भ्रष्टाचार प्रतिबंधक विभाग पर टिप्पणी करने से मुझे स्थानांतरण करने की धमकी !

कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ती का सुनवाई के समय आरोप

बेंगलुरु (कर्नाटक) – कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ती एच्.पी. संदेश ने एक प्रकरण के सुनवाई के मध्य ‘भ्रष्टाचार प्रतिबंधक विभाग पर टिप्पणी करने से इस विभाग के अतिरिक्त पुलिस महासंचालक अप्रसन्न हुए और आपका स्थानांतरण हो सकता है’, ऐसा मुझे एक सहकर्मी र् से ज्ञात हुआ । मैं इस स्थानांतरण के धमकी की नोंद निकाल पत्र में करुगा । यह न्याययंत्रणा की स्वतंत्रता को धोखा है । मुझे मेरा पद जाने का कोई भय नहीं । इस विषय की राज्य में चर्चा शुरू हुई है । उत्कोच (घुस) लेने का आरोप हुए तहसीलदार के प्रतिभूति (जमानत) की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ती एच्.पी. संदेश ने यह कथन किया ।

न्यायमूर्ती संदेश ने आगे ऐसा भी कहा कि,

१. न्यायमूर्ती होनेपर संपत्ती प्राप्त नहीं की, अपितु ४ एकड कृषी विक्रय की । मैं किसान का पुत्र हुं और पुनः खेत जोतने की मेरी तैयारी है ।

२. मैं किसी पक्ष या विचारधारा से संबंधित नहीं हूं । मैं केवल राज्यघटना से बंधा हूं ।

३. भ्रष्टाचार प्रतिबंधक विभाग सार्वजनिक हित का संरक्षण करता है, या कलंकित व्यक्ति का ?

४. न्यायमूर्ती परिधान करनेवाला काला कोट भ्रष्टाचारियों का संरक्षण करने के लिए नहीं । भ्रष्टाचार यह कर्करोग बन गया है और वह चौथे चरण तक पहुंचना नहीं चाहिए । भ्रष्टाचार की आंच संपूर्ण राज्य को लग रही है ।

५. ‘विटामिन एम्. (पैसा) मिलें तो यह विभाग किसी का भी संरक्षण करेगा । क्या हो रहा है इसकी मुझे कल्पना (अनुमान) है । कितने प्रकरण में ‘सर्च वारंट’ (ढुंढने का निर्देश) निकाले गए और कितने प्रकरण में उसपर कार्यवाही की गई यह मुझे ज्ञात है ।

संपादकीय भूमिका

  • न्यायमूर्ती ने सीधे सुनवाई के समय किए आरोप की राज्य सरकार ने जांच करके सत्य जनता के सम्मुख लाना चाहिए ! एक न्यायाधीश को भ्रष्टाचार के विरोध में काम करने को भ्रष्टाचार प्रतिबंधक विभाग ही रोकता होहोगा, तो राज्य का भ्रष्टाचार न्यून होने के सिवा बढेगा इसमें शंका नहीं !
  • एक न्यायमूर्ती को पुलिस से ऐसी धमकी मिलती होंगी, तो सर्वसामान्य मनुष्य भ्रष्टाचार के विरोध में कैसा लढेगा ? यह प्रश्न उपस्थित होता है !