्दू धर्म एवं संस्कृति की रक्षा हो ! – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति

दीपावली के एक-एक दिन का महत्त्व हमने आनेवाली युवा पीढी को नहीं बताया, तो हिन्दू धर्म की रक्षा कैसे होगी ? अतः हमें त्योहारों एवं सोलह संस्कारों की वैज्ञानिकता एवं महत्त्व आनेवाली युवा पीढीतक पहुंचाना होगा । धर्मशिक्षा एवं आचरण के कारण हिन्दू धर्म एवं संस्कृति की रक्षा होगी ।

मकर संक्रांति मनाने की पद्धति एवं पर्वकाल में दान का महत्त्व

इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक वातावरण अधिक चैतन्यमय होता है । साधना करनेवाले को इस चैतन्य का लाभ होता है ।

श्री दत्त जयंती

एक सांप्रदायिक जन्मोत्सव । मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मृग नक्षत्र पर सायंकाल दत्त का जन्म हुआ, इसलिए इस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्मोत्सव सर्व दत्तक्षेत्रों में मनाया जाता है ।

#Diwali : लक्ष्मीपूजन के अवसर पर रात को रात को झाडू क्यों लगाएं ?

अलक्ष्मी अर्थात दरिद्रता, दैन्य और आपदा । नि:सारण करने का अर्थ है बाहर निकालना ।