परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के निमित्त श्रीविष्णु के रूप में हुआ उनका रथोत्सव : ईश्वर की अद्भुत लीला !

‘ईश्वर जब कोई कार्य निर्धारित करते हैं, तो प्रकृति, पंचमहाभूत, देवी-देवता एवं ऋषि-मुनि किस प्रकार उसे साकार रूप देते हैं ?’, यह दैवी नियोजन हम साधकों ने रथोत्सव के माध्यम से अनुभव किया ।

जोधपुर की दैवी बालसाधिका कु. वेदिका मोदी को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के समक्ष भावपूर्ण नृत्य प्रस्तुत करते देख कु. मधुरा भोसले को हुई अनुभूति !

नृत्य करते समय कु. वेदिका ने घागरा पहना था । उसे देखकर प्रतीत हुआ कि घागरा पहनने के कारण उसके स्थान पर ‘एक नन्हीसी गोपी ही श्रीकृष्ण के समक्ष भावपूर्ण नृत्य प्रस्तुत कर नृत्य के माध्यम से श्रीकृष्ण की उपासना कर रही है । उसका यह नृत्य हो रहा था, तब उसके हृदय में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भाव जागृत हो गया ।

वाराणसी सेवाकेंद्र के प्रांगण में उगा हुआ विशेषतापूर्ण अमरूद का पेड !

वाराणसी सेवाकेंद्र के प्रांगण में अमरूद का एक पेड है । इस अमरूद के पेड की विशेषता यह है कि उसके कई स्थानों में एक ही स्थान पर ४ से ५ अमरूद आते हैं और एक ही शाखा की एक ही पंक्ति में कई अमरूद आते हैं । इस पेड का तना मध्यम आकार का है । इस पेड की ओर देखने पर आनंद और उत्साह प्रतीत होता है ।

ग्वालियर में सनातन संस्था द्वारा बसंत पंचमी के अवसर पर प्रवचन संपन्न

प्रवचन के आरंभ में संस्था के कार्य और संस्थापक के विषय में जानकारी दी गई । बसंत पंचमी के दिन को माता सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाने का महत्त्व व उनकी उत्पत्ति कैसे हुई, इसकी कथा सुनाई गई ।

विभिन्न समस्याओं पर अचूक नामजपादि उपाय ढूंढकर, करने से कष्ट दूर होना और इससे उपायों का महत्त्व ध्यान में आना

मानव जीवन में होने वाली ८० प्रतिशत समस्याएं आध्यात्मिक कारणों से होती हैं । इसलिए ऐसी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए साधना की आवश्यकता होती है । साधना के साथ, समस्याओं के उस उस प्रसंग में उस समस्या पर नामजपादि आध्यात्मिक उपाय ढूंंढकर करने की आवश्यकता होती है ।

६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. तेजल पात्रीकर के स्वर में ध्वनिमुद्रित किया गया ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप सुनने के प्रयोग में सम्मिलित साधकों को हुए कष्ट और प्राप्त विशेषतापूर्ण अनुभूतियां

मन निर्विचार करने हेतु स्वभावदोष और अहं का निर्मूलन, भावजागृति इत्यादि चाहे कितने भी प्रयास किए, तब भी मन कार्यरत रहता है, साथ ही किसी देवता का अखंड नामजप भी किया, तब भी मन कार्यरत रहता है और मन में भगवान की स्मृतियां, भाव इत्यादि आते हैं ।

६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद) के स्वर में ध्वनिमुद्रित किया गया ‘ॐ निर्विचार’ नामजप सुनने के प्रयोग में सम्मिलित साधकों को हुए कष्ट और प्राप्त विशेषतापूर्ण अनुभूतियां

मन निर्विचार करने हेतु स्वभावदोष और अहं का निर्मूलन, भावजागृति इत्यादि चाहे कितने भी प्रयास किए, तब भी मन कार्यरत रहता है, साथ ही किसी देवता का अखंड नामजप भी किया, तब भी मन कार्यरत रहता है और मन में भगवान की स्मृतियां, भाव इत्यादि आते हैं ।

६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद) की आवाज में ध्वनिमुद्रित किया ‘निर्विचार’ नामजप सुनने के प्रयोग में सम्मिलित साधकों को हुए कष्ट एवं विशेष अनुभूतियां

मन निर्विचार करने के लिए स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन, भावजागृति इत्यादि के भले ही कितने भी प्रयत्न किए, तब भी मन कार्यरत रहता है । इसके साथ ही किसी देवता का नामजप अखंड करने से भी मन कार्यरत रहता है ।

उत्तर भारत में नवरात्रि के अवसर पर ऑनलाइन सत्संग संपन्न !

सत्संग में घटस्थापना की विधि और अध्यात्मशास्त्र, नवरात्रि की विविध तिथियों का महत्त्व तथा जागरण करने का अध्यात्मशास्त्रीय आधार, देवीपूजन से संबंधित कुछ कृतियां और उनके लाभ, आदि विषयों पर अध्यात्मशास्त्रीय आधार पर जानकारी दी गई ।

सप्तर्षियों के बताए अनुसार वर्ष २०२० और २०२१ की गुरुपूर्णिमा में पूजन किए गए चित्रों के संदर्भ में सद्गुरु डॉ. गाडगीळजी को हुई अनुभूति !

वर्ष २०२१ की गुरुपूर्णिमा में सप्तर्षियों के बताए अनुसार चित्र बनाकर उसका पूजन रामनाथी आश्रम में किया गया । उस चित्र की ओर देखकर मुझे हुई अनुभूति इस लेख में दी है ।