#Diwali : नरक चतुर्दशी के दिन सवेरे अभ्यंगस्नान क्यों करते है ?
शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण चतुर्दशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी नरक चतुर्दशी के नाम से जानते हैं । इस तिथि के नाम का इतिहास इस प्रकार है …
शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण चतुर्दशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी नरक चतुर्दशी के नाम से जानते हैं । इस तिथि के नाम का इतिहास इस प्रकार है …
दीपावली में प्रतिदिन सायंकाल में देवता और तुलसी के समक्ष, साथ ही द्वारपर एवं आंगन में विविध स्थानों पर तेल के दीप जलाए जाते हैं ।
अलक्ष्मी अर्थात दरिद्रता, दैन्य और आपदा । नि:सारण करने का अर्थ है बाहर निकालना ।
अमावास्याका अंधेरा कान फाडनेवाले पटाखोंके कारण दूर नहीं होता; अपितु आंखोंके समक्ष जुगनूके समान चमककर सर्वत्र गहराता हुआ अंधकार होनेका ही भ्रम होता है ।
तुलसी विवाह के दिनसे शुभ दिवसका, अर्थात मुहूर्तके दिनोंका आरंभ होता है । ऐसा माना जाता है कि, ‘यह विवाह भारतीय संस्कृतिका आदर्श दर्शानेवाला विवाह है ।’ घरके आंगनमें गोबर-मिश्रित पानी छींटिए ।
आश्विन कृष्ण चतुर्दशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी नरक चतुर्दशीके नामसे जानते हैं । दीपावलीके दिनोंमें अभ्यंगस्नान करनेसे व्यक्तिको अन्य दिनोंकी तुलनामें ६ प्रतिशत सात्त्विकताका अधिक लाभ मिलता है ।
‘धनत्रयोदशी’ दिनके विशेष महत्त्वका कारण यह दिन देवताओंके वैद्य धन्वंतरिकी जयंतीका दिन है । धनत्रयोदशी मृत्युके देवता यमदेवसे संबंधित व्रत है । यह व्रत दिनभर रखते हैं । व्रत रखना संभव न हो, तो सायंकालके समय यमदेवके लिए दीपदान अवश्य करते हैं ।
असामायिक अर्थात अकालमृत्यु न आए, इसलिए यमदेवताका पूजन करनेके तीन दिनोंमेंसे कार्तिक शुक्ल द्वितीया एक है । यह दीपोत्सव पर्वका समापन दिन है ।
बलिप्रतिपदाके दिन प्रातः अभ्यंगस्नानके उपरांत सुहागिनें अपने पतिका औक्षण करती हैं । दोपहरको भोजनमें विविध पकवान बनाए जाते हैं । इस दिन लोग नए वस्त्र धारण करते हैं एवं संपूर्ण दिन आनंदमें बिताते हैं ।
नरक चतुर्दशी पर अभ्यंगस्नान एवं यमतर्पण करनेके उपरांत देवताओं का पूजन करते हैं । सूर्यदेव एवं कुलदेवता को नमस्कार करते हैं । इसके उपरांत दोपहर ब्राह्मणभोजन कराते हैं ।