‘सनातन संस्था में विद्यावाचस्पति (पीएच्.डी.), डॉक्टर, अभियंता जैसे उच्च विद्याविभूषित साधक अपनी नौकरी छोडकर पूर्ण समय साधना कर रहे हैं । नौकरी में उन्हें प्रतिदिन ८ – १० घंटों के काम के लिए प्रतिमाह सहस्रों रुपए वेतन मिलता था । सनातन संस्था में नौकरी समान वेतन नहीं मिलता, तब भी ये साधक प्रतिदिन स्वयं ही नौकरी की तुलना में अधिक घंटे सेवा करते हैं । इसका कारण यह है कि उन्हें नौकरी के स्थान पर रज-तमयुक्त काम की तुलना में सत्त्वगुणी सेवा करने में अधिक आनंद मिलता है । इस आनंद के सामने उन्हें सहस्रों रुपए नगण्य लगते हैं ।’
– (सच्चिदानंद परब्रह्म) डॉ. आठवले (२३.१०.२०२१)