१. ‘सामने आनेवाला प्रत्येक मनुष्य को उस पल के लिए भगवान ने ही हमारे सामने भेजा है’, ऐसा विचार कर उसके लिए जितना कर पाएं, करना चाहिए । इससे जीवन सरल सुंदर बनता है ।
२. दैवी गुणोंसहित कर्म करने पर साधना होती है ।
३. प्रारब्ध कितना भी कठिन हो, भगवान से आंतरिक सान्निध्य बनाए रख, उचित क्रियमाण का उपयोग कर कर्म करनेसे उस पर मात की जा सकती है ।
– संग्राहक : श्री. दिवाकर आगावणे, रामनाथी, गोवा. (२५.३.२०२०)