श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ द्वारा शेषनाग की फूंक से उत्पन्न ‘मणिकर्ण तप्तकुण्ड’ (जनपद कुलु) स्थान का किया हुआ अवलोकन !

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के देवभूमि हिमाचल प्रदेश के दैवीय भ्रमण का वृत्तांत !

     ‘१९.६.२०२१ को श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका में बताए अनुसार देवभूमि हिमाचाल प्रदेश का भ्रमण आरंभ किया । इस भ्रमण में उन्होंने हिमाचल प्रदेश के कुलु जनपद में स्थित ‘मणिकर्ण तप्तकुंड’ स्थान का अवलोकन किया । इस दैवीय भ्रमण का वृत्तांत यहां दिया है –

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी

१. देवताओं का निवासस्थान कुलांतपीठ अर्थात देवभूमि हिमाचल में स्थित कुलू !

गरम पानी का मणिकर्ण कुंड तथा वहां स्थित शिवजी की मूर्ति

     देवभूमि हिमाचल प्रदेश में कुलू नामक एक नगर है । इस नगर के चारों दिशाओं में अनेक दैवीय स्थान हैं । ‘कुलु’ का अर्थ प्राचीन काल का ‘कुलांतपीठ !’ जहां मनुष्यकुल समाप्त होकर देवकुल आरंभ होता है अर्थात जो देवताओं का निवासस्थान है, वह है ‘कुलांतपीठ !’ ऐसे कुलु प्रदेश में ‘मणिकर्ण’ नामक स्थान है ।

२. देवी पार्वती के कर्णाभूषण में स्थित मणि जहां गिरी, वह स्थान है मणिकर्ण स्थित ‘तप्तकुंड’ !

मणिकर्ण कुंड को नमस्कार करती हुईं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी
पार्वती नदी को नमस्कार करती हुईं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी

२ अ. मणिकर्ण स्थान का इतिहास : शिवजी एवं माता पार्वती जब इस स्थान पर आए, तब उन्होंने यहां कुछ काल तक रहना सुनिश्चित किया । पार्वती नदी के तट पर शिवजी ने ११ सहस्र वर्ष तपस्या की । एक दिन पार्वतीमाता नदी में जलक्रीडा कर रही थीं, तब उनके कर्णाभूषण में स्थित एक मणि पानी में गिर गई । शिवजी ने उस मणि को ढूंढने हेतु शिवगणों को आदेश दिया; परंतु बहुत खोजकर भी वह मणि नहीं मिली । तब शिवजी क्रोधित हुए और उन्होंने तीसरा नेत्र खोला । उससे नैनादेवी प्रकट हुईं । उसने बताया, ‘‘देवी पार्वती के कर्णाभूषण की मणि शेषनाग पाताललोक ले गए हैं ।’’ तब शेषनाग के ध्यान में आया कि ‘अब मणि लौटाए बिना अन्य कोई विकल्प नहीं ।’ उन्होंने पाताल से फूंक मारी और उस फूंक से पृथ्वी पर गरम पानी का कुंड बन गया और वह मणि ऊपर आ गई । देवी के कर्णाभूषण में स्थित मणि के यहां गिरने से इस स्थान का नाम ‘मणिकर्ण’ पडा । यहां कई स्थानों पर गरम पानी के तप्त कुंड हैं ।

२ आ. यहां की यह विशेषता है कि मणिकर्म में घर-घर में भूमि से ही गरम पानी निकलता है; इसलिए यहां किसी के भी घर में स्नान हेतु पानी गरम करने का कोई साधन नहीं है ।

– श्री. विनायक शानभाग, कुलु, हिमाचल प्रदेश. (२०.६.२०२१)

क्षणिकाएं

श्री. विनायक शानभाग

१. मणिकर्ण कंण्ड की ओर जाते समय २०० मीटर की दूरी से पहले श्रीराम का एक प्राचीन मंदिर है । ऐसा कहा जाता है कि यहां की श्रीराम की मूर्ति कुलु नरेश विश्वनाथ महाराज अयोध्या से लाए थे । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने इस मंदिर में जाकर श्रीराम से रामराज्य की स्थापना (हिन्दू राष्ट्र की स्थापना) शीघ्रातिशीघ्र होने हेतु प्रार्थना की ।

२. अनेक लोगों को अनुभूति हुई है कि मणिकर्ण कुंड के जल से जोडों में वेदना इत्यादि ठीक हो जाती है । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने इस कुंड का जल रामनाथी आश्रम में संग्रह हेतु लिया ।’

– श्री. विनायक शानभाग, कुलु, हिमाचल प्रदेश. (२०.६.२०२१)

सनातन की श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने अब तक लगभग ८ लाख से भी अधिक कि.मी. की यात्रा कर ऐसे प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्थलों का अवलोकन किया । उसके कारण हमें इतिहास के गर्भ में छिपी दैवीय स्मृतियों के छायाचित्रमय दर्शन हो रहे हैं ! उसके लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !