ईश्वरीय गुण का अर्थ सूक्ष्म के आभूषण !

ईश्वरीय गुण एवं सूक्ष्मरूपी आभूषण एक-दूसरे से संबंधित होना

१. जीवन में विद्यमान ईश्वर के एक-एक गुण का अर्थ है ईश्वर द्वारा प्रदान किया सूक्ष्मरूपी आभूषण : ‘जीवन में विद्यमान अलग-अलग ईश्वरीय गुणों के अनुसार अलग-अलग आभूषण होते हैं तथा वे उन ईश्वरीय गुणों के अनुसार आकार धारण करते हैं । साथ ही जीव के लिए आवश्यक तत्त्व के अनुसार उनमें रंग भरे जाते हैं ।

२. दैवी आभूषणों का स्थान शरीर में विद्यमान अलग-अलग चक्रों पर होता है तथा एक प्रकार से वह ईश्वर द्वारा जीव को प्रदान किया सुरक्षा-कवच है ।

३. सूक्ष्म के आभूषणों के कारण शरीर के चक्रों को ऊर्जा की आपूर्ति निरंतर होती रहती है ।’ – एक अज्ञात शक्ति

जीव के गुण एवं अवगुण के अनुसार सूक्ष्म के आभूषण

१. जीव के गुणों के अनुसार सूक्ष्म के आभूषण

१ अ. ‘व्यापकता, क्षात्रवृत्ति, पारदर्शिता, प्रेमभाव इत्यादि गुणों के लिए अलग-अलग आभूषण होते हैं ।

१ आ. जिस प्रकार देवता आभूषण धारण करते हैं, उसी प्रकार जीव के शरीर पर भी उसके गुणों के अनुसार सूक्ष्म से आभूषण होते हैं ।

१ इ. जीव की देह पर विद्यमान आभूषण तारक आभूषण होना तथा हाथ में लिए शस्त्र मारक आभूषण होना : ईश्वर के अधिकाधिक गुणों से युक्त तथा ईश्वर के साथ एकरूप हुए जीव के लिए ईश्वर सूक्ष्म के सबसे अधिक आभूषण प्राप्त करवाते हैं । जीव में विद्यमान तारक-मारक भाव तथा गुण के अनुसार जीव में तारक और मारक आभूषण होते हैं । जीव की देह पर विद्यमान आभूषण सूक्ष्म के तारक आभूषणों का, तथा जीव द्वारा हाथ में लिए शस्त्र, उदा. तलवार सूक्ष्म के मारक आभूषणों का प्रतीक है ।

सौभाग्यालंकार

     बालिका से लेकर प्रौढ स्त्री तक सर्व हिन्दू स्त्रियां माथे पर कुमकुम लगाती हैं । केवल विधवाएं कुमकुम नहीं लगातीं । विवाहित स्त्री के लिए ‘कुमकुम’ सौभाग्यालंकार माना गया है ।

     उत्तर भारत में कुमकुम लगाने की अपेक्षा मांग भरने का अधिक महत्त्व है । मांग में सिंदूर भरना सौभाग्य का प्रतीक है । यह अंतर देशकालानुसार है ।

कुमकुम लगाने का महत्त्व एवं लाभ

१. ‘कुमकुम लगाते समय भ्रूमध्य एवं आज्ञाचक्र पर दबाव दिया जाता है एवं वहां के बिंदु दबाए जाने से मुखमंडल के (चेहरे के) स्नायुओं को रक्त की आपूर्ति भली-भांति होने लगती है ।

२. मस्तक के स्नायुओं का तनाव घटकर मुखमंडल कांतिमय लगता है ।

३. कुमकुम के कारण अनिष्ट शक्तियों को आज्ञाचक्र द्वारा शरीर में प्रवेश करने में बाधा आती है ।’

– ईश्वर (कु. मधुरा भोसले के माध्यम से, ६.११.२०२०)

शक्तितत्त्व निर्माण करनेवाला कुमकुम !

  • कुमकुम लगाने से स्त्री की आत्मशक्ति जागृत होकर उसमें शक्तितत्त्व आकर्षित करने की प्रखर क्षमता निर्मित होना : ‘कुमकुम में तारक एवं मारक शक्तितत्त्व आकर्षित करने की प्रखर क्षमता है । स्त्री की आत्मशक्ति जागृत होने से उस शक्ति में भी कार्यानुरूप तारक अथवा मारक देवीतत्त्व आकर्षित करने की प्रखर क्षमता निर्मित होती है । देवीतत्त्व के कृपाशीर्वाद हेतु स्त्री के भ्रूमध्य पर स्वयं अथवा अन्य स्त्री द्वारा कुमकुम लगाए जाने पर स्त्री में विद्यमान तारक शक्ति तत्त्व के स्पंदन जागृत होते हैं । इससे वातावरण में स्थित शक्ति तत्त्व के पवित्रक (पवित्र कण) उस स्त्री की ओर आकर्षित होते हैं ।’ – एक साधिका (१७.१.२००५)
  • स्त्री स्वयं को अनामिका से और अन्य स्त्रियों को मध्यमा से आज्ञाचक्र पर गोलाकार कुमकुम लगाए ।

स्वर्ण का महत्त्व

हिन्दू धर्म में बताए अनुसार स्वर्ण आभूषण धारण करना ही स्त्री का वास्तविक वैभव है !

१. ‘स्वर्ण शरीर के प्रतिकूल कीटाणुओं का नाश करता है । – ब्राह्मणग्रंथ’

२. सभी धातुओं में सोना ही सबसे सात्त्विक धातु है ।

३. सोना सात्त्विक और चैतन्यमय तरंगों का ग्रहण और प्रक्षेपण कर उतनी ही गति से वायुमंडल में प्रवेश करता है । सोना धातु तेजतत्त्वरूपी चैतन्यमय तरंगों का संवर्धन करने में अग्रणी है ।’ उसके कारण स्वर्ण आभूषण धारण करनेवाले व्यक्ति को बडी मात्रा में सात्त्विकता और चैतन्य का लाभ होता है ।’ – एक विद्वान [श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ‘एक विद्वान’ के नाम से लेखन करती हैं । (१०.१०.२००५)]

‘साधना’ ही मानव का खरा अलंकार है !

‘जीव द्वारा ईश्वर निर्मित धर्म का आचरण और यथार्थ पालन करना, अर्थात जीव द्वारा उसके प्रगति हेतु उपयुक्त साधना कर इस मनुष्यजन्म का सार्थक करना, यही उसके जीवन का बडा अलंकार हो सकता है ।’

– एक साधक

मोती – मोती के माध्यम से आपतत्त्वरूपी तरंगें कार्यरत होने से मोती में से गति से आपतत्त्व युक्त तरंगें वायुमंडल में प्रक्षेपित होती हैं । मोती के स्पर्श से देह की चेतना पूरे शरीर में संक्रमित होने की मात्रा बढती है । मोती की आपतत्त्व रूपी तरंगों के माध्यम से देह की बाह्य वायुमंडल को प्रतिसाद देने की क्षमता बढती है, अर्थात उसकी बाह्य वायुमंडल की तरंगें ग्रहण एवं प्रक्षेपण करने की क्षमता बढती है ।