५ से ११.७.२०२१ की अवधि में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की संगीत समन्वयक तथा ६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद) के स्वरों में ‘ॐ निर्विचार’ नामजप ध्वनिमुद्रित किया गया । उसके उपरांत सनातन के रामनाथी (गोवा) स्थित आश्रम में तीव्र आध्यात्मिक पीडा से ग्रस्त साधक, आध्यात्मिक पीडा से ग्रस्त ६० प्रतिशत और उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त साधक, आध्यात्मिक पीडारहित साधक और आध्यात्मिक पीडारहित ६० प्रतिशत तथा उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधक, ऐसे कुल १८ साधकों और संतों को ७ दिन तक प्रतिदिन १० मिनट तक यह नामजप सुनाया गया । उस समय इस प्रयोग में उपस्थित कुछ साधकों को हुए कष्ट और उन्हें हुई विशेषतापूर्ण अनुभूतियां आगे दी गई हैं ।
१. तीव्र आध्यात्मिक पीडा से ग्रस्त साधक को हुई कष्टदायक और अच्छी अनुभूति
एक साधक
६.७.२०२१ को हुई कष्टदायक अनुभूति
अ. ‘नामजप सुनना आरंभ करने पर मुझे छाती पर दबाव अनुभव हुआ ।
आ. नामजप समाप्त होने तक मुझे छाती में पीडा हो रही थी । तदुपरांत ३ – ४ घंटे तक मेरी छाती में बहुत पीडा हुई ।
११.७.२०२१ को हुई अच्छी अनुभूति
अ. प्रयोग के समय
१. ‘मेरा पूरा शरीर हल्का हो गया है’, ऐसा मुझे अनुभव हुआ ।
२. मेरा दोनों नाकछिद्रों से श्वासोच्छ्वास आरंभ हुआ । (‘सामान्य व्यक्ति एक समय में प्रधानता से एक ही नाकछिद्र से श्वासोच्छ्वास आरंभ रहता है ।’ – संकलनकर्ता)
३. ‘नामजप का चैतन्य मेरे पूरे शरीर में, अर्थात तलवों से लेकर सिर तक परिणाम कर रहा है और मेरे देह की शुद्धि कर रहा है’, ऐसा मुझे अनुभव हो रहा था ।
४. मेरे आज्ञाचक्र और सहस्रारचक्र पर अत्यधिक परिणाम हुआ तथा वहां की सूक्ष्म अनिष्ट शक्ति नष्ट हुई, ऐसा मुझे लगा ।
आ. प्रयोग के उपरांत
१. मेरा मन शांत था तथा रात में मुझे शांत नींद आई ।’
२. मुझसे अपनेआप नामजप हो रहा था । (११.७.२०२१)
२. आध्यात्मिक पीडारहित साधिकाओं को हुई कष्टदायक और अच्छी अनुभूतियां
कु. म्रिणालिनी देवघरे
५.७.२०२१ को हुई कष्टदायक अनुभूति – नामजप आरंभ होने पर मेरे मन में निरंतर अनावश्यक विचार आ रहे थे । २ मिनट के उपरांत मेरा मन नामजप पर एकाग्र हुआ ।
अच्छी अनुभूति – ‘नामजप मेरे शरीर में जा रहा है और शरीर पर व्याप्त कष्टदायक शक्ति का आवरण दूर हो रहा है, साथ ही भीतर से शरीर हिल रहा है’, ऐसा मुझे अनुभव हुआ ।
६.७.२०२१ को हुई अच्छी अनुभूति – मेरा शरीर भीतर से हिल रहा था । कुछ समय उपरांत मेरा ध्यान लगा ।
– कु. तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद), संगीत समन्वयक, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय. (१२.१०.२०२१)
३. आध्यात्मिक पीडारहित और ६० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधकों को हुई अच्छी अनुभूति
श्री. मनोज कुवेलकर (आध्यात्मिक स्तर ६६ प्रतिशत)
५.७.२०२१
१. ‘नामजप करते हुए मुझे मेरे आज्ञाचक्र के स्थान पर ‘ॐ’ दिखाई दे रहा था । तदुपरांत मुझे शक्ति अनुभव होने लगी । कुछ समय उपरांत मुझे हल्का लगने लगा ।
२. फिर मुझे विविध प्रकार की शिवपिंडी दिखाई देने लगी और उसके उपरांत मेरा ध्यान लगा ।
७.७.२०२१
मुझे सहस्रारचक्र के स्थान पर ‘ॐ’ दिखाई दे रहा था । कुछ समय उपरांत मेरा ध्यान लगा ।
११.७.२०२१
१. नामजप के आरंभ में प्रार्थना करने पर मुझे परात्पर गुरुदेवजी के चरण और तदुपरांत श्री दुर्गादेवी के विराट रूप के दर्शन हुए । उस समय मुझे दिखाई दिया कि ‘मैं परात्पर गुरुदेवजी के चरण और श्री दुर्गादेवी के सामने बैठकर नामजप कर रहा हूं । उनके पीछे अत्यधिक मेघ थे, जिसमें से अनिष्ट शक्तियां मेरी ओर देख रही थी । मेरे आज्ञाचक्र से प्रकाश बाहर निकल रहा है और वह उन अनिष्ट शक्तियों पर प्रक्षेपित होने से वह शक्तियां अदृश्य हो रही हैं ।’
२. अंत में मेरा ध्यान लगा और ध्यान में मुझे परात्पर गुरुदेवजी के दर्शन हुए ।’
श्री. प्रकाश मराठे (आध्यात्मिक स्तर ६७ प्रतिशत)
११.७.२०२१
१. ‘मेरा ध्यान लगा । उसके उपरांत ‘वृक्ष जोर-जोर से हिल रहे हैं’, ऐसा मुझे दिखाई दिया । तदुपरांत मेरा मन एकाग्र हुआ । उस समय मुझे ‘श्वेत वर्तुल गोलाकार घूमकर आगे-आगे जा रहे हैं’, ऐसा दिखाई दिया ।’
(११.७.२०२१) (क्रमशः)
– कु. तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद), संगीत समन्वयक, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय. (१२.१०.२०२१)
‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप करने का महत्त्व !‘जब तक मन कार्यरत है, तब तक मनोलय नहीं होता । मन निर्विचार करने हेतु स्वभावदोष और अहं का निर्मूलन, भावजागृति इत्यादि चाहे कितने भी प्रयास किए, तब भी मन कार्यरत रहता है, साथ ही किसी देवता का अखंड नामजप भी किया, तब भी मन कार्यरत रहता है और मन में भगवान की स्मृतियां, भाव इत्यादि आते हैं । इसके विपरीत ‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप अखंड करने से मन को अन्य किसी बात का स्मरण ही नहीं होता । इसका कारण यह है कि अध्यात्म में ‘शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध और उनसे संबंधित शक्तियों का सहअस्तित्व होता है ।’, इस नियम के अनुसार इस नामजप के कारण मन उस शब्द से एकरूप होकर निर्विचार बनता है अर्थात पहले मनोलय और उसके उपरांत बुद्धिलय, उसके उपरांत चित्तलय और अंततः अहंलय होता है । उसके कारण निर्गुण स्थिति में शीघ्र जाने में सहायता मिलती है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले |