भेदभाव और भ्रष्टाचार, मतपेटी की राजनीति के अनिष्ट प्रभाव हैं ! – प्रधानमंत्री

देश की स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के समय भारत की दृष्टि आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त करना तथा सामाजिक न्याय और समरसता को प्रतिष्ठित करना है । इन्हीं संकल्पों के आधार पर, एक बीज के रूप में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ था ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

भ्रष्टाचार, बलात्कार, राष्ट्रद्रोह, धर्मद्रोह बढने का मूल कारण है, समाज को सात्त्विक बनानेवाली साधना न सिखाना । जिन्हें यह भी नहीं समझ में आता, ऐसे सर्व दल राज्य करने के योग्य हैं क्या ? केवल हिन्दू (ईश्वरीय) राष्ट्र में ही रामराज्य की अनुभूति होगी ।

गुजरात में गत ४ वर्षों में ६,००० करोड रुपये का कोयला घोटाला !

जनता को लगता है, कि केंद्र सरकार इस घोटाले की निष्पक्ष जांच करे, सच्चाई लोगों के सामने लाए एवं इसमें संलिप्त लोगों के विरुद्ध कडी कार्रवाई करे !

लोकतंत्र के एक महत्त्वपूर्ण स्‍तंभ न्‍यायव्‍यवस्‍था की परिवारवाद !

हमें आपने देश के लोकतंत्र में परिवारवाद केवल राजकीय क्षेत्र तक ही मर्यादित नहीं रह गई, अपितु उच्‍च न्‍यायालय एवं सर्वोच्‍च न्‍यायालय में भी एक प्रकार की परिवारवाद चालू है । उच्‍च एवं सर्वोच्‍च न्‍यायालय में कार्यरत न्‍यायाधीशों को ही नए न्‍यायाधीशों को चुनने का दिया अधिकार, जिसे कॉलेजियम पद्धति’ भी कहा जाता है, वह इस परिवारवाद की अपेक्षा अलग कुछ नहीं ।

सदोष लोकतंत्र एवं उस संदर्भ में कुछ भी न करनेवाले निद्रित मतदार !

वर्तमान में किसी कार्यालय में यदि चपरासी की नौकरी चाहिए तो संबंधित प्रत्‍याशी (candidate, उम्‍मीदवार) की शैक्षणिक पात्रता देखी जाती है; परंतु राज्‍य का, इसके साथ ही देश का संपूर्ण कार्यभार, अर्थव्‍यवहार एवं संरक्षणव्‍यवस्‍था देखनेवाले विधायक, सांसद, मंत्री, इतना ही नहीं; परंतु प्रधानपद समान सर्वोच्‍च पद पर जाने के लिए भी किसी भी शैक्षणिक पात्रता की आवश्‍यकता नहीं होती ।

सदोष लोकतंत्र एवं उस संदर्भ में कुछ भी न करनेवाले निद्रित मतदार !

प्रत्‍येक राजकीय पक्ष चुनाव के काल में ‘हमें चुनाव में विजयी बनाएं, हम ही राज्‍य को भ्रष्‍टाचारमुक्‍त सरकार देंगे’, ऐसा प्रचार करता है; परंतु प्रत्‍यक्ष में वे मतदारों को मद्य (दारू), पैसे आदि प्रलोभन दिखाकर अपने पक्ष में मतदान दिलवाते हैं ।

सदोष लोकतंत्र एवं उस संदर्भ में कुछ भी न करनेवाले निद्रित मतदार !

‘वर्तमान में भारत की स्‍वतंत्रता का अमृत महोत्‍सव वर्ष चल रहा है । हमें भारतीय स्‍वतंत्रता का अभिमान तो है; परंतु आज भी अनेक वृद्ध ‘इस लोकतंत्र की अपेक्षा अंग्रेजों की सत्ता ही ठीक थी’, ऐसा मत व्‍यक्‍त करते हुए दिखाई देते हैं !

सदोष लोकतंत्र एवं उस संदर्भ में कुछ भी न करनेवाले निद्रित मतदार !

राज्‍यव्‍यवस्‍था देश का मेरूदंड होता है, तो धर्म राष्‍ट्र के प्राण ! धर्माधिष्‍ठित राज्‍यव्‍यवस्‍था के कारण राष्‍ट्र की खरे अर्थ में प्रगति होती है । इसके साथ ही राष्‍ट्र के नागरिकों की ऐहिक एवं पारमार्थिक उन्‍नति साधी जाती है ।

सदोष लोकतंत्र एवं उस संदर्भ में कुछ भी न करनेवाले निद्रित मतदार !

फरवरी एवं मार्च में पंजाब, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर एवं गोवा, इन ५ राज्‍यों में चुनाव होनेवाले हैं । इन चुनावों की पार्श्‍वभूमिपर विविध राजकीय पक्षों द्वारा सदैव की भांति जनता को प्रलोभन देना, सहुलियतों की घोषणा करना, हमने ही विकासकार्य किया’, ऐसी ढींगें मारना, एकदूसरे पर आरोप-प्रत्‍यारोप करना,

भ्रष्ट कर्मचारियों को फांसी की सजा देनी चाहिए ! – मद्रास उच्च न्यायालय

भ्रष्टाचार के आरोपियों को पदोन्नति देने वालों पर भी कार्यवाही करनी चाहिए ! भारत में आज भ्रष्टाचार शिष्टाचार होकर भ्रष्ट लोगों को सम्मान दिया जा रहा है, यही भ्रष्ट कर्मचारियों को पदोन्नति देने के मामले से दिखता है !