विजयादशमी का संदेश
‘विजयादशमी’ हिन्दुओं के देवता और महापुरुषों की विजय का दिन है । ‘आसुरी शक्तियों का पराभव और दैवी शक्तियों की विजय’, यह इस दिन का इतिहास है । इसीलिए इस दिन अपराजितापूजन और सीमोल्लंघन करने की सनातन परंपरा है ।
‘विजयादशमी’ हिन्दुओं के देवता और महापुरुषों की विजय का दिन है । ‘आसुरी शक्तियों का पराभव और दैवी शक्तियों की विजय’, यह इस दिन का इतिहास है । इसीलिए इस दिन अपराजितापूजन और सीमोल्लंघन करने की सनातन परंपरा है ।
‘पुलिस तथा सेना में ही नहीं, प्रशासन में सभी को भर्ती करते समय हिन्दू राष्ट्र में ‘राष्ट्र एवं धर्म के प्रति प्रेम’ को सबसे बडा घटक माना जाएगा !’
आयु के १७ वें वर्ष में विवाह होने के उपरांत उन्होंने जीवनभर प.पू. भक्तराज महाराजजी (प.पू. बाबा) जैसे उच्च कोटि के संत की गृहस्थी संभालने का कठिन शिवधनुष्य उठाया । प.पू. जीजी की साधना अत्यंत कठिन थी ।
अधिकांश पूर्णकालीन गोरक्षकों को गोरक्षा का कार्य प्रतिदिन ७-८ घंटे का भी नहीं होता । जब गोरक्षा का कार्य नहीं होगा, उस समय उन्होंने हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए कार्य किया, तो उनके परिश्रम सर्वत्र के गायों की रक्षा हेतु सहायक सिद्ध होंगे ।
विश्वविद्यालय ने अक्टूबर २०१६ से ३१ अगस्त २०२२ की अवधि में १७ राष्ट्रीय तथा ७९ अंतरराष्ट्रीय, ऐसे कुल मिलाकर ९६ वैज्ञानिक परिषदों में शोधनिबंध प्रस्तुत किए हैं । विश्वविद्यालय को अभी तक कुल ११ अंतरराष्ट्रीय परिषदों में ‘सर्वाेत्कृष्ट प्रस्तुतीकरण पुरस्कार’ प्राप्त हुए हैं ।
‘जिस प्रकार अनपढ व्यक्ति का यह कहना कि ‘सभी भाषाओं के अक्षर समान होते हैं’, उसका अज्ञान दर्शाता है । उसी प्रकार ‘सर्वधर्म समभाव’ कहनेवाले अपना अज्ञान दर्शाते हैं । ‘सभी औषधियां, सभी कानून समान ही हैं’, ऐसा ही कहने के समान है, ‘सर्वधर्म समभाव’ कहना !’
‘अनिष्ट से संसार की रक्षा करनेवाले, तथा मानव की ऐहिक और पारलौकिक उन्नति सहित मोक्ष प्रदान करनेवाला तत्त्व है धर्म ! अधिकांश विदेशी भाषाओं में ‘धर्म’ शब्द का समानार्थी शब्द भी नहीं ! इस कारण उनके लिए धर्माचरण करना कठिन होता है ।’
अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का व्यासपीठ सभी हिन्दुत्वनिष्ठों के लिए है । इस कारण हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के माध्यम से हिन्दुओं में नवशक्ति निर्माण हुई है । विविध राज्यों में और जिलों में इस प्रकार के अधिवेशन हो रहे हैं । अखंड हिन्दू राष्ट्र के लिए ये सम्मलेन हो रहे हैं ।
‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, स्वेच्छाचार, प्राणियों की विशेषता हो सकती है, मानव की नहीं । ‘धर्मबंधन में रहना, धर्मशास्त्र का अनुकरण करना’, ऐसा करनेवाला ही ‘मानव’ कहला सकता है ।’