साधकों को साधना के लिए प्रेरित करनेवाला श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी का अमूल्य मार्गदर्शन !

‘आश्रम में रहकर पूर्णकालीन साधना करनेवाले एक साधक ने उसे हो रहे आध्यात्मिक कष्टों के कारण घर जाने का विचार किया । श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी को उसने यह बताया ।

साधको, ‘मेरी आध्यात्मिक उन्नति कब होगी ?’, इसकी चिंता किए बिना गुरुदेवजी के प्रति श्रद्धा रख लगन से प्रयास करते रहें !

‘प.पू. डॉक्टरजी ने एक साधिका को बताया था कि आध्यात्मिक उन्नति २० वर्ष उपरांत होगी । उसके उपरांत उत्तरदायी साधकों ने उसकी सहायता करने के लिए न जाने कितने प्रयास किए; परंतु तब भी उसमें साधना के संदर्भ में किसी प्रकार का भान उत्पन्न नहीं हो रहा था ।

गुरुकृपायोग के अनुसार साधना में भक्तियोग, कर्मयोग एवं ज्ञानयोग से संबंधित कुछ तत्त्वों का समावेश होने से साधकों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होना

‘गुरुकृपायोगानुसार साधना में ‘स्वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, नामजप, सत्संग, सत्सेवा, भक्तिभाव, सत् के लिए त्याग एवं अन्यों के प्रति प्रीति (निरपेक्ष प्रेम)’ इस अष्टांग साधना के अनुसार साधना करते समय साधकों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होती है ।

साधना में स्थूल स्तर की चूकें बताने का महत्त्व !

‘साधना में मन के स्तर पर होनेवाली अनुचित विचार-प्रक्रिया अधिक बाधक होती है । अंतर्मुखता के अभाव के कारण साधक को अपनी चूकें समझ में नहीं आतीं तथा वे चूकें मन के स्तर की चूकें होने के कारण अन्यों के ध्यान में भी नहीं आतीं ।

साधको, गुरुसेवा में रुचि-अरुचि को न संजोकर ‘शूद्र वर्ण की सेवा करने से तीव्र गति से आध्यात्मिक उन्नति होती है’, यह ध्यान में रखकर सभी सेवाएं करने की तैयारी रखें !

संगणकीय सेवा करनेवाले कुछ साधकों को स्वच्छता सेवा अथवा रसोईघर से संबंधित सेवाएं कनिष्ठ स्तर की लगती हैं । उसके कारण वे शूद्र वर्ण की इन सेवाओं को करने में टालमटोल करते हैं ।

साधकों में व्यष्टि एवं समष्टि साधना के प्रति गंभीरता बढाने के लिए उत्तरदायी साधक सभी साधकों के व्यष्टि लेखन का ब्योरा लें !

‘अब आपातकाल की तीव्रता प्रतिदिन बढती जा रही है । उसके कारण सभी साधकों की व्यष्टि एवं समष्टि साधना नियमित होनी चाहिए ।

आंतरिक आनंद, संतुष्टि एवं ‘श्रीकृष्ण की सेवा’ भाव से नृत्य करनेवालीं देहली की प्रसिद्ध भरतनाट्यम् नृत्यांगना तथा नृत्यगुरु पद्मश्री श्रीमती गीता चन्द्रन् !

देहली की प्रसिद्ध भरतनाट्यम् नृत्यांगना एवं कर्नाटक शैली की गायिका पद्मश्री श्रीमती गीता चन्द्रन् से भेंट की । इस भेंट में श्रीमती गीता चन्द्रन् द्वारा वर्णित उनकी नृत्यसाधना की यात्रा यहां दी गई है ।

साधको; कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग एवं गुरुकृपायोग, इन योगमार्गाें के अनुसार प्रत्येक सेवा कर तीव्र गति से आध्यात्मिक उन्नति करें !

‘आश्रम में रहनेवाले, साथ ही प्रसार में सेवा करनेवाले साधक विभिन्न सेवाएं करते हैं । साधकों ने उन्हें मिली प्रत्येक सेवा यदि कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग एवं गुरुकृपायोग इन योगमार्गाें के अनुसार की, तो वह परिपूर्ण एवं भावपूर्ण होगी ।’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने ‘साधना के आरंभिक काल में विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से कैसे तैयार किया ?’, इस विषय में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी द्वारा चुने हुए क्षण मोती !

गुरुदेवजी के बताए अनुसार मैंने २ माह तक रसोईघर में सेवा की । मुझे उस सेवा से बहुत आनंद मिलने लगा । उस आनंद में मैं पहले जो संगीत साधना करती थी, वही भूल गई ।

अंतर्मन को सुसंस्कारी बनानेवाली हिन्दी पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ संबंधी सेवा !

‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों के माध्यम से विगत अनेक वर्षाें से समाजप्रबोधन किया जा रहा है । ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकोंद्वारा ‘राष्ट्र एवं धर्म पर हो रहे प्रहार, संतों का मार्गदर्शन, साधकों को हुई अनुभूतियां, सूक्ष्म ज्ञान’ आदि के संबंध में विविध लेखों के माध्यम से समाज के व्यक्तियों का मार्गदर्शन किया जाता है एवं उन्हें साधनाप्रवण किया जाता है ।