१. तिथि : युगादि तिथि, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
२. महत्त्व : चैत्र शु. प्रतिपदा पर वर्षारंभ करने के प्राकृतिक, ऐतिहासिक, आध्यात्मिक कारण हैं ।
२ अ. प्राकृतिक : ज्योतिष-शास्त्र अनुसार संवत्सरारंभ के आस-पास ही सूर्य वसंतविषुव (Vernal Equinox) पर आता है एवं वसंत ऋतु आरंभ होती है अर्थात सूर्य भ्रूमध्यरेखा को पार करता है तथा दिन-रात का मान समान होता है । विषुवबिंदु अर्थात वह बिंदु जहां पर क्रांतिवृत्त (Sun’s Revolution) एवं विषुवत वृत्त (Equator) के दो वर्तुलों का परस्पर छेदन होता है । भगवान ने श्रीमद्भगवद्गीता में (अध्याय १०, श्लोक ३५) कहा है कि सर्व ऋतुओं में ‘बहार लानेवाली वसंत ऋतु मेरी विभूति है ।’ इस समय उत्साहवर्धक एवं आह्लाददायक, समशीतोष्ण वायु होती है । शिशिर ऋतु में वृक्षों के पत्ते झड चुके होते हैं, जबकि संवत्सर के आस-पास वृक्षों में कोपल उग आते हैं, पेड-पौधे हरे-भरे दिखाई देते हैं ।
२ आ. ऐतिहासिक : इस दिन
१. इस दिन रामने वाली का वध किया ।
अ. शकों ने प्राचीन काल में शकद्वीप पर रहनेवाली एक जाति हुणों को पराजित कर विजय प्राप्त की ।
आ. इसी दिन से ‘शालिवाहन शक’ प्रारंभ हुआ; क्योंकि इस दिन शालिवाहन ने शत्रु पर विजय पाई ।
२ इ. आध्यात्मिक
२ इ १. सृष्टि की निर्मिति : ब्रह्मदेव ने इस दिन सृष्टि की निर्मिति की अर्थात यहीं से सत्ययुग का आरंभ हुआ । इसी कारण इस दिन वर्षारंभ किया जाता है ।
२ इ २. १ जनवरी नहीं, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही पृथ्वी का खरा वर्षारंभ दिन : चैत्र शु. प्रतिपदा के दिन आरंभ होनेवाले नववर्ष का कालचक्र, विश्व के उत्पत्ति काल से संबंधित है । अतः इस दिन सृष्टि में नवचेतना का संचार होता है । इसके विपरीत, ३१ दिसंबर को रात १२ बजे आरंभ होनेवाले नववर्ष का कालचक्र, विश्व के लयकाल संबंधी है । चैत्र शु. प्रतिपदा के दिन आरंभ होनेवाले नववर्ष की तुलना, सूर्योदय के समय आरंभ होनेवाले तेजोमय दिन से कर सकते हैं ।
३१ दिसंबर को रात १२ बजे आरंभ होनेवाले नववर्ष की तुलना, सूर्यास्त के पश्चात आरंभ होनेवाली तमोगुणी रात्रि से कर सकते हैं । प्राकृतिक नियमों के अनुसार आचरण मनुष्य के लिए पूरक है, जबकि विरुद्ध आचरण हानिकारक । अतः, पश्चिमी संस्कृति अनुसार १ जनवरी को नहीं; चैत्र शु. प्रतिपदा पर ही नववर्षारंभ मनाने में हमारा वास्तविक हित है ।’ (सनातन के साधक को प्राप्त ज्ञान)
संवत्सर पूजास्नानोपरांत आम्रपल्लवों का बंदनवार बनाकर, लाल पुष्पों के साथ प्रत्येक द्वार पर बांधते हैं; क्योंकि लाल रंग शुभदर्शक है । प्रथम नित्यकर्म देवपूजा करते हैं । ‘वर्ष प्रतिपदा के दिन महाशांति करते हैं । शांति के प्रारंभ में ब्रह्मदेव की पूजा करते हैं; क्योंकि इस दिन ब्रह्मदेव ने विश्व की निर्मिति की थी । पूजा में उन्हें दौना (कटावदार तेज सुगंधवाला पत्ता) चढाते हैं । तदुपरांत होमहवन एवं ब्राह्मणसंतर्पण करते हैं । फिर अनंत रूपों में अवतरित होनेवाले विष्णु की पूजा करते हैं । ‘नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णवे नमः’, इस मंत्र का उच्चारण कर उन्हें नमस्कार करते हैं एवं तत्पश्चात ब्राह्मणों को दक्षिणा देते हैं । संभव हो तो इतिहास, पुराण इत्यादि ग्रंथ ब्राह्मण को दान देते हैं । ‘यह शांति करने से सर्व पापों का नाश होता है, दुर्घटना नहीं होती, आयु बढती है एवं धन-धान्य की समृद्धि होती है, ऐसे कहा गया है ।’ |